अपने कर्तव्यों को लेकर लोगों के बीच जागरुकता पैदा करने के लिहाज से एक नागरिक अभियान ‘लेट्स वोट’ की शुरुआत हुई थी, जिसमें लोगों को मतदान की जरूरत के बारे में जागरुक बनाने की कोशिश की जा रही है।
दो साल के लगातार परिश्रम के बाद भी यह अभियान जारी है, फिर भले ही चुनाव खत्म क्यों न हो चुके हों। यह अभियान विभिन्न कंपनियों के 90 प्रतिशत तक कर्मचारियों और उनके परिवारों तक अपनी पहुंच बनाने में लगा हुआ है।
इस प्रयास के जरिये यह सुनिश्चित करने की कोशिश है कि ये सभी मतदाताओं के रूप में रजिस्टर हों और साथ ही उनके पास पैन कार्ड भी रहे, इन दोनों का इस्तेमाल पहचान पत्र के रूप में किया जा सकता है।
यह अभियान 30 कंपनियों के एक नेटवर्क की ओर से चलाया जा रहा है, ताकि सभी कॉर्पोरेट कर्मचारी मतदाता पहचान पत्र के हासिल कर सकें और फिर उन्हें मतदान के लिए भी प्रेरित किया जा सके। इस अभियान में किसी भी राजनीतिक दल शामिल नहीं किया गया है और इसमें पूर्व अखिल भारतीय बैडमिंटन चैम्पियन पुलेला गोपीचंद सरीखी मशहूर शख्सियतों को एम्बेसेडर के रूप में देखा जा सकता है।
अभियान दल की एक सदस्य कंपनी विडिया इंडिया के प्रबंध निदेशक जे ऐ चौधरी का कहना है कि लेट्स वोट अभियान अब हैदराबाद में कई कंपनियों तक अपनी पहुंच बना चुका है। यहां सूचना प्रौद्योगिकी और उससे जुड़े क्षेत्रों में लगभग 8 से 10 लाख आईटी प्रोफेशनल काम करते हैं और इन कर्मचारियों का एक अहम हिस्सा उन लोगों में शामिल है जो मतदान नहीं करते हैं।
इनमें से कई ने तो मतदान पहचान पत्र पाने के लिए आवेदन भी जमा नहीं किया है। मुंबई में आतंकी हमलों के बाद, डरी-सहमी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों और उनके परिवारों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। अपनी चिंता के दौरान राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं, पुलिस और दूसरे लोगों ने उन्हें सुरक्षा का आश्वासन दिया था।
इस प्रक्रिया के दौरान दोनों पक्षों पर लगातार उंगलियां उठाई गईं और यह बात साफ तौर पर सुनाई दी कि अपने अधिकारों की बात करने से पहले उन्हें अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए। कई शिक्षित लोगों ने मतदान से कनी काट ली है। उनका कहना है कि चुनाव लड़ना अब जुए की तरह हो गया है।
उनका कहना है, ‘हम चाहते हैं कि लोग शिकायतें करना बंद कर दें और मतदान करें।’ इस दल ने हैदराबाद और विशाखापट्नम में लोगों को मतदाताओं के रूप में जोड़ने के लिए हाफ-मैराथन का आयोजन किया है। राज्य के दूसरे शहरों अनंतपुर और खमम्म के उद्योगों से भी ऐसे ही प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं।
इस अभियान के दौरान पता चला है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करने वाले महज 3 प्रतिशत लोग ही मतदान करते हैं। कई लोगों का कहना है कि मतदान के लिए लगने वाली लंबी कतारों से वे बचना चाहते हैं। उनका कहना है, ‘जब वे सिनेमा के लिए लंबी कतार में खड़े हो कर इंतजार कर सकते हैं, तो उन्हें पांच साल में एक बार होने वाले मतदान में भी शामिल होना चाहिए।’
यह अभियान ठीक वैसे ही मतदान के जरिये अपना नेता चुनने के लिए कहता है, जैसे कंपनियां अपनी कंपनी में काम देने के लिए अपने कर्मचारियों को चुनती हैं। इस प्रयास के पीछे विचार यह है कि आने वाले आम चुनावों में हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, विशाखापट्नम और दूसरे शहरों में कॉर्पोरेट कर्मचारियों के मतदान प्रतिशत में कम से कम 5 प्रतिशत का इजाफा तो हो ही जाए।
बेहतर कल के लिए एक पहल
एक त्रिलोचन शास्त्री ने हिन्दी साहित्य में काव्य की धारा बदल दी तो दूसरे त्रिलोचन शास्त्री ने भारतीय राजनीति का चेहरा बदल दिया।
हम बात कर रहे हैं दूसरे त्रिलोचन शास्त्री की जो भारतीय प्रबंधन संस्थान बेंगलुरु (आईआईएम-बी) में प्रोफेसर हैं और जिन्होंने आईआईएम, आईआईटी, पूर्व आईएस, पूर्व सैन्य अधिकारियों तथा बुद्धिजीवियों के साथ एक ऐसी शुरुआत की है कि भारतीय राजनीति में दूरगामी परिवर्तन हो गया।
प्रोफेसर शास्त्री के संगठन एडीआर इंडिया ने वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट से जनहित याचिका जीती। आला अदालत के फैसले के बाद चुनाव आयोग ने निर्देश जारी किए और पिछले सात साल में हुए दो लोकसभा चुनावों, विधानसभा चुनावों में इन्हें साफ देखा जा सकता है। याचिका में उम्मीदवार की संपत्ति, शिक्षा और आपराधिक रिकॉर्ड का ब्यौरा मतदाताओं को उपलब्ध कराने की मांग की गई थी। एडीआर से करीब 1200 समूह जुड़े हैं।
लेकिन मतदाताओं को जागरुक बनाने का काम उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में हुआ। करीब 50 संगठनों के समूह जनचेतना मंच ने पूरे उत्तर प्रदेश में उम्मीदवारों के प्रोफाइल सामने रखे। पिछले साल चार राज्यों के चुनाव में भी मंच ने सक्रिय भूमिका निभाई। मंच से जुड़े संगठन जल बिरादरी के कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि उनके अभियान से मतदान का प्रतिशत बढ़ा और लोगों में उम्मीदवार के प्रति चेतना जगी।
इस चुनाव में भी मंच 22 राज्यों में ई-मेल, एसएमएस और जनसंपर्क के जरिये सामाजिक और पर्यावरण मसलों पर भी लोगों को जागरुक कर रहा है। पर्यावरण स्वराज अभियान के संयोजक विजय प्रताप कहते हैं कि देश भर में सभी गैर-सरकारी संगठन जनहित के मसले लोगों के बीच ले जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन को लेकर सभी दलों से संपर्क किया जा रहा है।
यह मांग की जा रही है कि स्वच्छ तकनीक सभी को मुफ्त मिलनी चाहिए। उन्होंने बताया कि अलग-अलग संगठनों ने 150 से ज्यादा जन घोषणा पत्र बनाए हैं जिनमें जंगल और जमीन का हक, सूचना का अधिकार, पानी का अधिकार, पर्यावरण, हिमालय बचाओ जैसे मुद्दे शामिल हैं।
लोक राजनीति मंच पार्टियों में कायम जमींदाराना भाव और परिवारवाद की दादागीरी के खिलाफ भी मुहिम छेड़े हुए हैं। यूथ फॉर इक्विलिटी से जुड़े जितेन्द्र जैन कहते हैं कि उनका अभियान ‘न अपराधी और न आरक्षण’ पर केंद्रित है।
