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  लेख  विदेशों में जमा काला धन स्वदेश लाना महज सपना ही होगा
लेख

विदेशों में जमा काला धन स्वदेश लाना महज सपना ही होगा

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —April 27, 2009 8:36 PM IST
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जिन लोगों का झुकाव भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी की ओर है, उन्हें भी यह बात पहेली जैसी लगती है।
अगर आडवाणी राम मंदिर का निर्माण चाहते हैं तो फिर उन्होंने यह क्यों कहा कि जिस दिन बाबरी मस्जिद गिराई गई थी, वह उनके जीवन का सबसे दुखद दिन रहा था? अगर जिन्ना हिंदू विरोधी बावले थे और उनकी वजह से ही विभाजन हुआ तो फिर आडवाणी को यह कहना क्यों जरूरी लगा कि जिन्ना धर्मनिरपेक्ष थे।
ऐसे में इसमें बहुत ज्यादा हैरानी नहीं होनी चाहिए कि विदेशी बैंकों में जमा 25 लाख करोड़ रुपये का काला धन वापस लाने का आडवाणी का बयान संशयवाद को ही जन्म देता है। वित्त मंत्रालय के पूर्व आर्थिक सलाहकार अशोक देसाई ने इसे आडवाणी की गलती बताया तो कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा कि आडवाणी जिस अध्ययन का हवाला दे रहे हैं, उसे वह तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं।
जयराम ने कहा था कि आडवाणी ग्लोबल फाइनैंशियल इंटिग्रिटी (जीएफआई) की जिस स्टडी की बात कर रहे हैं उसमें कहा गया है कि 2002-06 के दौरान हुए आयात-निर्यात में ज्यादा बिलिंग-कम बिलिंग के जरिए सालाना 4.7-22.7 अरब डॉलर की रकम काले धन के रूप में एकत्रित की गई, लेकिन भाजपा नेता ने सिर्फ ऊपरी दायरे (22.7 अरब डॉलर) की बात की।
इसके बाद जीएफआई के क्लार्क जी. ने कहा कि जयराम ने उनकी रिपोर्ट के बारे में गलत कहा और रिपोर्ट में इसका वास्तविक दायरा 22.7-27.3 अरब डॉलर बताया गया था। दूसरे शब्दों में आडवाणी ने इसके बारे में गलत नहीं कहा था। हालांकि दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं।
आडवाणी और क्लार्क जिस आंकड़े की बात कर रहे थे, रिपोर्ट में इसकेबारे में भी एक टेबल है जिसमें विश्व बैंक की प्रक्रिया के जरिए 4.7 अरब डॉलर का जिक्र किया गया है। (27.3 अरब डॉलर का मतलब यह हुआ कि पांच साल में 6.8 लाख करोड़ रुपये की रकम पांच साल में जमा की गई होगी, आडवाणी का 25 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा इसी दायरे में है।
आडवाणी का कहना है कि इस रकम को वापस लाकर वे इसे विकास कार्य में लगाएंगे, टैक्स की दर कम करेंगे आदि। कांग्रेस ने भी इस पर बहुत कुछ कहा है। सर्वोच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका पर उसने कहा है कि भारत का काला धन वापस लाने के लिए वह एक योजना का खुलासा करेगा।)
जयराम ने रिपोर्ट के एक और दोष को रेखांकित किया है। प्रक्रियागत मुद्दे के अलावा उनका कहना है कि जीएफआई की रिपोर्ट में सिर्फ आयात-निर्यात की सही कीमत नहीं लगाए जाने का ही जिक्र किया गया है, इसने उस पूंजी प्रवाह का जिक्र नहीं किया है जो देश में लाई जा रही है।
दूसरे शब्दों में भारतीय कारोबारी कर चोरी के लिए सुरक्षित बने उन देशों में जमा रकम भारत ला रहे हैं और उसे यहां निवेश कर रहे हैं, निश्चित रूप से इसकी पड़ताल की आवश्यकता है? यह उकसाने वाली बात नजर आती है, लेकिन भारतीय कारोबारी क्यों पहले आयात-निर्यात की गलत कीमत के जरिए रकम बाहर ले जाते हैं और बाद में इसे यहां वापस लाते हैं?
