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  लेख  क्या हमारी अंकेक्षण प्रणाली में खामियां हैं?
लेख

क्या हमारी अंकेक्षण प्रणाली में खामियां हैं?

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —February 11, 2009 10:00 PM IST0
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ऑडिट प्रणाली में खामी नहीं
सुरेश प्रभु
पूर्व कैबिनेट मंत्री
और शिव सेना सांसद
भारतीय ऑडिटिंग प्रणाली में कोई गड़बड़ी नहीं है। हमारी ऑडिटिंग प्रणाली काफी स्पष्ट है। लेकिन किसी भी प्रणाली (ऑडिटिंग) के तहत काम करने की जरूरत होती है, न कि उसे केवल दिखाने और सहेजकर रखने के लिए लागू किया जाता है।
जब आप किसी प्रणाली के मानदंडों और कानूनों के अनुरूप काम ही नहीं करेंगे तो गलतियां तो होंगी ही और ऐसा ही कुछ सत्यम घोटाले में देखने को मिला है। हमारे देश में ऑडिटिंग से जुड़े कानून अपर्याप्त नहीं हैं और न ही इसमें कोई फेरबदल करने की जरूरत है।
लेकिन हमें जरूरत है तो ऑडिटिंग प्रणाली के मानदंडों व कानूनों को सही तरीके से लागू करने की और जब तक इसका कार्यान्वयन सही तरीके से नहीं किया जाएगा तब तक इस तरह के घोटाले होते रहेंगे। मसलन, जब तक सरकार कानून को लागू करने के लिए अपनी प्रतिबध्दता नहीं दिखाएगी तब तक सुधार और विकास की बात बेमानी होगी।
हमारे देश में कानून कम नहीं है। यहां हत्या, लूटपाट, छेड़छाड़, डकैती, भ्रष्टाचार के खिलाफ कई कानून हैं, लेकिन इसके बावजूद देश की विभिन्न जगहों पर ऐसी घटनाएं आए दिन सुनने को मिल जाती हैं।
हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि मैं कानून को ज्यादा कठोर बनाने के पक्ष में नहीं हूं। सरकार जितना ज्यादा कानून को कठोर बनाना चाहती है बनाए। लेकिन सवाल यह है कि क्या जो भी कानून हमारे देश में पहले से बने हुए हैं, उसे सही तरीके से लागू किया जा रहा है? मेरा तो स्पष्ट मानना है कि कानून का कार्यान्यवन प्रभावी तरीके से किया जाए तभी जाकर बात बनेगी।
बहरहाल, किसी भी कंपनी की ऑडिटिंग किस तरह से होनी चाहिए, उसे सुचारू रूप से चलाने का काम ऑडिटर का ही होता है। लिहाजा, ऑडिटर को चाहिए कि वे बेहद गंभीरता और ध्यान से ऑडिटिंग करें। हालांकि यह सही है कि सत्यम घोटाले से जांच एजेंसियों की असफलता सामने आई है।
लेकिन जहां तक सत्यम की बैलेंसशीट में खामी की बात है तो उसका पता तो जांच रिपोर्ट के आने के बाद ही चलेगा। इसलिए जांच रिपोर्ट के आने तक हमें किसी भी अटकलबाजियों से बचना चाहिए। हालांकि देश को शर्मसार कर देने वाले सत्यम घोटाले के बाद स्वतंत्र ऑडिटरों की कार्यप्रणाली पर भी उंगली उठाई जा रही है।
लेकिन मेरा मानना है कि यह बिल्कुल बेबुनियाद है। एक पल के लिए मान लेते हैं कि अब बाजार में चूंकि टेलीमेडिसिन आ गई है तो इसका मतलब यह नहीं है कि डॉक्टरों की ही छुट्टी कर दी जाए। ऑडिटिंग का काम तो कोई मशीन नहीं करेगी, उसे करेगा तो कोई आदमी ही।
इसलिए स्वतंत्र ऑडिटरों का रहना बेहद जरूरी है। स्वतंत्र ऑडिटरों की भूमिका पहले की तरह ही बनी रहेगी। लेकिन स्वतंत्र ऑडिटरों को भी गंभीरता के साथ काम करना चाहिए। सत्यम घोटाले ने देश-विदेश में भारत की छवि को धूमिल किया है।
इससे हमारे देश की अन्य कंपनियों की साख पर भी बट्टा लग सकता है, साथ ही विदेशों से आने वाली कंपनियां थोड़ी हिचकेंगी। लेकिन इस वक्त जरूरत हमें अपनी छवि को फिर से साफ करने की है। सरकार को चाहिए कि वे जितनी ज्यादा कंपनियों में पारदर्शिता लाएंगी उतना ही ज्यादा लोगों में उस कंपनी के प्रति भरोसा बढ़ेगा।
अगर सरकार चाहती है कि सत्यम जैसी घटनाएं भविष्य में दोबारा न हो तो इसके लिए सरकार को नियामकों को और मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए। हमारे देश में कंपनियों का जो भी काम होता है, उसमें पारदर्शिता लाई जानी चाहिए।
साथ ही सरकार को भ्रष्टाचार को पूरी तरह खत्म करने के लिए कमर कसना होगा। इसके अलावा, बैंकों को चाहिए कि वे सीधे तौर पर देश के सभी ऑडिटरों को कंपनी लेनदेन की पूरी जानकारी से अवगत करवाएं। साथ ही जांच समिति द्वारा जो भी रिपोर्ट पेश की जाती है, उसके आधार पर सरकार को और भी कदम उठाने चाहिए।

