अमेरिका की व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई इन दिनों वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों से मुलाकात करने और भारत-अमेरिका व्यापार नीति मंच को दोबारा शुरू कराने के लिए भारत में हैं। डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिकी प्रशासन में यह चार वर्ष से अवरुद्ध था। ताई का भारत आने का एजेंडा एकदम स्पष्ट है। उसका काफी हिस्सा, अमेरिकी कारोबारी समुदाय के सदस्यों के साथ महीनों तक चले मशविरे, कैपिटल हिल के प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ चर्चा तथा मौजूदा प्रशासन की अन्य शाखाओं के साथ बातचीत के बाद तैयार हुआ। इसमें एजेंडे में भारत की डिजिटल नीतियां (डेटा का स्थानीयकरण तथा अमेरिका स्थित बहुराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कंपनियों पर कर लगाना) तथा अन्य नियामकीय बाधाएं, शुल्क तथा भारत सरकार की हालिया निर्यात को बढ़ावा देने वाली नीतियां आदि सभी शामिल हैं। विश्व व्यापार संगठन की समस्याओं पर भी चर्चा की जाएगी तथा इसके साथ ही पर्यावरण कारकों और व्यापारिक रिश्तों के अंतर्संबंधों पर भी।
ताई यह लालच भी दे सकती हैं कि भारत को अमेरिका सरकार की जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज स्कीम में दोबारा शामिल किया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो एक बार फिर भारतीय निर्यातकों को अमेरिका के आकर्षक बाजार में अबाध पहुंच हासिल होगी। इसका इस्तेमाल खासतौर पर कम मार्जिन और श्रम आधारित क्षेत्रों में किया जाएगा। खेद की बात है कि ताई के भारतीय वार्ताकार शायद उतने तैयार नहीं हों जितना कि अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि हैं। सच तो यह है कि द्विपक्षीय रिश्ते ने जहां अतीत के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई है, वहीं आर्थिक एजेंडा हमेशा से ठोकर खा जाता है। दूसरे मामलों में-उदाहरण के लिए अमेरिका-चीन या अमेरिका-यूरोपीय संघ के रिश्तों में विभिन्न क्षेत्रों में लेनदेन एकदम स्पष्ट है। मसलन व्यापार नीति के मोर्चे पर कुछ रियायतों को संतुलित करने के लिए अमेरिका में निर्मित विमानों की बड़ी खरीद की जा सकती है। यदि ‘रणनीतिक साझेदारी’ का कुछ अर्थ है तो वह यही है कि व्यक्तिगत क्षेत्रों में लाभ हानि का आकलन एक व्यापक और दीर्घकालिक तस्वीर के आधार पर किया जाता है। इससे भारत को व्यापार के मोर्चे पर कुछ दौर की सफलता मिल सकती है और शायद आर्थिक रिश्तों को भी नया बल मिलेगा। लेकिन इसके लिए भारतीय अफसरशाही को अधिक प्रभावी तथा केंद्रित प्रयास करने होंगे। उदाहरण के लिए भारतीय अफसरशाही को चाहिए कि व्यापार को लेकर सरकार के सभी अंग सामंजस्य के साथ काम करें। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि या अन्य प्रमुख कारोबारी साझेदार देशों के ऐसे समकक्ष विभिन्न भारतीय मंत्रियों तथा अधिकारियों से मिलते हैं, इनमें से प्रत्येक को तमाम मुद्दों और आगे बढऩे की संभावित राह की जानकारी होनी चाहिए। उनकी जानकारी केवल उनके मंत्रालय या विभाग तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। विदेशी राजनयिकों या वार्ताकारों के समक्ष उनकी बात विभिन्न विभागों से मिलने वाली प्रतिपुष्टि तथा कारोबारी जगत के प्रासंगिक अंशधारकों संसद से मिली सूचनाओं के मुताबिक अद्यतन होनी चाहिए।
इसके अलावा यात्रा के दौरान पूरा तालमेल होना चाहिए ताकि हर भारतीय उच्चाधिकारी ताई के साथ शून्य से बात न शुरू करे बल्कि यात्रा की पिछली बैठक में हो चुकी चर्चा से आगे बात की जाए। यह सही है कि भारतीय विदेश नीति तथा वाणिज्य अफसरशाही में क्षमता की उल्लेखनीय कमी है। इसके बावजूद कई सप्ताह पहले बन चुकी उच्चस्तरीय यात्रा के दौरान तालमेल की कमी को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अतिरिक्त प्रयासों का लाभ रिश्तों को आगे बढ़ाने की प्रणाली के विकास तथा व्यापारिक मोर्चे पर दोनों पक्षों की संतुष्टि के रूप में सामने आएगा। इसमें तथा अन्य द्विपक्षीय रिश्तों में सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के मोर्चे पर असंतुलन को तभी दूर किया जा सकता है जब भारतीय अफसरशाही ज्यादा सामंजस्य के साथ काम करना शुरू कर दे।
