अगर आप हमेशा की तरह वही पुराने स्टाइल वाला पिज्जा नहीं चुनना चाह रहे तो हम कह सकते हैं कि डीएलएफ प्लेस के स्टाइलिश इटैलिया में आप प्याज और पारमा हैम वाले बेहद पतले पिज्जा बेस के दीवाने हो जाएंगे।
इटैलिया लग्जरी मॉल एम्पोरियो की दिल्ली में एक ब्रांच है। ये मोजैरिला और टमाटर से आपके पिज्जा बेस को भर नहीं देते। और इसका बेस इतना पतला होता है कि आप इटली के किसी सड़क किनारे के कैफे से इसका मुकाबला करें तो कोई कमी ढूंढ़ने से भी नहीं मिलती। इस बात के लिए आपको मेरा विश्वास तो करना ही होगा।
575 रुपये से अधिक कीमत के साथ यह पिज्जा बेशक थोड़ा बहुत महंगा लगे, लेकिन इस रेस्टोरेंट के मेन्यु कार्ड में यह सबसे महंगी चीज तो कतई नहीं है। और इसके खानसामे दूसरे स्वादिष्ट व्यंजनों से आपका दिल जीतने की पूरी कोशिश करेंगे।
इस रेस्टोरेंट की खासियत है कि इसका मेन्यु बेंगलुरु के मशहूर खानसामे मंडार सुखांतर ने डिजाइन किया है, जिन्होंने लोकप्रिय एंटोनियो कार्लुशियो के साथ प्रशिक्षण हासिल किया है, जबकि रेस्टोरेंट का जिम्मा बकशीश डीन पर है, जो अपने क्षेत्र, खासतौर पर डिश पेश करने में माहिर हैं। अब दिमाग में सवाल यह उठता है कि छंटनी और आर्थिक संकट के इस दौर में क्या कोई यहां आता भी है?
अगर बात छंटनी या आर्थिक संकट की है तो इन सब चीजों से भारत के शीर्ष रेस्टोरेंट मालिकों को कोई खास फर्क नहीं पड़ता और यह बात इससे साफ हो जाती है कि इतने बड़े आकार वाले कई रेस्टोरेंट दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु सरीखे मेट्रो शहरों में खुल रहे हैं। यहां तक कि चेन्नई में शुध्द शाकाहारी व्यंजन वाला जैन वर्ल्ड कुजीन और कोलकाता में ताज बंगाल ने भी सूक को खाने के शौकीनों के लिए शुरू किया है।
बड़े रेस्टोरेंट की फेहरिस्त
अगर आपको हमारी बातों पर विश्वास नहीं है तो यह लीजिए इनकी छोटी सी फेहरिस्त: द पार्क के महत्वाकांक्षी नए उपक्रम इटैलिया के अलावा लोकप्रिय फैशन डिजाइन रोहित बल का किबो जो अपने भोजन और डिजाइन (रोम शैली की मूर्तियां, खांचों वाला फर्श, यहां तक कि संगमरमर के सुव्यवस्थित खांचों पर झरने के रूप में गिरता पानी…) आपको भारत से यूरोप ले जाएगा।
अशोका में कुंगैंग गोनी एक कोरियाई रेस्टोरेंट है जिसमें तीन कराओके कमरे हैं और डीएलएफ प्लेस का तमांग गैंग है। इसके साथ ही बेंगलुरु में समकालीन यूरोपीय रेस्टोरेंट केपबेरी है, जिसे ताज के एक पूर्व खानसामे ने इसे दी ओरियंट एक्सप्रेस से मुकाबला करने के लिए खोला है।
इसके अलावा बेंगलुरु का ही एक नया लग्जरी रेस्टोरेंट है शिरो, जिसके दूसरे रेस्टोरेंट मुंबई और गोवा में हैं और बेंगलुरु के केंद्रीय व्यावसायिक केंद्र के दिल में बसा है रकाबदार- जिसमें कीमत कुछ ज्यादा ही है। यहां के भोजन में कुरेशी वशंज-आईटीसी के मास्टर शेफ इम्तियाज कुरेशी के बेटे- अशफाक और इरफान के हाथों की 200 साल पुरानी पाक कला दिखती है, जिसमें आधुनिकता का जायका भी है।
