गत सप्ताह आयोजित कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक के बारे में कांग्रेस सांसद और पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘बैठक का मिजाज मेलमिलाप वाला था। वहां किसी पर कोई हमला नहीं किया गया।’ कार्य समिति की बैठक के माहौल का उल्लेख करने की जरूरत पड़ी यह बात अपने आप में महत्त्वपूर्ण थी।
बैठक चार घंटे चली। उसमें कुछ प्रस्ताव पारित किए गए लेकिन शब्दों का कोई आदानप्रदान नहीं हुआ। यह गत जनवरी में आयोजित सीडब्ल्यूसी से एकदम अलग है जब पार्टी के नेताओं ने स्तब्ध होकर देखा कि कैसे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी नेता अंबिका सोनी ने पार्टी में चुनाव की मांग कर रहे नेताओं के खिलाफ आक्रामकता दिखाई और उन पर सवाल खड़े किए।
गहलोत ने उन नेताओं से पूछा था, ‘कौन पहचानता है आपको?’ उनका यह सवाल स्पष्ट रूप से आनंद शर्मा और गुलाम नबी आजाद की ओर था जो अपने सहयोगियों यानी तथाकथित 23 नेताओं के समूह जी23 की ओर से पार्टी में चुनाव कराने और पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग कर रहे थे। शर्मा ने प्रतिरोध में कहा था, ‘किसी ने आपको यह अधिकार नहीं दिया है कि आप बदतमीजी करें।’ वहां मौजूद लोगों ने पूरे मामले को वक ्य युद्ध में तब्दील होने से रोका। चौधरी समेत वहां मौजूद तमाम लोग हिल गए थे।
इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपनी बात को दमदार ढंग से रखा। उन्होंने कहा, ‘अगर आप मुझे ऐसा कहने की इजाजत दें तो मैं कहना चाहूंगी कि मैं ही पूर्णकालिक कांग्रेस अध्यक्ष हूं…’ जी23 के नेताओं ने भी निजी बातचीत में स्वीकार किया कि किसी ने उनकी नेतृत्व क्षमता पर प्रश्न नहीं किया, लेकिन बुनियादी सवाल अभी भी अनुत्तरित है: वास्तव में कांग्रेस पार्टी कौन चला रहा है।
महाराष्ट्र के हालिया राज्य सभा चुनावों का उदाहरण लेते हैं। वहां राज्यसभा की सीट राजीव शंकर राव सातव के निधन के कारण खाली हुई थी जो सन 2010 से 2014 तक युवा कांग्रेस के अध्यक्ष थे और जिन्होंने राहुल गांधी के साथ करीबी तालमेल करके सांगठनिक चुनाव कराये थे। ये चुनाव काफी समय बाद हुए थे। उन्हें बाद में राज्य सभा सदस्य बनाया गया था। महज छह महीने बाद उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी प्रज्ञा जो पेशे से चिकित्सक हैं, वह कांग्रेस से अपना नामांकन चाहती थीं। उनकी मां भी नामांकन चाहती थीं और वह कांग्रेस की पुरानी कार्यकर्ता हैं। परंतु इसके बजाय सीट बीड की नेता रजनी पाटिल को दे दी गई जिन्होंने सन 1990 के दशक में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली थी लेकिन कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथ में आने के बाद उन्होंने वापस कांग्रेस का रुख कर लिया। पाटिल का नाम उस मूल सूची में शामिल था जो महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को राज्य विधानसभा के उच्च सदन में शामिल करने के लिए सौंपी गई थी।
कोश्यारी ने कई महीनों तक इन अनुशंसाओं पर निर्णय नहीं लिया। इस स्थिति में पाटिल को राज्य सभा भेज दिया गया और शायद सातव की पत्नी को उनकी जगह विधान परिषद भेजा जाएगा। इसका सीधा नुकसान पूर्व मुख्यमंत्री और पृथ्वीराज चव्हाण और कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक को हुआ।
दोनों ने यह बात स्पष्ट कर दी थी कि वे राज्य सभा में ज्यादा योगदान दे सकते हैं। उनमें से एक ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि पाटिल का नामांकन इसलिए किया गया क्योंकि राहुल चाहते थे कि साटव के साथ कुछ अच्छा हो सके क्योंकि वह उन्हें ‘अपना आदमी’ मानते थे लेकिन सोनिया पारिवारिक मामले में शामिल होने का विरोध कर रही थीं।
चौधरी कहते हैं कि उन्होंने बैठक में राहुल गांधी से कहा कि वह अधिक सक्रिय भूमिका अपनाएं। उन्होंने कहा, ‘आपको पार्टी अध्यक्ष बनना होगा। टालने से नहीं होगा।’ उन्होंने लखीमपुर खीरी की घटना में गांधी की सक्रिय भूमिका का हवाला दिया जिसके बाद राज्य सरकार को मंत्री के बेटे को गिरफ्तार करना पड़ा। उनका दावा है कि उनके तथा अन्य नेताओं के आग्रह पर ही राहुल ने संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया और कहा कि वह इस बारे में सोचेंगे।
पार्टी में मौजूद निंदकों का कहना है कि चौधरी तथा उनके जैसे अन्य नेता, पार्टी में मौजूद दोहरी निर्णय प्रक्रिया से लाभ ले रहे हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के शर्मनाक प्रदर्शन के बावजूद वह प्रदेश अध्यक्ष बने हुए हैं। जबकि खुद चौधरी के संसदीय क्षेत्र बहरामपुर में पार्टी सभी विधानसभा क्षेत्रों में तीसरे स्थान पर रही। दूसरी ओर नेतृत्व को लेकर निर्णय टाले जाने से कोई आश्चर्यचकित नहीं हुआ।
दिल्ली के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित कहते हैं, ‘पार्टी में हर पांच वर्ष में चुनाव होने चाहिए। पिछली बार 2017 में चुनाव हुए थे। इस हिसाब से तो सब समय से चल रहा है। जहां तक राहुल की बात है, तो यह निर्णय उन्हें करना है। मुझे किसी बात से आश्चर्य नहीं हुआ है। आप और क्या आशा करते हैं? यह बैठक सबको शामिल करने के लिए बुलाई गई थी। पिछली सीडब्ल्यूसी में कुछ लोगों ने विरोध का रुख अपनाया था। श्रीमती गांधी की यही शैली है। अगर कुछ मतभेद हैं तो कोई बात नहीं…।’
जी23 के नेताओं ने सोनिया गांधी के इस निर्देश के बाद बात करने से इनकार कर दिया कि अगर उन्हें उनसे कुछ भी कहना है तो मीडिया के माध्यम से न कहा जाए। एक नेता ने कहा, ‘वे बस हमें पार्टी से बाहर निकालने के बहाने तलाश रहे हैं।’ लेकिन सीडब्ल्यूसी से पहले चर्चा यह थी कि कपिल सिब्बल तथा समूह के अन्य नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे कहते हैं कि चुनाव जीतना या हारना राजनीति का हिस्सा है लेकिन स्पष्ट नेतृत्व का अभाव अखरता है।
कांग्रेस में अगले वर्ष सितंबर-अक्टूबर में चुनाव कराए जाएंगे। इस बीच उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव हो जाएंगे। जी23 भी उन चुनावों के नतीजे का इंतजार कर रहा है।