(बातचीत: पवन कुमार सिन्हा)
नियम होने चाहिए और भी ठोस
उत्तम प्रकाश अग्रवाल
अध्यक्ष, इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड
अकाउंटेंट ऑफ इंडिया
हाल ही में हुए सत्यम प्रकरण से इस बात को बल जरूर मिलता है कि भारत में ऑडिटिंग यानी अंकेक्षण प्रणाली को और मजबूत किए जाने की जरूरत है। लेकिन यह कहना सरासर गलत होगा कि भारत में ऑडिटिंग प्रणाली में खामियां ही खामियां हैं।
सत्यम प्रकरण के बाद इस कंपनी की ऑडिटिंग करने वाली प्राइसवाटर हाउस के ऊपर भी कई तरह के सवाल उठाए गए हैं। लेकिन अभी यह बात स्पष्ट नहीं हो पाई है कि सत्यम में होने वाली गडबड़ी में प्राइसवाटर हाउस की क्या भूमिका रही है। इस बारे में अभी जांच चल रही है और कोई भी निर्णय जांच पूरी हो जाने के बाद ही लिया जा सकेगा।
ऑडिटिंग में होने वाली गड़बड़ियों को समझने के लिए हमें भारत में ऑडिटिंग प्रणाली के तरीके को समझना पड़ेगा। भारत में चार्टर्ड अकांउटेंट (सीए) सदस्यों की सर्वोच्च संस्था के तौर पर इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकांउटेंट ऑफ इंडिया (आईसीएआई) काम करती है।
सीए पेशे से जुडे मामलों के लिए आईसीएआई ही नियामक की भूमिका भी अदा करती है।  आईसीएआई के सदस्य होने के साथ-साथ जिन सीए के पास इस संस्थान का प्रैक्टिस सर्टिफिकेट होता है, वे ही कंपनी मामलों से जुड़ी बैलेंस सीट पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
लेकिन जागरूकता न होने के कारण कई बार कंपनियां ऐसे लोगों को ऑडिटिंग के लिए सीए नियुक्त कर देती हैं, जो आईसीएआई द्वारा तय किये गए मानकों को पूरा नहीं करते हैं। ऐसे में कंपनियां फर्जी ऑडिटिंग के चक्कर फंस जाती है। कई बार फर्जी सीए पैसा उगाही के लिए भी सारा काम करते हैं।
ऐसे में कंपनियों को नियुक्त किए जाने वाले सीए के बारे में सभी जानकारियां जुटा लेनी चाहिए, ताकि कई बार तो कंपनियां भी करों से पीछा छुटाने और अपनी माली हालत को कम दिखाने के लिए फर्जीवाड़े का खेल खेलती हैं।
दिक्कत बात तो यह है कि आईसीएआई इन लोगों के  खिलाफ सीधे तौर पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। वैसे तो कंपनी ऐक्ट 1949 के सेक्शन 24 और सेक्शन 26 के तहत सीए के फर्जी हस्ताक्षर और सील इस्तेमाल करने के विरोध में कानून बनाए गए हैं और इनके लिए सजाएं भी तय की गई हैं।
लेकिन जो सजाएं तय की गई हैं, वे इतनी नाकाफी हैं कि उनसे ऑडिटिंग में होने वाली खामियों और किसी भी सीए के फर्जी हस्ताक्षर और सील के इस्तेमाल को पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि इन कानूनों में सजा की सीमा को बढ़ाया जाए ताकि इस तरह के फर्जी कामों को रोका जा सके।
एक बात मैं और यहां बताना चाहता हूं कि भारत में ज्यादातर ऑडिटिंग प्रणाली आंतरिक (इंटरनल)ऑडिटिंग से जुड़ी हुई है। ऐसे में कुछेक कंपनियां अपनी माली हालत को छुपाने के लिए इसको एक हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं।
ऐसे में जरूरी है कि आंतरिक ऑडिटिंग होने पर पारदर्शिता रखने के लिए कुछ नए कदम उठाए जाएं। वैसे इस समय ज्वाइंट ऑडिटिंग भी एक अच्छा विकल्प साबित हो रही है। भारत में राष्ट्रीयकृत बैंकों ने इसे अपना रखा है और इसके परिणाम भी काफी अच्छे आए हैं। हमारी एक और योजना रोटेशन पर आधारित ऑडिट की भी है।
रोटेशन ऑडिट भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। लेकिन इसके लिए हमने अभी कोई गंभीर निर्णय नहीं लिया है। मेरे हिसाब से इस बाबत कंपनी मामलों के मंत्रालय को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और वर्तमान में दिखने वाली खामियों को देखते हुए कुछ नए प्रबंध करने चाहिए।
हमने ऑडिटिंग में सुधार के लिए अपने कुछ मानक भी प्रस्तुत किए हैं जो कंपनियों की ऑडिटिंग के लिए एक अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं।

 (बातचीत: कपिल शर्मा)

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