मुंबई में हिटलर्स क्रॉस इस फेहरिस्त में शामिल नहीं है। यह अपने नाम के कारण विदेशियों में खासा प्रसिध्द है। लेकिन कोलाबा में राजा ढोढी का ओबा लाउन्ज है जो इस सूची में शामिल है। बड़ी खबर तो यह है कि इंडिगो के राहुल अकेकर जल्द ही अगला रेस्टोरेंट खोलने वाले हैं। लेकिन इस जमात में अकेकर अकेले नहीं हैं।
ऑलिव और एआई के एडी सिंह अगस्त-सितंबर में दिल्ली में अपना तीसरा ब्रांड- लैप (लाउन्ज ऐंड प्ले) फिल्म अभिनेता अर्जुन रामपाल के साथ लॉन्च करने की तैयारी में हैं। सिंह का कहना है, अर्जुन रामपाल का दिल्ली में डीप रूट्स नाम से एक रेस्टोरेंट है और वे लंबे अरसे से इस तरह की एक जगह चाहते थे।
… खाना-पीना नहीं हुआ कम
लेकिन ऐसी मंदी के बीच में एक रेस्टोरेंट क्यों शुरू किया जाए? सिंह काफी सहज भाव से बताते हैं कि इस जगह के लिए लगभग दो साल पहले से योजनाएं बनाई जा रही थीं और इसलिए इसे खोल रहे हैं। कई और रेस्टोरेंटों के लिए भी यही सच है, सभी परियोजनाओं के लिए उसी समय से योजनाएं बनाई जा रही थीं, जब समय काफी अच्छा था।
लेकिन सिंह सरीखे रेस्टोरेंट मालिकों का मानना है कि बेशक लोग अपनी जेब थोड़ी कम ढीली करें, ‘वे महंगी शराब की जगह कुछ कम कीमत वाली शराब लें, आयातित की जगह स्थानीय, ब्रंचेज (नाश्ते और दोपहर के भोजन के बीच का खाना) की जगह दोपहर का खाना ही लेंगे’ और बेशक इस वजह से बड़े रेस्टोरेंटों के लिए न नफा-न नुकसान की स्थिति कुछ समय बाद ही आए, लेकिन भारत में रेस्टोरेंटों की हालत इतनी बुरी भी नहीं है।
सिंह का कहना है, ‘हमारा उद्योग अधिक रफ्तार के साथ वापस लौट रहा है और यही वजह है कि हमें पश्चिम के मुकाबले मंदी को कम झेलना पड़ रहा है।’ भारत में बड़े रेस्टोरेंटों के खुलने के आंकड़ों को अगर दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले देखें तो यह काफी अटपटा लगता है।
मिसाल के तौर पर लंदन में गॉर्डन रामसे अपने बैंक के साथ विवादों में हैं और एक प्रमुख खानसामा-एंटनी वोरॉल थॉम्पसन ने बैंक से और अधिक कर्ज न मिल पाने के कारण अपने चार रेस्टोरेंट बंद कर दिए। जैसा कि हम सब जानते हैं, भारत में भी रिटेल की हालत बहुत अच्छी नहीं है।
केपीएमजी के एक हालिया सर्वेक्षण में कुछ अनुमान लगाए गए हैं- इस सर्वेक्षण के मुताबिक देश में 70 प्रतिशत रिटेलरों का मानना है कि उनके स्टोर में आने वालों की संख्या पर मंदी का बुरा असर पड़ा है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लाइफस्टाइल से जुड़ी चीजों की बिक्री में जबरदस्त गिरावट आने की उम्मीद है, लेकिन ‘फूड रिटेलिंग’ इससे कोसों दूर रहेगी।
लेकिन फूड रिटेलिंग एक बेहद छोटा सा हिस्सा है। रेस्टोरेंट उद्योग में जहां क्विक सर्विस रेस्टोरेंट में बिक्री तेजी से बढ़ रही है, वहीं महंगे रेस्टोरेंट मंदी और फिर आतंकी हमलों के शिकार बने हुए हैं- जिनमें होटलों में खुले रेस्टोरेंट भी शामिल हैं। अपने नाम छुपाए रखने की शर्र्त पर तो कई रेस्टोरेंट मालिक स्वीकार करते हैं कि बिक्री में 20 से 30 फीसदी की कमी आई है।
