बुश प्रशासन में जो अमेरिका की आर्थिक नीतियां थीं, वही बराक ओबामा की सरकार में भी देखने को मिलेंगी।
लिहाजा नई अमेरिकी सरकार की नीतियों में कोई बदलाव नहीं देखने को मिलेगा और स्थितियां वैसी ही गंभीर बनी रहेंगी। अमेरिकी पूंजीवादी आर्थिक नीतियां कभी भारत जैसे विकासशील देश के लिए उचित नहीं हो सकती हैं।
अमेरिकी सरकार आज वहीं ‘काट’ रही है जो उसने वर्षों पहले ‘बोया’ था। अमेरिकी सरकार हमेशा निजीकरण को बढ़ावा देती है, जो कतई सही नहीं है। वह सिर्फ पैसे से पैसा बनाना जानती है, वह भी किसी भी कीमत पर। वह अपनी गलत आर्थिक नीतियों की वजह से ही मंदी की चपेट में है। वहां तो बड़े पैमाने पर छंटनी चल रही है और उसके अनुसार अगर भारत सरकार भी करती है तो फिर तो भगवान ही मालिक है इस देश का।
अगर भारत को सशक्त बनना है तो निजीकरण के बजाय राष्ट्रीयकरण पर जोर देना होगा। हम लोग हमेशा अमेरिकी नीतियां का विरोध करते रहे हैं और अगर भारत उनकी आर्थिक नीतियों का अनुसरण करने के लिए आगे बढ़ता है तो हम आंदोलन करेंगे।
वहां की कोई भी नीति भारत के लिए फायदेमंद नहीं हो सकती है। अगर हमारे यहां के बैंक का भी निजीकरण कर दिया जाता तो अभी यहां भी वहीं स्थिति होती, जो अभी अमेरिका की है। वित्तीय संकट की वजह से अमेरिका को अभी और परेशानियां झेलनी बाकी हैं।
बातचीत : पवन कुमार