वर्ष 2020 के आरंभ में कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर दूसरी बार अपने देश से बाहर निकले और भारत आए हैं। यह तथ्य अपने आप में काफी महत्त्वपूर्ण है। यह विडंबना ही है कि दोनों देशों के बीच शीर्ष स्तर की इस वार्ता में भी अमेरिका और चीन की छाया साफ महसूस की जा सकती है। दोनों देशों के नेताओं के पास इस शिखर बैठक से असंतुष्ट होने की कोई वजह नहीं है, कम से कम इसलिए कि भारत और रूस दोनों को यह अवसर मिला कि वे अपने स्वतंत्र कौशल के दायरे को लेकर परिपूर्ण वक्तव्य जारी कर सकें। पुतिन ने भारत को एक बड़ी ताकत और आशाओं पर खरा उतरने वाला मित्र करार दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पुतिन की यात्रा को भारत के साथ रिश्तों की प्रतिबद्धता दर्शाने का उदाहरण बताया। चूंकि इन बैठकों का पाठ अमेरिका और चीन में भी किया जाएगा इसलिए यह कहना उचित होगा कि इस शिखर बैठक से निकले राजनीतिक संकेेत अन्य किसी भी लाभ की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इस दौरान बड़ी घटना रही छह लाख एके-203 असॉल्ट राइफल के संयुक्त उत्पादन का समझौता। यह समझौता अपेक्षित था और मोदी मार्च 2019 में अमेठी में इसकी घोषणा कर चुके थे। ये राइफल उत्तर प्रदेश के कोरवा में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत बनाई जाएंगी। दोनों देश आपसी सैन्य सहयोग को 2031 तक बढ़ाने पर भी सहमत हो गए हैं। यह एक जरूरी कदम है क्योंकि भारत ढेर सारे रूसी सैन्य उपकरणों का इस्तेमाल करता है। इनमें सुखोई लड़ाकू विमान से लेकर टैंक, पनडुब्बियां, पोत और लड़ाकू वाहन आदि शामिल हैं जिनके लिए कलपुर्जों की आपूर्ति लंबे समय से चिंता का विषय बनी हुई थी।
परंतु इस शिखर बैठक की बड़ी सुर्खी जिसने शायद दोनों देशों के बीच की संवेदनशीलता को उजागर किया है वह यह है कि दोनों देशों के बीच रक्षा लॉजिस्टिक्स साझेदारी समझौता नहीं हो सका। समझौते की पूरी तैयारी हो चुकी थी और हस्ताक्षर किए जाने थे लेकिन रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव के एक वक्तव्य ने कूटनयिक गतिरोध पैदा कर दिया। भारत द्वारा रूस की एस-400 हवाई रक्षा मिसाइल प्रणाली की विवादित खरीद, जिसके लिए अमेरिका ने अन्य देशों को प्रतिबंधित किया है, का जिक्र करते हुए लावरोव ने कहा था कि भारत का इसे खरीदने के लिए आगे आना दिखाता है कि वह एक संप्रभु देश है। उन्होंने कहा कि भारत ने यह खरीद ‘अमेरिका द्वारा भारत को अपने आदेश के सामने झुकाने’ के प्रयास के बावजूद की। अमेरिकी नेतृत्व में और चीन के खिलाफ बने क्वाड समूह में गहरे सहयोग के कारण संतुलन साधते हुए भारत को लगा कि ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर करना समझदारी नहीं होगी जिसमें एक दूसरे के रक्षा प्रतिष्ठानों की पहुंच सैन्य ठिकाने को दी जाए।
इस लिहाज से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का वह बयान भी रूसी रक्षा मंत्री के लिए कम शर्मिंदा करने वाला नहीं रहा जिसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा तथा चीन का अस्पष्ट संदर्भ देते हुए सिंह ने कहा कि ‘पड़ोस में असाधारण सैन्यीकरण हो रहा है और हथियार एकत्रित किए जा रहे हैं तथा उत्तरी सीमा पर बिना किसी उकसावे के आक्रामकता दिखाई जा रही है।’ कहा जा सकता है कि मोदी-पुतिन के बीच की नजदीकी के उलट प्रतिनिधिमंडल स्तर पर तालमेल में कुछ कमी रही। रूस भारत को यूरेशियन इकनॉमिक जोन में शामिल करना चाहता है लेकिन सबकी निगाहें पुतिन और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की वीडियो कॉल पर केंद्रित हैं जिसमें यूक्रेन को लेकर बात होगी। यूक्रेन की सीमा पर हजारों रूसी सैनिक जमा हैं और वहां आक्रमण का खतरा है। भारत को पता है कि अमेरिका क्रीमिया में 2014 में रूसी कब्जे के समय भारत की अस्पष्ट प्रक्रिया से सहज नहीं था। पुराने साथी के साथ संतुलन साधने की गुंजाइश कम होती जा रही है।