पश्चिमी देशों में कम कीमतों और मार्जिन बचाने के चलते जो कवायद देखने को मिल रही है, उसके मुकाबले भारतीय रेस्टोरेंट उद्योग में ऐसी घटनाएं कुछ कम देखी जाएंगी। और जब आप किसी से पूछते हैं कि मंदी का असर कैसा है, उम्मीद है कि आपको कुछ ऐसा ही जवाब मिलेगी, ‘… सच बताइए कि क्या आपको लगता है कि लोग, खासतौर पर जो महंगे रेस्टोरेंट में जाते हैं, वे खाने से पहले कीमतों पर ध्यान देते हैं?’ हो सकता है, लेकिन तभी जब वह महंगे विदेशी भोजन के एक छोटे से हिस्से के लिए ऑर्डर के एक एवज में एक बड़ी कीमत चुकाते होंगे।
ज्यादा जगह ज्यादा प्रयोग
जैसा कि मुझे बताया गया नई दिल्ली में दी लोदी के अमन में कैटालोनिया खूबसूरत संस्कृति और स्वादिष्ट भोजन के लिए एक सही जगह है। इसे आधुनिक स्पैनिश व्यंजनों की जन्मभूमि भी कहा जाता है।
दी लोदी में कैटालोनियन रेस्टोरेंट दो तलों में फैला हुआ है, नीचे तपस बार है और एक बड़ा मयखाना। आधुनिक स्वाद वाला भोजन भारतीयों के स्वाद के लिहाज से अच्छा है। 3,500 रुपये में (दो लोगों के लिए) और 500 रुपये में हर डिश वाले दोपहर के भोजन देखते हुए कहा जा सकता है कि रेस्टोरेंट बहुत महंगा तो नहीं है।
बेशक दी अमन खुद भी ऐसी ही किसी योजना पर काम कर रहा है और उसके बड़े रेस्टोरेंट जो रिजॉर्ट जितनी अधिक जगह को दिखाते हैं, उनका मंदी के बावजूद इसी फॉर्मेट पर खुलना बेहद जरूरी है। लेकिन जीएम एंटनी ट्रेस्टन यह भी कहते हैं कि एक बड़ी जगह को छोटे-छोटे वर्गों में बांट देना चाहिए, ‘ताकि ऐसा अहसास न हो कि आप किसी बड़ी जगह में खाली रेस्टोरेंट में बैठे हुए हैं।’
ऐसा ही कुछ दूसरे बड़े रेस्टोरेंटों ने भी किया है। इटैलिया में तीन अलग-अलग क्षेत्रों को डिजाइन किया गया है ताकि रेस्टोरेंट का असल में जितना फैलाव है उससे कम लगे- इसमें एक कैफै सरीखी सीटिंग बनाई गई है। इसके एल फ्रेस्को टैरेस पर बैठकर आप दिल्ली के रिज का नजारा देख सकते हैं।
बेंगलुरु में रकाबदार साढ़े चार मंजिलों (11,000 वर्गफुट) में फैला हुआ है, जिसमें दो मंजिले पूरी तरह से खाने की जगह के लिए हैं, जबकि बाकी जगह में लाउन्ज बार अयर बनाया गया है। इसमें मालिक मानते हैं कि फोरम मॉल के ठीक सामने होने की वजह से इन्हें अधिक कीमत चुकानी (लगभग 5 करोड़ रुपये की परियोजना) पड़ी है। उनका कहना है, ‘हम अपने ब्रांड को बाजार में जमाने के लिए जोश के साथ शुरुआत करना चाहते हैं।’
मंदी में मौका
बुध्दिजीवी मानते हैं कि संकट के दौर में लोग पैसा बनाने के लिए अपने ब्रांडों को मजबूती दिलाने की तरफ ध्यान देते हैं।
मुंबई के व्यवसायी, पूर्व इन्वेस्टमेंट बैंकर और हार्ड रॉक कैफे के लिए भारतीय फ्रैंचायजी जय सिंह भी इस मौके ही तलाश में हैं। उनकी कंपनी जेएसएम के पास लग्जरी डाइंनिंग ब्रांड ‘शिरो’ है, जिसका जापानी भाषा में अर्थ ‘किला’ है। साथ ही कंपनी की योजना इस वित्त वर्ष में रेस्टोरेंटों में लगभग 20 करोड़ रुपये खर्च करने की है।
