वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब पिछला बजट पेश किया था तब हालात विपरीत थे। अर्थव्यवस्था अत्यंत बुरे दौर से गुजर रही थी और कोविड की अगली लहर को लेकर अनिश्चितता का माहौल था। परंतु उनके बजट भाषण में चुनौतियों और उनसे निपटने के लिए उठाए जाने वाले कदम, दोनों का जिक्र था। 2021-22 का बजट निर्णायक साबित हुआ, उसमें नई पहलों तथा पारदर्शी अंकेक्षण की घोषणा की गई जबकि राजकोषीय समावेशन के व्यापक लक्ष्यों को लेकर भी प्रतिबद्धता जतायी गई।
वर्ष 2021 के बजट में उन्होंने एक महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय मुद्रीकरण योजना तथा एक व्यापक राष्ट्रीय बुनियादी पाइपलाइन शुरू करने की घोषणा की थी ताकि राजस्व बढ़ाया जा सके तथा निवेश पर बल देकर वृद्धि को गति प्रदान की जा सके। सरकारी निवेश में इजाफा इसलिए जरूरी था क्योंकि निजी क्षेत्र नया निवेश करने का इच्छुक नहीं था।
सकल कर राजस्व के अनुमान 17 फीसदी की वृद्धि दर के साथ सामान्य से कुछ ही बेहतर थे। सीतारमण की योजना थी सरकार के अतिरिक्त बजट संसाधनों को कम करना। इससे अंकेक्षण में पारदर्शिता लाने की उनकी प्रतिबद्धता साफ नजर आ रही थी। अतीत में प्राय: घाटे को छिपाने का प्रयास किया जाता था। उन्होंने छोटे और मझोले उपक्रमों को नए सिरे से परिभाषित करने, खनिज क्षेत्र का वाणिज्यीकरण करने, सरकारी उपक्रमों का निजीकरण करने तथा कृषि एवं श्रम कानूनों में संशोधन की सरकार की प्रतिबद्धता भी दोहराई थी।
करीब एक वर्ष बाद सीतारमण अगला बजट पेश करने की तैयारी में हैं। पिछले बजट से क्या हासिल किया और क्या वे और इससे बेहतर प्रदर्शन कर सकती थीं, इस बारे में मिलीजुली तस्वीर निकलती है। वह अंकेक्षण पारदर्शिता के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध नजर आती हैं। यह भी संभव है कि शायद उन्हें 2021-22 के लिए अतिरिक्तबजट संसाधनों की आवश्यकता न पड़े। बजट में कुछ सरकारी योजनाओं के लिए 30,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त संसाधन का प्रावधान किया गया था। शायद चालू वर्ष में इनकी जरूरत न पड़े।
यदि 2021 से तुलना की जाए तो वृहद अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर नजर आती है। सन 2020-21 में 7.3 फीसदी की गिरावट के बजाय अर्थव्यवस्था 9.2 फीसदी की गति से विकसित होने को तैयार है। हालांकि अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं। असमानता बढ़ी है, रोजगार बढ़ाने की चुनौती हमारे सामने है, निजी खपत की मांग दो साल पहले की तुलना में आज भी कम है। मुद्रास्फीति बढ़ रही है और कीमतों के मोर्चे पर बीते वर्षों की स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।
कर राजस्व वृद्धि के मोर्चे पर भी उनका प्रदर्शन अच्छा रहा है लेकिन कर दायरा बढ़ाने के मामले में कुछ खास प्रगति नहीं हो सकती, यह कारण है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कर की हिस्सेदारी 9-10 फीसदी के आसपास ठहरी रही जबकि 2018-19 में यह 11 फीसदी थी। विनिवेश राजस्व में कमी (यह मानते हुए मार्च 2022 के समाप्त होने के पहले जीवन बीमा निगम का प्रारंभिक निर्गम आ जाएगा) की भरपाई अर्थव्यवस्था के उच्च नॉमिनल आकार तथा उसके कारण व्यय के मोर्चे पर मिली सुरक्षा से हो जाएगी। कई सरकारी विभागों द्वारा आवंटित राशि को खर्च न कर पाने से मदद मिलेगी। इससे 2021-22 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 6.8 फीसदी के स्तर पर सीमित रखने में मदद मिलेगी।
