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  लेख  आर्थिक मुसीबतों की जड़ नहीं है अमेरिका
लेख

आर्थिक मुसीबतों की जड़ नहीं है अमेरिका

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —November 2, 2008 10:12 PM IST
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दुनिया में कोई भी दिक्कत हो, उसके लिए अक्सर अमेरिका को दोषी करार दे दिया जाता है। लेकिन हकीकत में वह काफी लोकतांत्रिक और आत्म चिंतन वाला मुल्क है। बता रहे हैं


दुनिया के वित्त बाजारों में मची उठा-पटक की वजह से हमारे वक्त की एक बड़ी बात तो छुपी ही रह गई। बड़े-बड़े लेखक आज-कल अमेरिकी पूंजीवाद की मौत के बारे में लेख लिख रहे हैं।

या फिर उनका दावा है कि यूरोप का पूंजीवाद अमेरिकी वर्जन से कहीं ज्यादा बेहतर है। बुश के कार्यकाल के दौरान हुई घटनाओं की वजह से अमेरिका के खिलाफ नफरत में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है। इसकी शुरुआत हुई थी इराक पर अमेरिकी हमले के साथ और अब दुनिया की वित्त व्यवस्था के ढहने के साथ ही अमेरिका के प्रति यह नफरत एक नई ऊंचाई तक पहुंच चुकी है।

शायद इन्हीं गलतियों की वजह से और शायद हर मुसीबत में अमेरिकी हाथ के होने की वजह से ही उसके लिए लोगों में नफरत का ज्वालामुखी इस तरह से फूट रहा है। लेकिन यह बात पूरी तरह से गलत है। अमेरिकी बड़े ही अक्लमंद होते हैं। वे खुद के बारे में सवाल पूछते हैं, सीखते हैं और उस हिसाब से खुद को बदलने में भी पीछे नहीं रहते।

हम हिंदुस्तानियों और उनमें कई सारी बातें एक सी हैं। हम दोनों ही विचारधाराओं को काफी अहमियत देते हैं। कभी-कभी अपने विचारों को दीवानगी की हद तक प्यार करते हैं। हम दोनों काफी मेहनतकश समुदाय हैं।

हम दोनों अपने मजहब से काफी मोहब्बत करते हैं, लेकिन यह भी जानते हैं कि धर्म हमारा निजी मामला है। हम दोनों जबरदस्त कारोबारी हैं और नई सोच को अपनाने में पीछे नहीं रहते। हालांकि कभी-कभी हम उनसे कहीं अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं, मगर हकीकत तो यही है कि अमेरिका हमसे कहीं आगे है।

उसकी सबसे अच्छी बात है, अपनी सुरक्षा को सबसे ज्यादा अहमियत देना और खुद पर पूरा भरोसा करना। साथ ही, वे अक्सर खुद और अपने नेताओं के कामों के बारे में सवाल पूछते रहते हैं। यही बात उन्हें बाकी दुनिया से बेहतर बनाती है। वियतनाम में अमेरिकी फौज के उतरने के कुछ महीनों के भीतर ही उसे अमेरिकी लोगों ने एक बहुत बड़ी गलती के तौर पर मान लिया था।

कुछ ऐसा ही हुआ इराक युध्द के साथ भी। अब आप ही बताएं कि दुनिया में कितने मुल्क इस तरह का आत्मचिंतन करते हैं। कितने मुल्क यह मानते हैं कि उन्होंने गलत किया है और उसका असर दूसरों की जिंदगियों पर भी पड़ा? ज्यादातर देशों में तो अगर आप अपनी सरकार की आलोचना करते हैं, तो आपको देशद्रोही करार दे दिया जाता है।

कुछ मुल्कों में तो सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को जेल की हवा भी खानी पड़ती है। लेकिन ऐसा कुछ तो अमेरिका में नहीं होता। आप चाहें नॉम चोम्सकी हों या फिर जो द प्लंबर, आपकी बात सुनी जाएगी और आपको लोगों का साथ भी मिलेगा।

अमेरिका अपनी गलतियों के बारे में खुले दिमाग और लोकतांत्रिक तरीके से सोचता है। अगर कहीं आपको अपनी बात खुले तौर पर रखने का पूरा अधिकार है, तो वह मुल्क अमेरिका ही है। आपने तो कंपनियों के लिए बेल-ऑउट प्लान के बारे में बड़े-बड़े टीवी चैनलों पर चर्चा तो सुनी ही होगी।

