स्वतंत्रता दिवस के दिन अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने देश की आजादी के 100 वर्षों यानी अगले 25 वर्ष के दौरान हमारी प्राथमिकताओं के बारे में बात की। उन्होंने पांच चीजों पर ध्यान केंद्रित किया- एक ऐसा भारत जो विकसित देश हो, औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त हो, अपनी विरासत पर गर्व करता हो, जो एकजुट और संगठित हो और जिसके नागरिक कर्तव्य को अधिकारों से ऊपर रखते हों।
इन पांच प्राथमिकताओं में से कम से कम दो का संबंध हमारे सांस्कृतिक भविष्य में बदलाव से है। हमारे राजनीतिक भविष्य का इकलौता संदर्भ नागरिकों के अधिकार के बजाय उनके कर्तव्यों पर जोर के रूप में सामने है। लोकतंत्र का किसी हवाले से जिक्र न होना अवश्य परेशान करता है या फिर सामाजिक समरसता और धार्मिक `और भाषाई विविधता के सम्मान का जिक्र न होना। हाल में कई ऐसे संकेत मिले हैं जो बताते हैं कि भारत का लोकतंत्र खतरे में माना जा रहा है। ऐसे संकेत न केवल बाहरी पर्यवेक्षकों के हैं बल्कि भारत के लोगों को भी ऐसा ही लग रहा है। इंडिया टुडे के मूड ऑफ द नेशन सर्वे के अनुसार 48 प्रतिशत प्रतिभागियों ने माना कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है जबकि केवल 37 फीसदी लोगों ने कहा कि ऐसा नहीं है।
गॉटनबर्ग विश्वविद्यालय के बेहतरीन शोध पर आधारित वार्षिक अध्ययन में शामिल रिपोर्ट वेराइटीज ऑफ डेमोक्रेसीज में भारत के लोकतंत्र का व्यापक विश्लेषण शामिल है। इस अध्ययन लोकतांत्रिक देशों को शून्य से एक के बीच आंकता है। सन 1951-52 में पहले आम चुनाव के बाद से अधिकांश वर्षों के दौरान भारतीय लोकतंत्र को 0.67 की रेटिंग दी गई है। 1990 से 2013 के बीच यह रेटिंग और भी अधिक रही है। आपातकाल के कारण सन 1975 और 1976 में इस सूचकांक में तेज गिरावट आई और यह 0.40 पर आ गया। देश में लोकतंत्र की हालत के बारे में चिंता इसलिए भी है क्योंकि सूचकांक 2014 के 0.67 से घटकर 2020 और 2021 में क्रमश: 0.41-0.44 फीसदी रह गया। इस स्तर की तुलना सन 1970 के दशक के मध्य में आपातकाल के दौर से की जा सकती है। अगर निर्मम बहुसंख्यकवाद जारी रहा तो इसमें और गिरावट आ सकती है। भारत को अब एक निर्वाचित अधिनायकवादी देश के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया है। यह एक ऐसे लोकतंत्र के लिए दुखद है जो हमारे लिए गर्व का विषय था।
प्रधानमंत्री मोदी की अगले 25 वर्षों की पांच प्राथमिकताओं से नदारद दो अन्य पहलुओं सामाजिक समरसता और विविधता के सम्मान के लिए यह आवश्यक है कि हमारे देश में एक जीवंत लोकतंत्र हो, राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ पुलिस शक्ति के इस्तेमाल में नियंत्रण बरता जाए, विपक्ष को संभावित बराबरी का मानते हुए सम्मान बख्शा जाए, हिंसा से सजग ढंग से दूर रहा जाए, अभिव्यक्ति की वास्तविक आजादी हो और संवैधानिक अधिकारों का पूरी तरह संरक्षण किया जाए।
कुलीनों की भी बात करें तो भारत एक अत्यधिक विविधता वाला देश है। पश्चिमोत्तर इलाके में सिखों और जाटों का दबदबा है तो पूर्वोत्तर में मंगोलॉइड और ऑस्ट्रिक मूल के जनजातीय समूह हैं जिनका धर्म ईसाई है। दक्षिण में द्रविड़ बुर्जुआ वर्ग है जिनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति है। पूर्व में बंगाली और ओडिया भद्रलोक है तो पश्चिम में मराठा और पाटीदार हैं। इस प्रकार देश के अलग-अलग हिस्सों में तमाम अलग-अलग तरह के कुलीन लोग रहते हैं। लेकिन लोकतंत्र से तात्पर्य केवल कुलीनों से नहीं है बल्कि इसमें अन्य लोग भी शामिल होते हैं। लंबे समय से चली आ रही जाति व्यवस्था और धर्मों की विविधता के कारण स्थानीय स्तर पर भी सामाजिक व्यवस्था जटिल और विविधतापूर्ण है। भारत की विविध संस्कृतियों की यही वजह है और यही गुण उसे परिभाषित करता है।