यह सांप के निकल जाने के बाद लकीर पीटने का सटीक उदाहरण है। कांग्रेस ने असम में ‘महाजोत’ को एकजुट रखने की कोशिश में काफी खून, पसीना और आंसू बहाया लेकिन आखिरकार इस गठबंधन को भंग कर दिया। दस राजनीतिक दलों वाले महाजोत का नेतृत्व कांग्रेस के पास था। महाजोत की स्थापना इस वर्ष राज्य विधानसभा चुनाव के पहले की गई थी। कांग्रेस के अलावा ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) और बोडो पीपुल्स फ्रंट तथा वाम दल, राष्ट्रीय जनता दल तथा अनेक छोटे समूह इसका हिस्सा थे।
सरसरी तौर पर तो महाजोत का उद्देेश्य था वोटों का बंटवारा रोकना और कुछ हद तक उसने ऐसा किया भी। इस गठजोड़ को विधानसभा चुनावों में 50 सीट मिलीं जिनमें कांग्रेस ने 29, एआईयूडीएफ ने 16, बीपीएफ ने चार तथा माकपा ने एक सीट पर जीत हासिल की। कांग्रेस के विधायकों की संख्या में इजाफा हुआ। वर्ष 2016 में पार्टी के 26 विधायकों को जीत मिली थी। परंतु पार्टी के भीतर बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले एआईयूडीएफ के साथ गठजोड़ को लेकर काफी असंतोष था। पूर्वी और उत्तरी असम (डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, जोरहाट, शिवसागर, गोलाघाट, लखीमपुर गोलाघाट, लखीमपुर, धेमाजी, माजुली, विश्वनाथ और शोणितपुर जिले) में पार्टी का प्रदर्शन काफी खराब रहा। यहां पार्टी का मत प्रतिशत 2016 के 30.96 फीसदी से घटकर 2021 में 29.7 फीसदी रह गया। प्रदेश में कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक सुष्मिता देव ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। उन्हें लग रहा था कि एआईयूडीएफ के साथ गठजोड़ करने से उनकी संभावनाओं पर असर हो रहा था। एआईयूडीएफ ने अपनी सीटों में सुधार किया और वह 2016 की 13 सीट से बढ़कर 2021 में 16 सीट पर पहुंच गई। उनके पार्टी छोडऩे के बाद पार्टी ने गठबंधन छोडऩे की घोषणा की। क्या यह अजीब लगता है?
सवाल यह है कि अब क्या होगा? कांग्रेस ने गठबंधन से अलग होने के लिए बदरुद्दीन अजमल और एआईयूडीएफ द्वारा भाजपा और उसके मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा की ‘रहस्यमय तारीफ’ को कारण बनाया। भाजपा भी यही चाहती है। वह मुस्लिम वोट बैंक को दोफाड़ करके विपक्ष को बांटकर रखना चाहती है। इस वर्ष जून में अजमल फाउंडेशन और अजमल परफ्यूम्स (अजमल की दो कारोबारी पहल) ने करीब एक करोड़ रुपये की राशि मुख्यमंत्री टीकाकरण राहत कोष में दान के रूप में दी।
जुलाई में बदरुद्दीन अजमल के छोटे भाई विधायक सिराजुद्दीन अजमल ने कहा कि असम हिमंत विश्व शर्मा के नेतृत्व में प्रगति करेगा। उन्होंने स्थानीय पत्रकारों से कहा, ‘यदि कोई कुछ अच्छा करता है तो मुझे बुरा क्यों लगेगा? हमारे मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा वाकई बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। उन्होंने वाकई कुछ अच्छी पहल और योजनाओं को आगे बढ़ाया है…आप देखिए, असम उनके शासन में प्रगति करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के पास ‘आम समझ’ का भी अभाव था। बमुश्किल छह महीने पहले विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान विश्व शर्मा और भाजपा के अन्य नेताओं ने एआईयूडीएफ पर जमकर हमले बोले थे और उसे देश विरोधी, अलगाववादी और काफी कुछ करार दिया था। चुनाव परिणाम सामने आने के बाद भाजपा की ओर से कुछ नहीं कहा गया है।
इसकी एक वजह आगामी विधानसभा उपचुनाव हो सकते हैं। राज्य में कम से कम तीन विधानसभा उपचुनाव होने हैं: दो इसलिए कि कांग्रेस के विधायक भाजपा में चले गए जबकि एक इसलिए होना है कि एआईयूडीएफ के विधायक ने त्यागपत्र दे दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री और विधायक सर्वानंद सोनोवाल भी इस्तीफा दे सकते हैं क्योंकि उन्हें केंद्र में मंत्री बना दिया गया है। ये चुनाव नए समीकरणों के लिए परीक्षा की घड़ी होंगे।
विश्व शर्मा के बारे में माना जाता है कि उन्हें राजनीति में कूटनीतिक बातें करना नहीं आता। उन्होंने विपक्षी नेताओं से खुलकर कह दिया है कि भाजपा के दरवाजे उनके लिए खुले हैं। उन्होंने विपक्षी नेताओं से कहा, ‘आप पांच वर्ष तक विपक्ष में क्या करेंगे?’ नाराज कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया कि वह विधायकों को तोडऩे का प्रयास कर रहे हैं। जाहिर है ऐसा करने के लिए उन्हें बहुत अधिक मेहनत की भी जरूरत नहीं।
आने वाले महीनों में नए राजनीतिक गठजोड़ों के साथ असम में बुनियादी राजनीतिक समीकरण बदलने तय हैं। भाजपा में सोनोवाल को यह लग सकता है कि उनके लिए अपने गृह राज्य में अब कोई गुंजाइश नहीं बची है। एआईयूडीएफ की बढ़ती स्वीकृति के साथ विश्व शर्मा को प्रवासियों के मसले पर अधिक सलाह मशविरे वाला रुख अपनाना होगा या शायद इसे ठंडे बस्ते में डालना होगा। कांग्रेस की बात करें तो सुष्मिता देव के जाने के बाद कलियाबोर के सांसद गौरव गोगोई अब अधिक मुखर हो सकते हैं। असम में तृणमूल कांग्रेस के प्रवेश के बाद उस पर गहरी नजर रखनी होगी क्योंकि वह गंभीर नजर आ रही है। ऐसे में प्रदेश में मुस्लिम राजनीति में नया मोड़ आना तय है। देश के सबसे चपल राजनेताओं में से एक, हिमंत विश्व शर्मा की प्रतिभा देखने को मिलेगी। उन्हें विरोधाभासों के प्रबंधन के मामले में तेजी से लोकप्रियता हासिल हो रही है।