अभी कुछ वर्ष पहले तक शायद यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि जो स्टार्टअप कारोबार यूनिकॉर्न (100 करोड़ डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली फर्म) का दर्जा हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही हैं उनमें से कई को कॉकरोच की तरह अपने अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष करना होगा। परंतु अब ऐसा नहीं है। एक उद्यमी ने हाल ही में उस समय सुर्खियां बटोरीं जब उन्होंने स्टार्टअप के बचाव की तुलना एक कॉकरोच से की।
वह शायद फिनटेक, एडटेक, हेल्थटेक अथवा तकनीक के सहारे काम करने वाले अन्य कारोबारों के बारे में सोच रहे होंगे जिन्हें महामारी के दौरान खूब कामयाबी मिली। जकार्ता स्थित डिजिटल भुगतान संबंधी यूनिकॉर्न सेंडिट की सह-संस्थापक टेस्सा विजया ने सिंगापुर में एक आयोजन में कहा कि यह स्टार्टअप के लिए कॉकरोच जैसा समय है, उन्हें अपना अस्तित्व बचाए रखने के हरसंभव प्रयास करने चाहिए।
उनकी बात का समर्थन करने वालों की कोई कमी न होगी क्योंकि पूरा स्टार्टअप जगत इस समय हिला हुआ है। वर्षों तक निवेश करने के बाद निवेशक अब केवल मुनाफे पर ध्यान दे रहे हैं।
दुनिया भर में फिनटेक स्टार्टअप की हालत अन्य टेक स्टार्टअप से अधिक खराब है क्योंकि उनके सामने मंदी का खतरा सबसे अधिक स्पष्ट है। द इकनॉमिस्ट ने अपने ताजा अंक में भी ऐसा ही कुछ लिखा है। भारत में टेक स्टार्टअप में तब गिरावट आने लगी जब कोविड के बाद खपत मांग में सुधार हुआ और कई क्षेत्रों में रुझान उलटने शुरू हो गए। उदाहरण के लिए एडटेक कंपनियां जो महामारी के दिनों में और उन वर्षों में सबकी चहेती बनी रहीं, अब उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि अब लोग दोबारा कक्षाओं में जाकर पढ़ने और कोचिंग लेने की शुरुआत कर चुके हैं।
वेंचर कैपिटल यानी उद्यम पूंजी और निजी इक्विटी फर्मों ने इस संकेत को जल्दी ही भांप लिया और स्टार्टअप जगत में पैसा लगाना कम कर दिया। सबसे बड़ी एडटेक कंपनियों में से एक जिसे ढेर सारे निवेशकों का समर्थन हासिल है, ने हाल ही में बड़े पैमाने पर छंटनी की और कहा कि उसने ऐसा मुनाफे की ओर बढ़ने के लिए किया है। इस एडटेक कंपनी को जल्दी ही फंड मिला जिससे यह बात साबित हुई कि निवेशक केवल तभी पैसे देंगे जब स्टार्टअप अपने खर्चों पर नियंत्रण करने के लिए तैयार दिखें।
भारत में दो अरब डॉलर से अधिक का एडटेक बाजार है और माना जा रहा है कि अकेले 2022 में इस क्षेत्र में 7,000 के करीब कर्मचारियों को निकाला गया है। ऐसे में उद्योग जगत के उस अनुमान पर दोबारा विचार करना होगा जिसमें कहा गया था कि भारत का एडटेक बाजार 10 वर्षों में 30 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