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधता के लिए इस सम्मान के अलावा केंद्र सरकार की नीतियों में देश के विभिन्न हिस्सों की आर्थिक विविधता का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए केरल या पूर्वोत्तर की कृषि विपणन नीतियां कभी पंजाब और हरियाणा जैसी नहीं हो सकतीं।
इन तमाम वजहों से अगले 25 वर्षों में पहली प्राथमिकता लोकतंत्र को मजबूत बनाना होनी चाहिए ताकि यह सामाजिक समरसता को बढ़ाने में मददगार साबित हो तथा भाषाओं, धर्म और धार्मिक व्यवहार तथा सामाजिक मानकों के मामले में विविधता पर गौरव किया जा सके। प्रधानमंत्री के पांच सूत्री एजेंडे में एक यह भी है कि भारत को एकजुट और एकीकृत रहना चाहिए। जाहिर है उपरोक्त बातें इससे संबंधित हैं। अगर लोकतंत्र का यूं ही क्षय होता रहा तो इसे खतरा उत्पन्न हो जाएगा। अगर विपक्षी दलों को पुलिस की ताकत से डराया गया और राष्ट्रीय एकीकरण के नाम पर अगर विविधता का सम्मान नहीं किया गया तो ऐसा ही होगा।
राष्ट्रीय एकीकरण के बारे में चिंता की अन्य वजहों को भी अगले 25 वर्ष की प्राथमिकता सूची में स्थान देना चाहिए था। राज्यों के बीच प्रति व्यक्ति आय के मामले में आ चुके अंतर को दूर करना होगा। सन 2019-20 में पश्चिमोत्तर, दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों की प्रतिव्यक्ति आय उत्तर, मध्य और पूर्व के राज्यों की तुलना में 2.6 गुना थी। ध्यान 1990-91 में यह 1.6 फीसदी था। उदारीकरण के लाभ का बड़ा हिस्सा पश्चिम, दक्षिण और पश्चिमोत्तर राज्यों में दिखा है।
अगर हम रोजगार निर्माण को ध्यान में रखें तो यह कमी खासतौर पर अहम है क्योंकि अब से लेकर आजादी के 100वें वर्ष तक कामगार आयु के लोगों में 90 फीसदी का इजाफा उत्तरी राज्यों में होगा। ऐसे में मानव संसाधन विकास पर ध्यान देना होगा। खासतौर पर धीमी वृद्धि वाले राज्यों में शिक्षा और स्वास्थ्य को तवज्जो देनी होगी।
अगले 25 वर्ष की प्राथमिकताओं में और चीजें होतीं तो बेहतर रहता। उदाहरण के लिए वैश्वीकरण के बदलते रुझान के साथ भारत का संबंध, तकनीकी विकास और छोटी स्टार्टअप आदि के लिए समुचित माहौल। अगर भारत को विकसित देश बनने का लक्ष्य हासिल करना है तो यह सब आवश्यक है। वह दर्जा हासिल करने के लिए देश के कौशल और उद्यमिता क्षमता का पूरा लाभ लेना होगा। हमें यह स्वीकार करने के लिए भी तैयार रहना होगा कि विकसित देश बनने की राह हमेशा सहज नहीं होगी। प्रधानमंत्री ने अगले 25 वर्ष को अमृत काल के रूप में परिभाषित किया है। यह शब्द शायद फलित ज्योतिष से आया है जहां दिन को 16 हिस्सों में बांटा जाता है और ये सात में से एक श्रेणी में आता है। इनमें से तीन सकारात्मक, तीन नकारात्मक और एक निरपेक्ष होता है। मृत काल वह हिस्सा होता है जिसे किसी भी काम के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना जाता है। बाकी हिस्से चूंकि नकारात्मक और निरपेक्ष भी होते हैं इसलिए कहा जा सकता है कि अगले 25 वर्ष पूरी तरह अमृत काल नहीं रहने वाले हैं और इस दौरान कुछ कठिन समय भी आएगा। भविष्य को लेकर बनने वाली किसी भी नीति में दोनों की तैयारी रहनी चाहिए।
