नई पेंशन स्कीम सरकार की विभिन्न महत्त्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। अगर यह कामयाब रही तो यह भारत की बचत आदत को परिवर्तित कर सकती है।
अब लाखों भारतीयों, जिनके पास लंबी अवधि के लचीले बचत विकल्प नहीं हैं, को नया विकल्प मिल गया है, चाहे वे जहां भी रहते हों या नौकरी करते हों।
डाकघर के खाते और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के विपरीत एनपीएस खाता खोलना और इसका संचालन काफी आसान होगा क्योंकि इसके लिए करीब 16 बैंक तैयार हैं और छह दूसरे संगठन (एलआईसी और रिलायंस कैपिटल) भी ऐसी सेवा उपलब्ध कराएंगे। ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि आप जहां भी जाएंगे, ये सेवाएं मिलती रहेंगी।
जो कोई भी इस योजना में शामिल होगा, उसे सेंट्रल रिकॉर्डकीपिंग एजेंसी (सीआरए) की तरफ से खास नंबर मिलेगा और किसी बैंक की शाखा में भुगतान करने पर सीआरए की खास खाता संख्या में अपने आप रकम जमा हो जाएगी। यहां छह फंड मैनेजरों में से एक को चुनने के साथ ही निवेश की अलग-अलग रणनीति भी मौजूद है, हालांकि हर रणनीति के अपने-अपने जोखिम होंगे।
भविष्य निधि के नियामक के मुताबिक, एनपीएस के लिए करीब 8 करोड़ लोगों का बाजार है। इन्वेस्ट इंडिया फाउंडेशन के मुताबिक, (8 करोड़ के आंकड़े का स्रोत), यहां सालाना निवेश के लिए 55 हजार करोड़ रुपये है। तीन साल के भीतर यहां जमा रकम दशकों पुराने ईपीएफओ के बराबर हो जाएगी।
समस्या इसकी फीस की संरचना को लेकर है। स्कीम काफी मितव्ययी है – एनपीएस के फंड मैनेजर बतौर मैनेजमेंट फीस 0.0009 फीसदी की रकम लेंगे। क्या वे इस तरह रकम बना पाएंगे, यह एक सवाल है। लेकिन बचतकर्ताओं पर दूसरी लागत भी आएगी।
उदाहरण के तौर पर सीआरए खाते के रखरखाव के लिए 350 रुपये सालाना वसूलेगा, 10 रुपये प्रति अंशदान पर वसूलेगा और पहले साल खाता खुलवाने में 50 रुपये लेगा। खाता खुलवाने के लिए बैंक 40 रु. वसूलेगा और प्रति लेन-देन 20 रु. वसूलेगा। जो कोई सालाना 6 हजार रु. बचत करता है उसे सीआरए को 12 किस्तों में 520 रु. प्रति किस्त देनी होगी (बाद में 470 रु.) और 280 रु. बैंक को देने होंगे (बाद में 240 रु. )यह शुरुआती साल में 12 फीसदी का सर्विस चार्ज है।
चूंकि कोई योजना रिटेल स्तर पर ही कामयाब या नाकाम होती है, बैंकों को इस योजना के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है। पहले साल में बैंक एक ग्राहक से सिर्फ 280 रु. कमाएंगे, चाहे उनका निवेश कितना भी हो। (बाद में 240 रु.)। अगर कोई ग्राहक 10 हजार रु. निवेश करता है तो एसबीआई 240 रु. कमाएगा।
अगर वही रकम म्युचुअल फंड में निवेशित होगी तो एसबीआई को 250 रु. मिलेंगे और अगर इसे बीमा प्रॉडक्ट में निवेश किया जाएगा तो उसे 600-700 रु. मिलेंगे। अगर 60 हजार रु. निवेश किए जाएंगे तो एनपीएस के जरिए एसबीआई को 240 रु. मिलेंगे, म्युचुअल फंड के जरिए 1500 रु. और बीमा प्रॉडक्ट के जरिए 4 हजार रु.।
एनपीएस में मोटी रकम निवेश करने वाले यानी बड़े बचतकर्ता का भार कौन बैंक लेगा? और कौन सा छोटा बचतकर्ता अपनी बचत का 12 फीसदी हिस्सा अलग करना चाहेगा? एनपीएस लोकप्रिय हो सकती है लेकिन अपनी ही ताकत के बूते, इसलिए नहीं कि एजेंट इसे बढ़ावा देंगे।
