सख्ती से वसूल करना अन्याय
माजिद मेनन
वरिष्ठ अधिवक्ता
लोगों को मुफ्त में क्रेडिट कार्ड देने का बैंकों का रवैया ठीक नहीं कहा जा सकता है। आम जनता को क्रेडिट लेने के लिए उकसाना गलत है।
ऐसे लोग जो बैंक जाकर खुद कार्ड नहीं लेते हैं, उन्हें कार्ड जारी कर देना कानूनन सही नहीं है। बैंकों और संबंधित एजेंसियों का अनजाने लोगों को फोन करके उन्हें क्रेडिट कार्ड के फायदे गिनाना और बार बार फोन करके उन्हें क्रेडिट कार्ड लेने के लिए तैयार करना उचित नहीं है।
बैंकों से जो खुद कर्ज लेते हैं, उसमें तो कोई गलत नहीं है, क्योंकि वे लोग अपनी जरूरत के हिसाब से बैंक से कर्ज लेते हैं और उसी हिसाब से उसकी अदायगी भी करते हैं, लेकिन बैंकों द्वारा जिस तरह से मुफ्त में क्रेडिट कार्ड बांटे जाते हैं और फिर पैसा वसूलने के लिए रिकवरी एजेंटों का सहारा लिया जाता है, यह बात गले से नीचे नहीं उतरती है।
ऐसी सूरत में यदि सख्ती से पैसा वसूलने की कोशिश की जाती है तो वह अन्याय के दायरे में आता है। दरअसल जिस तरह से मुफ्त में क्रेडिट कार्ड बांटे जाते रहे हैं, वे अच्छे समय में जब वेतन में वृध्दि हो रही होती है या व्यक्ति के आथक हालात अच्छे रहते हैं तो यह बहुत मायने नहीं रखता था और बढ़ते बकाए की चिंता न तो कार्ड धारक को थी और न ही बैंक को हो रही थी।
बैंक खुशी से अपने ग्राहकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे कि वे क्रेडिट कार्ड पर न्यूनतम भुगतान करें। इससे बैंकों को ग्राहकों से बकाए पर भारी भरकम ब्याज वसूलने का मौका मिलता था। लेकिन अब जब आर्थिक संकट का दौर शुरू हुआ और बहुत सारे लोगों की नौकरियां चली गई या फिर वेतन में कटौती हो गई तो उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया।
अब वे अपना घर चलाएं या बैंक का पैसा भरें। हमारा यह मतलब कतई नहीं है कि उधार लेकर आप किसी का पैसा न दें। लेकिन यहां यह जरूर देखा जाना चाहिए कि उधार किस तरह से दिया गया है। जिन लोगों को क्रेडिट कार्ड की जरूरत भी नहीं थी उनके पास भी कार्ड देखने को मिल रहे हैं। बैंकों के बीच अपने क्रेडिट कार्ड धारक संख्या बढ़ाने की होड़ सी लग गई थी।
हर बैंक की अपनी अलग एजेंसियां थी या हैं। इन एजेंसियों द्वारा लोगों को खरीदारी करने के अच्छे सपने दिखा कर क्रेडिट कार्ड लेने के जाल में फंसाते रहे हैं और लोग भी कार्ड से खरीदारी करने में अपना स्टैंडर्ड समझने लगते हैं क्योंकि बैंक या संबंधित एजेंसी कार्ड देते वक्त सही जानकारी नहीं देते हैं।
एक बार खरीदारी करने के बाद बैंक का पैसा खत्म होने का नाम ही नहीं लेता हैं क्योंकि इनकी ब्याज दरें इतनी ज्यादा होती है जो आम आदमी सोच भी नहीं सकता है। ब्याज दरों के अलावा बैंकों के हिडन चार्ज तो लोगों की कमर ही तोड़ कर रख देती है।
बैंक अपना पैसा वसूलने के लिए रिकवरी एजेंटों का सहारा लेते हैं जो लोगों से सख्ती के साथ पैसा वसूलना शुरू करते हैं जो किसी भी तरीके से सही नहीं है या अन्याय है जिसके लिए संबंधित बैंक और रिकवरी एजेंसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। बैंकों की इस धोखाधड़ी के बारे में अब लोग सचेत होने लगे हैं।
फरवरी 2008 में एक ग्राहक औसतन 1,928 रुपये खर्च कर रहा था जो फरवरी 2009 में 5 फीसदी घटकर 1,826 रुपये पर आ गया है। लोगों के साथ बैंक भी सावधान हो रहे हैं क्योंकि डिफॉल्टरों की जिस तरह से संख्या बढ़ रही है, उससे तो बैंकों का दिवालिया ही निकल जाएगा।
बैंकों को चाहिए कि वे जिन लोगों को क्रेडिट कार्ड की जरूरत है और जो लोग बैंक से निवेदन करते हैं कि उन्हें क्रेडिट कार्ड चाहिए, उनको ही कार्ड जारी करें। एजेंसियों द्वारा उपलब्ध कराए गए निवेदनों की बैंक अपने हिसाब से भी जांच करें कि निवेदन करने वाला सही है या एजेंसी कमीशन लेने के चक्कर में जबरदस्ती आवेदक बना रही है। अगर बैंक ऐसा करते हैं तो यह आम आदमी, बैंक और देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छा होगा।
(बातचीत: सुशील मिश्र)
फंसने का सवाल ही नहीं होता