हालांकि लक्ष्य हासिल करने के तरीके को लेकर गंभीर सवाल उठेंगे। अर्थव्यवस्था के उच्च नॉमिनल आकार का लाभ (महंगाई समायोजन के बगैर आर्थिक वृद्धि 18 प्रतिशत रही जबकि बजट अनुमान 14 फीसदी का था) शायद 2022-23 में उपलब्ध न हो। इससे राजस्व वृद्धि की संभावनाओं पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। सरकार कई योजनाओं का धन व्यय करने में नाकाम रही यह भी चिंता की वजह है क्योंकि यह बात भी वृद्धि की संभावना को प्रभावित करेगी।
राष्ट्रीय अधोसंरचना पाइपलाइन, 4जी तकनीक, डिजिटल इंडिया मिशन, निर्यात उत्पादों पर शुल्क और कर में रियायत की योजना तथा जल जीवन मिशन में लक्ष्य से बहुत कम खर्च हुआ। कम से कम 2021-22 की पहली तिमाही में तो ऐसा ही हुआ। यदि अंतिम तिमाही में व्यय बढ़ता भी है तो सरकार को विभागों को योजनाओं में व्यय करने के लिए आवंटित राशि को खर्च न कर पाने की समस्या को हल करना होगा। सरकारी स्तर पर बेहतर निगरानी व्यवस्था वक्तकी जरूरत है।
सुधारों को लेकर 2021 के बजट की प्रतिबद्धताओं की बात करें तो निजीकरण के मामले में एयर इंडिया को टाटा के हाथ बेचना एक बड़ी उपलब्धि होगी, हालांकि इस मामले में सरकार की नकद प्राप्ति मात्र 3,000 करोड़ रुपये होगी। उस स्थिति में सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि एयर इंडिया सरकारी संसाधनों पर बोझ नहीं रह जाएगी। सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड का निजीकरण किया गया था लेकिन श्रम संगठनों ने इसे न्यायालय में चुनौती दी है और सरकार बिक्री प्रक्रिया में अनियमितताओं की जांच कर रही है। दो सरकारी बैंकों तथा एक निजी कंपनी के निजीकरण का प्रस्ताव भी प्रगति नहीं कर सका है। बीमा कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी को 51 फीसदी से कम करने संबंधी कानून पारित हो चुका है लेकिन सरकार ने सदन को आश्वस्त किया है कि हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम करने का अर्थ यह नहीं है कि सरकार प्रबंधन पर से नियंत्रण छोड़ देगी। निजीकरण को लेकर सरकार का प्रदर्शन मिलाजुला रहा है लेकिन कृषि और श्रम सुधारों के मामले मे कई सवाल सामने हैं। सन 2020 में पारित तीन कृषि कानून वापस ले लिए गए। अब सरकार के सामने न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी बनाने की एक और मांग है। चार नए श्रम कानून जिन्हें 2020 में पारित किया गया था उन्हें अब तक अधिसूचित नहीं किया जा सका है क्योंकि केवल आधे राज्य केंद्रीय श्रम कानूनों से सहमत हैं। इन्हें कब तक अधिसूचित किया जाएगा इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। ऐसे में आगामी बजट में अगर निजीकरण की नयी घोषणाएं होती हैं तो उन्हें विश्वसनीय कैसे माना जाएगा?
सीतारमण अगले सप्ताह 2022-23 का बजट पेश करेंगी, उसका परिदृश्य पिछले बजट से कतई कम चुनौतीपूर्ण नहीं हैं। इस वर्ष भी उनके सामने कई चुनौतियां हैं-उबरती अर्थव्यवस्था जिसके सामने कीमत और कमजोर खपत मांंग की चुनौती है, कर राजस्व बेहतर है कर दायरा बढ़ाने से और सुधर सकता है, सरकारी विभागों की व्यय क्षमता कमजोर है, निजीकरण पर मिलेजुले संकेत हैं और कृषि और श्रम सुधार स्थगित हैं।
फरवरी-मार्च में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जिनका असर बजट की कवायद पर पड़ सकती है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त पहले ही कह चुके हैं कि बजट में की जाने वाली घोषणओं पर आचार संहिता लागू नहीं होगी। ऐसे में सीतारमण बजट में ऐसी घोषणाएं कर सकती हैं जो पार्टी को चुनाव जीतने में मदद कर सकें। लेकिन इस मोड़ पर अगर शिथिलता बरती जाती है तो इसकी कीमत आगे चलकर चुकानी होगी।
सीतारमण को भी अहसास होगा कि अर्थव्यवस्था में गिरावट आने के बाद बनाए जाने वाले बजट की तुलना में सुधार की प्रक्रिया के दौरान बनने वाला बजट पेश करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है।