कोविड काल के दौरान उत्पन्न रुझान में बदलाव वाला दूसरा क्षेत्र है मनोरंजन। ओटीटी यानी ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म की वजह से महामारी के दौरान हमारे घरों में मनोरंजक कार्यक्रमों की अबाध आपूर्ति होती रही। लेकिन जैसे ही घरों में रहने की बाध्यता समाप्त हुई और लोगों ने घरों से बाहर निकलना शुरू कर दिया, कई प्रमुख ओटीटी प्लेटफॉर्म के दर्शकों की संख्या में कमी आने लगी। ऐसा इसलिए हुआ कि मॉल, थिएटर और कार्यालय आदि खुल गए थे और लोग घरों से बाहर जाने लगे थे।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ऐप के साथ भी यही हुआ। जब पूरी दुनिया ठप पड़ी हुई थी तब हमारा काम इन्हीं ऐप के सहारे चल रहा था। जूम, गूगल मीट और माइक्रोसॉफ्ट टीम आदि के सहारे कॉर्पोरेट क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र में आभासी बैठकों का आयोजन किया जा रहा था। परंतु कोविड के मामले घटते ही इस क्षेत्र में भी तेज गिरावट देखने को मिली। 2020 में शानदार प्रदर्शन के बाद जूम के शेयरों की कीमत तेजी से घटी है। अभी हाल ही में कंपनी ने 2023 के लिए अपने अनुमान कम किए जिससे इस क्षेत्र के अनुमानों को झटका लगा।
ई-कॉमर्स क्षेत्र में भी महामारी के दौरान असाधारण बढ़ोतरी देखने को मिली थी। खुदरा गतिविधियों के दोबारा शुरू होने के बाद इसकी कुछ श्रेणियों में भी तेज गिरावट देखने को मिली लेकिन कुल मिलाकर इस क्षेत्र में रुझानों में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया। कांतार वर्ल्डपैनल के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2020 और मार्च 2022 के बीच करीब 1.07 करोड़ परिवारों ने दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुओं यानी एफएमसीजी की ऑनलाइन खरीदारी की। अप्रैल 2020 तक समाप्त हुए वर्ष में ई-कॉमर्स में एफएमसीजी की हिस्सेदारी 3.6 फीसदी थी।
एक वर्ष बाद यह 10 फीसदी हुई और अप्रैल 2022 तक की 12 माह की अवधि में यह 15.6 फीसदी हो गई। ई-कॉमर्स पर किराना खरीदारी की महत्ता को तो एडोबी के एक अधिकारी ने भी रेखांकित किया। उसने इस वर्ष के आरंभ में फोर्ब्स की एक रिपोर्ट में कहा कि किराना खरीदारी ई-कॉमर्स को नया आकार दे रही है जबकि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स और वस्त्र आदि की तुलना में बहुत कम छूट मिलती है। कहने का अर्थ यह था कि सेवा की गति और उसका सुविधाजनक होना उतना ही महत्त्वपूर्ण था जितनी कि छूट और पैसों की बचत। यही वजह है कि कई ई-कॉमर्स कंपनियों ने जल्दी ही किराना सामान की तेज गति से आपूर्ति का सिलसिला शुरू कर दिया।
अब जबकि कोविड-19 सुसुप्तावस्था में नजर आ रहा है, एक और रुझान बदलने की प्रक्रिया में है। यह है घर से काम करने की संस्कृति जो पिछले दो वर्षों से जोर पकड़ रही थी। इसमें भी तकनीकी क्षेत्र का अहम योगदान था। महामारी के दौरान जो तकनीकी कदम बहुत कारगर और मददगार साबित हो रहे थे वे कोविड के मामले कम होने के साथ ही कमजोर पड़ गए हैं।
इस बीच घर से काम करने की प्रवृत्ति ने मजबूती से अपनी जगह कर्मचारियों के बीच कायम की। यह सही है कि कड़े प्रतिरोध के बावजूद कई नियोक्ता अपने कर्मचारियों को दोबारा कार्यालय बुलाने में कामयाब रहे हैं जिसके चलते दुनिया भर में अचल संपत्ति कारोबार के समीकरण फिर से बदले हैं। लेकिन कई और संस्थान हैं जो अभी कोविड के दौर के कामकाज का तौर तरीका बदलने की कोशिश में हैं। क्या इसमें कोई संदेश छिपा है?