हममें से ज्यादातर यही मानते हैं कि इस बेल-ऑउट प्लान को जारी करने में देरी करके अमेरिकी कांग्रेस ने गैर जिम्मेदारी और बेवकूफी से भरे तरीके से काम किया है। लेकिन कांग्रेस से गलती हुई तो फेड ने दुनिया को रास्ता दिखलाया।

दूसरी ओर, यूरोपियन सेंट्रल बैंक से नेतृत्व की कोई भावना दिखाई ही नहीं दी। कुछ लोग कहेंगे कि दुनिया को इस वित्तीय संकट की राह अमेरिकियों ने ही दिखलाई है। शायद यह बात सच हो सकती है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में सामने आई बातें दूसरी तरफ ही इशारा कर रही हैं। उन बातों की मानें तो यूरोपीयों ने तो अमेरिकी पूंजीवाद को अमेरिकियों से भी ज्यादा अपना लिया था।

नेतृत्व असल में संकट के वक्त सही कदम उठाने से निर्धारित होता है, न कि इस बात से कि वह कदम कहां और कौन उठा रहा है। इसी मामले में तो अमेरिकी दूसरे मुल्कों से कहीं आगे हैं। वे एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में नहीं, बल्कि मुसीबत को कैसे खत्म किया जाए, इस बात को वक्त देते हैं। इसकी वजह है उनकी यह सोच कि गलतियां होती आईं हैं और होती रहेंगी।

सबसे बड़ी बात है उस कदम की पहचान करना, जो गलत हो। उसके बाद फिर अगली गलती का इंतजार करना। लॉर्ड टेनीसन ने एक बार अमेरिका के बारे में कहा था कि, ‘वे सवाल पूछने से नहीं पीछे हटने वाले। वे सवाल पूछेंगे और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में मदद करेंगे।’ अमेरिका की ऊंची सोच के बारे में उसके राष्ट्रपति चुनावों से बड़ी मिसाल और क्या होगी?

हम सभी ने देखा ही है कि कैसे एक अजीबोगरीब नाम वाला अनजाना सा शख्स अमेरिका की एक बड़ी राजनीतिक पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हो गया। हमसे शायद ही किसी को उम्मीद होगी कि एक अश्वेत शख्स कभी अमेरिका का राष्ट्रपति बन पाएगा।

अब इस सपने को सच होने में सिर्फ एक दिन का वक्त रह गया है। अगर यह सपना सच हो गया तो यह अमेरिकी और दुनिया के इतिहास में एक मील का पत्थर होगा। मेरे ख्याल से दुनिया भर के वित्त बाजार और पूरी दुनिया इस बदलाव का दिल खोल कर स्वागत करेंगे।

ओबामा के चुनाव से दुनिया में अमन को काफी फायदा होगा। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद दुनिया में हर तरफ अमन-चैन होगा। यह कहना, सरासर झूठ होगा। लेकिन हम यह तो कह ही सकते हैं कि ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद विदेशियों और ‘दुश्मनों’ के बारे में अमेरिका का रवैया बदलेगा। लोगों का यह भी मानना है कि ओबामा, बुश के मुकाबले एक बेहतर राष्ट्रपति साबित होंगे।

अमेरिका की इस तारीफ को मैं एक हकीकत को मानने के साथ खत्म करना चाहता हूं। बचपन के दिनों से ही मेरी राजनीति में काफी रुचि रही है। राजनीतिक भविष्यवाणियों के साथ झूठा साबित होने की पूरी संभावना होती है। मेरी अब तक ज्यादातर राजनीतिक भविष्यवाणियां सही साबित हुईं हैं।

लेकिन मेंरे दोस्तों को (दुश्मनों को भी) 1991 की वह भविष्यवाणी अच्छी तरह से याद होगी, जब मैने कहा था कि चुनाव में राजीव गांधी और कांग्रेस की जबरदस्त जीत होगी। लेकिन मैं झूठा साबित हो गया। यह हकीकत को कबूल करने का वक्त है। मैं ओबामा की जीत का दावा तो 2007 की शुरुआत से ही करता आ रहा हूं। ज्यादातर लोगों को लग रहा है कि मैं दिल से सोचता हूं। लेकिन इस बात के लिए मेरे दिल और दिमाग, दोनों गवाही दे रहे हैं।  

america is not base of economic crisis
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