बेंगलुरु में हाल ही में शिरो का एक नया रेस्टोरेंट 7,000 वर्गफुट से अधिक जगह में खोला गया है। इस रेस्टोरेंट की छत 65 फुट ऊंची है और सिंह की योजना चुनावों के ठीक बाद दिल्ली, हैदराबाद और कोलकाता में हार्ड रॉक के आउटलेट खोलने की है। उनका कहना है, ‘मंदी का असर हमारे कारोबार पर बहुत ज्यादा नहीं है।’ वे मानते हैं कि कॉर्पोरेट बुकिंग में कमी आई है।
‘हार्ड रॉक में हम तिमाही नतीजों के बाद पार्टी आयोजित किया करते थे। अब वहीं कर्मचारियों की विदाई की बुकिंग मिलती है।’ वे इस बात से इनकार नहीं करते कि इस क्षेत्र में निवेश में कमी आई है, उनका कहना है, ‘जो कभी इस क्षेत्र को बढ़िया मान कर अपना पैसा लगाने का फैसला किया करते थे, अब वे ऐसा नहीं करते। अमीर माता-पिता अब अपने बच्चों को नाइटक्लब खोलने के लिए तो पैसा नहीं देंगे।’
इस उपक्रम में पैसा लगाने वाले नदारद हैं और निजी इक्विटी फंडिंग से जुड़ी कंपनियां ने भी अपना हाथ खींच लिया है, लेकिन सलाहकार मनु मोहिंद्र का कहना है कि अगर आपके पास पैसा है तो निवेश करने का यह सही मौका है।
उनका कहना है, ‘किराये कम हैं, इस्पात और सीमेंट की कीमतें कम हैं और लोगों को पगार के साथ-साथ तरक्की भी उतनी नहीं देनी पड़ती।’ उनका कहना है कि 6 महीने पहले आप 2 करोड़ रुपये में भी एक रेस्टोरेंट नहीं शुरू कर सकते थे, लेकिन अब आप इस बारे में सोच सकते हैं।
मोहिंद्र का अनुमान है कि पिछले साल में 1,500 रेस्टोरेंट के मुकाबले इस साल लगभग 2,000 रेस्टोरेंट खुलेंगे। इनमें से 100 रेस्टोरेंट बड़े होंगे, जिनमें 100 से अधिक लोगों को बैठाने की क्षमता होगी। वह और उनकी पत्नी कई ऐसे रेस्टोरेंट का कारोबार संभाल रहे हैं, जिनमें 250 सीटों वाला गुड़गांव का पोलीनेशियन टिकी बार भी शामिल है।
कीमत का चक्कर
किबो में रोहित बल के पार्टनर आलोक अग्रवाल का कहना है, ‘अगर आप यह पूछते हैं कि क्या हर कोई रेस्टोरेंट में महंगा खाना खा सकता है तो सच मानिए नहीं। लेकिन, हां, कई लोग यहां आ सकते हैं।’ रोहित और आलोक इससे पहले दिल्ली के कनॉट प्लेस में वेदा के भी पार्टनर रह चुके हैं।
वेदा की ऊंची कीमतों की लोगों से आलोचना सुनने के बाद उन्होंने इस बार किबो में कीमतों का खास ध्यान रखा है। अग्रवाल का कहना है, ‘लोग महंगे दिखने वाले रेस्टोरेंट में बैठना तो चाहते हैं, लेकिन वास्तव में उस जगह को महंगा नहीं होना चाहिए।’
बेंगलुरु में शेफ और रेस्टोरेंट के मालिक अभिजीत साहा काफी जोश में हैं। क्युलिनरी इंस्टीटयूट ऑफ अमेरिका में अतिथि शिक्षक साहा के रेस्टोरेंट में कीमतें किसी भी पांच सितारा रेस्टोरेंट के मुकाबले 30 प्रतिशत तक कम हैं और उन्होंने अपने मुनाफे के अंतर को भी कम से कम रखा हुआ है।
उनका कहना है, ‘हमने अपने भोजन की कीमतें 15 से 20 प्रतिशत तक कम रखी हुई हैं और इससे ज्यादा हम कुछ नहीं कर सकते।’ चार लोगों के लिए 500 रुपये में दोपहर का भोजन किफायती है। जब उनसे पूछा गया कि वे अपने भोजन की गुणवत्ता को कैसे बरकरार रखते हैं तो उनका कहना था कि अब तक उन्हें ग्राहकों की ओर से उन्हें कोई शिकायत सुनने को नहीं मिली है।
