भारत जैसे देश में बड़ी संख्या में ऐसी आबादी है जो स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकारी मदद पर निर्भर है।
ऐसे में जब सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम का विस्तार करने और उसके दायरे में पूरे देश को शामिल करने का फैसला किया तो समाज के सभी तबकों ने इस फैसले की भरपूर प्रशंसा की। दवाएं और डॉक्टर मरीजों को तो चंगा कर देते हैं लेकिन उनकी गरीबी का इलाज डॉक्टरों के पास भी नहीं है।
और जब तक वास्तविक रोग का उपचार न हो बीमारी लगी ही रहती है। ऐसे में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम का विस्तार देश के सभी जिलों में करने का हाल का फैसला गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
इस कार्यक्रम के तहत लाभार्थियों को अधिक सशक्त बनाया गया है। यहां तक कि इस कार्यक्रम में लाभार्थी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के मुकाबले अधिक सशक्त हैं। इस कार्यक्रम के तहत, लाभान्वितों को एक स्मार्ट कार्ड दिया जाएगा।
इस स्मार्ट कार्ड के जरिए लाभार्थियों और उसके परिवार वालों (अधिकतम पांच सदस्य) के इलाज में आए खर्च का भुगतान किया जा सकेगा। कार्यक्रम को असरदार बनाने के लिए बड़ी संख्या में अस्पतालों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत सूचीबद्ध किया गया है। इन अस्पतालों मंक मुफ्त इलाज कराया जा सकेगा।
इस कार्यक्रम की शुरूआत हरियाणा में हुई थी। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हूडा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बीते साल सितंबर में इस कार्यक्रम को राज्य के सभी जिलों में शुरू करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था।
राज्य में इस योजना के शुरूआती रुझानों को देखने के बाद गुजरात, केरल और उत्तर प्रदेश से भी ऐसे ही अनुरोध प्रधानमंत्री को मिले। विभिन्न राजनीतिक दलों ने इस योजना को काफी सराहा और लगभग सभी राजनीतिक दलों के मुख्यमंत्री इस योजना को लेकर काफी उत्सुक थे।
इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने बीते महीने योजना का देश के सभी शहरों में विस्तार करने का फैसला किया। इस योजना की खासियत यह है कि लाभार्थियों को साल में केवल 30 रुपये का भुगतान करना होगा।
इसके साथ ही सरकार वार्षिक स्वास्थ्य बीमा शुल्क के तौर पर प्रति लाभान्वित लगभग 600 रुपये का अंशदान करेगी। योजना के तहत कुल 30,000 रुपये का बीमा कवर दिया जा रहा है। सरकार के इस अंशदान के बाद यह योजना काफी आकर्षक बन जाती है।
यह योजना सभी के लिए फायदेमंद है, फिर चाहें वह मरीज हो, अस्पताल वाले, बीमा कंपनी, स्मार्ट कार्ड बनाने वाली कंपनी और निश्चित तौर से सरकार भी इसमें शामिल है। आपको यह भी बताते चलें कि इस योजना के पीछे सूत्रधार श्रमिक कल्याण आयुक्त अनिल स्वरूप हैं।
स्वरूप के अथक प्रयासों से इस योजना को बढ़ावा मिला है। एक जागरूक बीमा कंपनी की मदद से मरीजों के हितों की रक्षा की जा रही है, ताकि उन्हें घटिया गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाओं का सामना न करना पडे। बीमा कंपनी निगरानी के तहत अस्पताल में भर्ती होने वाले प्रत्येक मरीज के इलाज की जांच-पड़ताल करेगी।
हालांकि, इस योजना में भी कुछ खामियां हैं। ब्रिटिश स्वास्थ्य-सुरक्षा प्रणाली की तर्ज पर यहां दवाओं के लिए कोई केंद्रीय निगरानी एजेंसी नहीं है। गेट्स फाउंडेशन के एक महत्त्वपूर्ण आगंतुक ने हाल ही में लिखा था: हरियाणा में आईसीआईसीआई लोंबार्ड लाभार्थियों का नामांकन कर रही है।
आईसीआईसीआई लोंबार्ड ने एक व्यवस्था बनाई है जिसके तहत अगर कोई मरीज किसी मान्यता प्राप्त अस्पताल में भर्ती होता है तो उसे बीमा कंपनी के क्षेत्रीय स्वास्थ्य-सुरक्षा प्रबंधक को मोबाइल से एक एसएमएस भेजना होता है।
बीते महीने श्रम मंत्रालय ने इस योजना के तहत मातृत्व मामलों को भी शामिल करने का फैसला किया। इसके साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय की उस मुहिम को बढ़ावा मिला है, जिसके तहत कोशिश की जा रही है कि अधिक से अधिक महिलाओं को प्रसव के दौरान बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं हासिल हो सकें।
निजी अस्पतालों को इस सूची में सदा के लिए नहीं शामिल किया गया है। इस कारण यह प्रणाली सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के हौसलों को बढ़ाने में असरकारी साबित हो रही है। इस तरह सरकार के पास अब एक ऐसी योजना है, जिसके तहत थोड़ा सा खर्च करके वह काफी अधिक तारीफ और श्रेय हासिल कर सकती है।
इस साल सरकार ने 24 लाख स्मार्ट कार्ड जारी करने के लिए कुल 250 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसकी तुलना जरा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से कीजिए। इस योजना के लिए सरकार ने इस साल 30,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और लाभान्वितों को हर साल औसतन 4,000 रुपये मिले हैं।
सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले सभी परिवारों को इस योजना के दायरे में शामिल करने का लक्ष्य तय किया है। इसका अर्थ है कि उत्तर प्रदेश के 1.8 करोड़ परिवारों को, बिहार के 74 लाख परिवारों को और महाराष्ट्र के करीब 64 लाख परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकेंगी।
स्वरूप कहते हैं कि सभी को इस योजना के दायरे में शामिल करने में करीब तीन साल लगेंगे।