रामनाथ प्रदीप
कार्यकारी निदेशक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
विकसित हो रहे समाज में क्रेडिट कार्ड लोगों की जरूरत बन गई है, इसलिए यह कहना कि क्रेडिट कार्ड देकर बैंक फंस गए हैं, गलत होगा। बैंक कहीं भी क्रेडिट कार्ड देकर फंसे हुए नहीं हैं।
इस समय यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले कारोबारी साल के पहले 11 महीनों में आउटस्टैडिंग क्रेडिट कार्ड की संख्या में 28 लाख की गिरावट दिखाई गई है। इन आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2008 के 2.83 करोड़ रुपये की तुलना में फरवरी 2009 में आउटस्टैडिंग क्रेडिट कार्ड की संख्या घटकर 2.55 करोड़ रह गई है।
क्रेडिट कार्ड से होने वाले भुगतान में भी गिरावट दिखाई जा रही है। लेकिन यहां पर यह गौर करने वाली बात है कि बैंकों की रिकवरी दर में कमी नहीं बल्कि इजाफा हुआ है। जब रिकवरी अच्छी हो रही है तो बैंकों के फंसने का सवाल ही नहीं पैदा हो रहा है।
पिछले एक साल में आर्थिक परेशानियों का जो दौर चला है, उसके चलते लोगों की आय में कमी आई है, जिससे लोग खर्च कम करने लगे हैं या कहें कि आने वाली समस्या को देखते हुए सावधान हो गए थे, जो उनके और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ठीक ही कहा जा सकता है।
जब लोगों की नौकरियां जा रही हो, वेतन में कटौती हो रही हो, जरूरत का सामान महंगा हो और कल नौकरी रहे या न रहे तो ऐसे माहौल में लोगों से अच्छी खरीदारी करने की उम्मीद करना ही गलत होगा।
वैश्विक स्तर पर आर्थिक संकट केकारण जब बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हिलने लगीं और उनको संभालने के लिए वहां की सरकारों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है, ऐसे में पुरी दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था ही ऐसी है जो सबसे तेज गति से विकास कर रही है। इसकी सबसे प्रमुख वजह भारतीय बैंकों की सरल, पारदर्शी एवं स्पष्ट रणनीति है।
भारतीय बैंक अपनी इसी नीति के चलते आर्थिक संकट के दौर में भी अपने को मजबूत बनाए हुए है। क्रेडिट कार्ड के मामले में एक बात सच है कि पिछले कुछ दिनों से डिफॉल्टरों की संख्या बढ़ गई है जिसकी वजह लोगों की आय में कमी का आना है। बैंकों को अपनी रिकवरी नीति में थोड़ा लचीलापन लाना होगा जैसे कि कई बैंकों ने अपने ग्राहकों की परेशानी समझने के लिए एक कमेटी बनाई है।
बैंक अधिकारियों को यह देखना होगा कि रकम अदा न करने वाला व्यक्ति किस्त क्यों नहीं दे रहा है? यदि सच में उसके सामने ऐसी बात है कि वह पैसा देने की स्थिति में ही नहीं है तो उसे कुछ दिनों की मोहलत देनी चाहिए या फिर अपनी ब्याज दर में कुछ कमी करके ग्राहक को पैसा अदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और यह रणनीति कई बैंक कर भी रहे हैं जिसके चलते आर्थिक संकट के इस दौर में भी बैंकों की रिकवरी कम नहीं हुई बल्कि पिछले साल से ज्यादा है।
अब रही बात क्रेडिट कार्ड बांटने की तो कोई सड़क पर क्रेडिट कार्ड नहीं बांटता है। क्रेडिट कार्ड दिलाने वाले लोगों को उसमें कमीशन मिलता है इसलिए वह लोगों को फोन करके या उनसे मिलकर क्रेडिट कार्ड के बारे में जानकारी देते हैं और जब लोग तैयार हो जाते हैं तो उनके जरूरी दस्तावेजों के आधार पर बैंक उन्हे क्रेडिट कार्ड जारी करता है। क्रेडिट कार्ड से जुड़ी सभी जानकारी कार्ड जारी करते वक्त दी जाती हैं।
इसके अलावा संबंधित एजेंसी और बैंक ग्राहक को उसके खर्च करने की जानकारी और अदा की गई रकम की भी जानकारी देता रहता है इसलिए बैंकों के ऊपर यह आरोप लगाना कि बैंक लोगों को जबरदस्ती क्रेडिट कार्ड दे देते हैं, सरासर गलत है। अब जब आप खर्च करोगे तो उसे आपको ही अदा करना होगा।
कुछ लोग बैंक के वसूली करते वक्त यह आरोप लगाने लगते हैं कि हमको तो क्रेडिट कार्ड के इस नियम के बारे में जानकारी ही नहीं थी या दी नहीं गई। पर ऐसा होता नहीं है लोगों को स्पष्ट तौर पर बैंक क्रेडिट कार्ड की जानकारी समय-समय पर देते रहते हैं।
(बातचीत: सुशील )
