कोविड-19 का नया प्रकार जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ओमीक्रोन नाम दिया है, दुनिया के कई देशों में सामने आ चुका है। अभी इस बारे में कोई वैज्ञानिक प्रमाण सामने नहीं है कि यह प्रतिरोधक क्षमता को भेदने में सक्षम है या नहीं। अगर ऐसा हुआ तो टीका लगवा चुके तथा कोविड से उबर चुके लोगों के लिए जोखिम बढ़ जाएगा। यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह मौजूदा डेल्टा प्रकार से अधिक खतरनाक है या कम तथा इसका संक्रमण होने पर लोगों को अस्पताल में दाखिल कराने की जरूरत होगी या मौत के मामले डेल्टा की तुलना में ज्यादा होंगे या कम। इस बीच दक्षिण अफ्रीकी देशों से यात्राओं पर प्रतिबंध लगाए जाने लगे हैं। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सीरिल रामफोसा ने रविवार को एक भाषण में कहा कि यात्रा प्रतिबंध लगाने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और ऐसा करना गलत है।
जब भी ऐसे प्रतिबंध लागू किए जाते हैं तो देशों को सोचना चाहिए कि उन्होंने अपनी राष्ट्रीय व्यवस्था में वायरस के भविष्य के नए रूपों की आशंका को लेकर क्या प्रोत्साहन दिया। दक्षिण अफ्रीकी लोगों ने सबकुछ सही किया: उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी कोविड-19 जांच के नमूने जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जाएं ताकि वायरस के रूपों का पता लग सके और जब नया स्वरूप सामने आया तो उन्होंने तत्काल उससे जुड़े आंकड़ों को वैश्विक जन स्वास्थ्य समुदाय से साझा किया। अब अगर उस देश और उसके पड़ोसी देशों को निशाना बनाया जाएगा तो यह दिक्कतदेह है और इससे गलत नजीर पेश होती है। ऐसा होने पर भविष्य में नए प्रकारों की घोषणा में काफी देरी हो सकती है। हड़बड़ी में लगाए गए यात्रा प्रतिबंधों से कुछ लाभ हो या न हो लेकिन लंबी अवधि में यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए और अधिक खतरनाक हो सकते हैं।
कहने का अर्थ यह नहीं है कि भारत समेत अन्य देशों को ओमीक्रोन के उभार को लेकर आपात प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। निश्चित तौर पर हवाई अड्डों पर निगरानी और जांच के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को लेकर जरूरी कदम उठाने होंगे। भारत पहले ही ऐसा कर चुका है, बस उन्हें तत्काल लागू करने के बजाय 1 दिसंबर से लागू करने की बात कही गई है। इस देरी का कोई तुक नहीं समझ में आता है। लॉकडाउन की तरह ही यात्रा प्रतिबंधों का भी बहुत अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिला है। जन स्वास्थ्य प्रतिक्रिया के अन्य स्वरूप शायद नए प्रकार से निपटने में अधिक किफायती साबित हो सकते हैं।
जो प्रतिक्रियाएं दी जानी चाहिए उनमें लोगों के बीच कोविड की जांच का स्तर बढ़ाना शामिल है। लेकिन भारत में केवल इतना करना पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि यहां कोविड-19 के संक्रमण वाले नमूने बहुत कम संग्रहीत हो रहे हैं और उन्हें जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भी कम ही भेजा जा रहा है। खबरों के मुताबिक 0.5 फीसदी से भी कम नमूने जीनोम विश्लेषण के लिए भेजे जा रहे हैं। सच तो यह है कि समय के साथ इसकी औसत गति भी कम होती जा रही है। महीनों से यह चिंता जताई जा रही है कि जीनोम सीक्वेंसिंग सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। इस वर्ष के आरंभ में एक प्रासंगिक सरकारी समिति के प्रमुख ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि महामारी से निपटने की प्रमाण आधारित नीति निर्माण की प्रक्रिया को बाधित किया जा रहा है। ऐसी भी खबरें थीं कि सरकार को दूसरी लहर के कई सप्ताह पहले चेता दिया गया था कि बड़े पैमाने पर नमूनों में डेल्टा प्रारूप देखा जा रहा है। इन गलतियों को छिपाने के बजाय इनसे सबक लेना चाहिए। भारत को जांच बढ़ानी चाहिए और सीक्वेंस भी। इससे निकले आंकड़ों के आधार पर नीतिगत निर्णय लिए जाने चाहिए। ओमीक्रोन को लेकर यही सही प्रतिक्रिया होगी, न कि एक झटके से यात्रा प्रतिबंध लागू करना।
