वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को अर्थव्यवस्था की मध्यावाधि समीक्षा पेश की। असल में, राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआर बीएम), कानून के तहत ऐसा करना अब जरूरी बना दिया गया है,
ताकि लोगों को सरकारी खजाने की स्थिति के बारे में जानकारी मिल सके। इस समीक्षा के मुताबिक इस साल हमारा देश सात फीसदी या उससे ज्यादा की रफ्तार से आर्थिक तरक्की करेगा। सुनने में ये आंकड़े तो काफी अच्छे लगते हैं, लेकिन शायद इन्हें बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है।
इसका मतलब यह हुआ कि वित्त वर्ष की पहली दो तिमाही में अर्थव्यवस्था 7.8 फीसदी से बढ़ी है, तो अब मंत्रालय के मुताबिक बाकी की दोनों तिमाही में यह दर कम होकर 6.2 फीसदी तक रह जाएगी।
लेकिन सितंबर के बाद से कारोबारी तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। बिक्री दिनोंदिन कम होती जा रही है और घटती मांग को देख कीमतें भी घट रही हैं। इसलिए अगर इस पूरे साल हमने सात फीसदी की रफ्तार से तरक्की की भी तो वह एक बड़ी बात होगी।
इस समीक्षा के साथ एक और बड़ी दिक्कत है। एक तरफ तो इसमें आने वाले महीनों में अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन पर असर डालने वाले घरेलू और विदेशी मुद्दों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। लेकिन दिक्कत यह है कि इसमें अगले वित्त वर्ष को लेकर कोई पूर्वानुमान नहीं लगाए गए हैं।
यह जानना काफी जरूरी है कि सरकार इस बारे में क्या सोचती है क्योंकि कई लोगों के मुताबिक आने वाला साल, इस साल से भी ज्यादा खतरनाक होगा। राजकोषीय हालत के बारे में ध्यान देने की सचमुच जरूरत है।
अगर सरकारी खर्च के सितंबर यानी वित्त वर्ष की पहली छमाही के आंकड़ों को देखें तो योजनागत व्यय का 45 फीसदी और गैर योजनागत व्यय का 47 फीसदी हिस्सा खर्च किया जा चुका था। इसे बुरा तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन कम होती विकास दर से निपटने के लिए सरकारी व्यय को बढ़ाना एक कारगर हथियार होता है।
इस महीने की शुरुआत में घोषित किए गए राहत पैकेज के अलावा सरकार को अपने खर्चों में इजाफा करने के लिए हर उस तरीका का इस्तेमाल करना चाहिए, जो बजट में उसे मिला है।
इसका सबसे आसान तरीका यह है कि जिन विभागों और मंत्रालयों ने अपने बजट आबंटन का सिर्फ थोड़ा हिस्सा खर्च किया है, उन पर ज्यादा खर्च करने के लिए दबाव बनाया जाना चाहिए।
बड़े मंत्रालयों में से इस साल बजट में मिली रकम को खर्च करने में सबसे ज्यादा काहिलपना मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने दिखाया। उसने वित्त वर्ष में 34 हजार करोड़ रुपये की सालाना योजनागत राशि में से पहली छमाही के दौरान सिर्फ 30 फीसदी खर्च किया है।
ऊर्जा और पंचायती राज मंत्रालयों को भी बजट में मोटी रकम मिली थी, लेकिन उन्होंने भी सालाना योजनागत राशि का सिर्फ 20 और 28 फीसदी हिस्सा ही सितंबर तक खर्च किया है। वित्त मंत्रालय भी अपनी झोली में मौजूद 49 हजार करोड़ रुपये का 43 फीसदी हिस्सा ही पहले छह महीनों में खर्च करने में कामयाब रही है।
ग्रामीण विकास और शहरी विकास मंत्रालय ही खर्च करने के मामले में सही राह पर चल रहे हैं। अगर हमें अर्थव्यवस्था में जान फूंकनी है, हमें यह काम जल्द से जल्द करना होगा। सरकार को जारी की गई रकम को खर्च करने के मामले में चुस्ती दिखानी ही पड़ेगी।