ऐसा प्रतीत हो रहा है कि केंद्र सरकार की परिसंपत्ति मुद्रीकरण योजना को सरकारी विभागों एवं सरकारी उपक्रमों की ओर से विरोध का सामना करना पड़ रहा है। एक समाचार के मुताबिक तेल एवं गैस क्षेत्र के सरकारी उपक्रम मसलन हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन एवं गेल शायद पाइपलाइन मुद्रीकरण योजना के साथ आगे न बढ़ें। एक अन्य रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि रेल मंत्रालय एवं दूरसंचार विभाग भी परिसपंत्ति मुद्रीकरण के अपने लक्ष्य कम कर रहे हैं और वे निवेश के लिए आंतरिक एवं बजट समर्थन पर अधिक निर्भर रहेंगे। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में 1.62 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटाने का लक्ष्य रखा है लेकिन इसे हासिल करना कठिन होगा। पेट्रोलियम क्षेत्र की सरकारी कंपनियां पाइपलाइंस को मूल परिसंपत्ति के रूप में देख रही हैं और खबर है कि वे उनका मुद्रीकरण करने की इच्छुक नहीं हैं। इन कंपनियों ने यह भी कहा है कि वे निवेश के लिए बाजार से कम लागत में फंड जुटाने की अच्छी स्थिति में हैं। सरकार आशा कर रही थी कि ये कंपनियां अपनी पाइपलाइन परिसंपत्ति का कुछ हिस्सा अधोसंरचना निवेश ट्रस्ट्स को हस्तांतरित करेंगी और संसाधन बढ़ाएंगी।
सरकारी उपक्रमों एवं सरकारी विभागों की परिसंपत्ति मुद्रीकरण को लेकर यह अनिच्छा निवेश को प्रभावित कर सकती है। वृहद स्तर पर देखें तो ताजा आंकड़े दर्शाते हैं कि वास्तविक संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था 2021-22 में 2019-20 के उत्पादन स्तर से मामूली बेहतर स्थिति में है। चूंकि निजी क्षेत्र की खपत और निवेश मांग अभी भी कमजोर है इसलिए उच्च सरकारी व्यय से मांग को सुधारने में मदद मिल सकती है। हालांकि सरकार उच्च निवेश के साथ अर्थव्यवस्था की मदद कर रही है लेकिन उसकी वित्तीय स्थिति दबाव में है तथा वह व्यय बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। इस संदर्भ में परिसंपत्ति पुनर्चक्रण और मुद्रीकरण की मदद से अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ाया जा सकता है। भारत को उच्च निवेश की आवश्यकता है लेकिन महामारी के बाद की अवधि में इसकी महत्ता बढ़ी है।
2024-25 तक केंद्र सरकार के विभागों तथा सरकारी उपक्रमों के परिसंपत्ति मुद्रीकरण से 6 लाख करोड़ रुपये जुटाए जाने की संभावना है। इसके पीछे विचार है सरकारी परिसंपत्तियों को सीमित अवधि के लिए निजी क्षेत्र को सौंपने का तथा उससे हासिल राशि को अन्य अथवा नई परिसंपत्तियों में निवेश करने का। अनुमान है कि निजी क्षेत्र इनका किफायती इस्तेमाल करेगा जिससे समग्र लाभ और बढ़ेंगे। यह अच्छा विचार है लेकिन इसका क्रियान्वयन किस तरह होगा यह देखना होगा। चूंकि कुछ सरकारी उपक्रम एवं विभाग इसके अनिच्छुक हैं इसलिए सवाल यह पैदा होता है कि क्या योजना बनाने के पहले उनसे चर्चा की गई थी? चूंकि कुछ प्रतिभागी अनिच्छुक हैं इसलिए बेहतर होगा कि सरकार इस योजना का आकलन नये सिरे से करे। संभव है कि कुछ सरकारी उपक्रम अपनी मूल परिसंपत्तियों का नियंत्रण न सौंपना चाहते हों, उन्हें इसके लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए।
निश्चित तौर पर सब पर एक ही उपाय थोपना शायद कारगर न हो। एक सीमित अवधि के लिए परिसंपत्ति हस्तांतरण सड़क जैसे क्षेत्रों में कारगर हो सकता है। पेट्रोलियम क्षेत्र में बढ़ी कीमतों को आगे नहीं बढ़ा पाने जैसी स्थितियां सरकारी कंपनियों के मुनाफे और निवेश की क्षमता पर असर डालेंगी। इतना ही नहीं सरकार को सरकारी उपक्रमों के पूर्ण निजीकरण का प्रयास करना चाहिए। उदाहरण के लिए सरकारी दूरसंचार कंपनियों में परिसंपत्ति मुद्रीकरण से बहुत मदद मिलती नहीं दिखती। इसके अलावा जिन सरकारी विभागों मसलन रेलवे आदि के पास बड़ी मात्रा में परिसंपत्तियां हैं, उनसे अलग ढंग से निपटना होगा। अलग-अलग तरह की परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण के लिए अलग-अलग तरीके अपनाने होंगे। सरकार को इस महत्त्वपूर्ण योजना का हकीकत के करीब आकलन करना चाहिए।