देसाई ने जीएफआई की प्रक्रियागत मामले पर कई आलोचनाएं पेश की हैं। पहले जीएफआई और फिर आडवाणी के आकलन के बारे में मान लेते हैं कि वे सही हैं। लेकिन उसके बाद क्या होगा? पर यह सच के कितने करीब है कि आडवाणी ने काले धन को वापस लाने का जो वादा किया है, वह उसे पूरा कर पाएंगे।
यहां आपको बता दें कि जब भाजपा सत्ता में थी तो कर चोरी की एक और सुरक्षित जगह मॉरिशस की चर्चा जोरों पर थी, विदेशी संस्थागत निवेशक टैक्स चुकाने से बचने के लिए वहां से रकम लेकर आते थे, लेकिन तब भाजपा ने कुछ भी सार्थक काम नहीं किया।
ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि स्विस बैंक ने अमेरिका जैसे देश के दबाव में 80 करोड़ डॉलर देने पर सहमति जताई है और कर चोरी करने वाले 300 लोगों के बारे में जानकारी देने की बात कही है, लेकिन क्या भारत को इस तरह की जानकारी देंगे? यहां बाबरी मस्जिद के बारे में नारे का जिक्र किया जा सकता है और यह मामला भी कुछ उसी तरह का है एक धक्का और दो…
भारतीय जनता पार्टी के टास्क फोर्स का कहना है कि यह काम काफी मुश्किल भरा होने जा रहा है। रिपोर्ट के दो हिस्से को उध्दृत किया जाना जरूरी लगता है। पश्चिमी देश जानते हैं कि स्विस बैंक और कर चोरी के लिए दूसरी सुरक्षित जगह में किन लोगों के अकाउंट के बारे में पूछा जाएगा और इस गुप्त दीवार को तोड़ने के लिए भारत को आसान मॉडल की दरकार है।
जब तक कि स्विस बैंक और कर चोरी के दूसरे स्थान कानून में बदलाव लाने पर सहमत नहीं हो जाते, तो फिर कोई रास्ता नहीं है जिसके जरिए भारत सरकार या दूसरी सरकारें संपत्ति को वापस लाने की कोशिश कर सकती है।
जीएफआई के प्रमुख रेमंड बेकर ने फाइनैंशियल टाइम्स में लिखे आलेख में एक और पहलू का जिक्र किया है – यहां तक कि जी-20 देशों को कर चोरी के लिए सुरक्षित बने बैंकों के बारे में पता चल गया है, लेकिन ऐसा निवेदन करने वाले देशों पर ही यह साबित करने की जिम्मेदारी है कि जिस सूचना की मांग की गई है वह संदिग्ध अपराध या करवंचना के लिहाज से प्रासंगिक है।
दूसरे शब्दों में, भाजपा को सक्षम रूप से साबित करने की दरकार होगी कि विदेश में जो धन जमा किया गया है वह धोखाधड़ी के जरिए कमाया गया था। और अगर आप मान लें कि स्विस और दूसरे बैंकों ने नाम सार्वजनिक कर दिया तो फिर क्या होगा? राजनेताओं के चुनावी शपथ-पत्र में उनकी ज्ञात संपत्ति का ही जिक्र होता है, लेकिन भाजपा ने इस संबंध में क्या किया है?
वास्तव में पार्टी ने विरोध भी नहीं किया जब पिछले कुछ सालों में संप्रग सरकार ने अपने समर्थक उद्योगपतियों को एयरपोर्ट अनुबंध, टेलीकॉम लाइसेंस और दूसरे फंडों के जरिए अरबों डॉलर दे दिए। अगर आप चाहें तो भाजपा को वोट दे सकते हैं, लेकिन इसलिए नहीं कि पार्टी विदेशी बैंकों में जमा 25 लाख करोड़ रुपये का काला धन वापस लाने जा रही है और इसका इस्तेमाल सड़कों के विकास या भारत के गांवों को पानी उपलब्ध कराने में करेगी। यह सपने की तरह ही है।

bringing back black money in india which is deposited in foregion is just dream
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