अभियान चलाने वाले अनुभवी लोग अक्सर यह सलाह देते हैं कि अगर आप किसी तर्क में कोई कमी नहीं पाते हैं, तो बेहतर यही होगा कि आप उस मसले पर लोगों को भ्रमित कर दें।
संचार मंत्री ए राजा और हाल ही में भारत सरकार की वेबसाइट पर डाली गई उनकी प्रेस विज्ञप्ति से कुछ ऐसा ही आभास होता है। दरअसल इस प्रेस विज्ञप्ति में बिल्कुल वही बातें कही गई हैं जैसा कि पिछले दिनों अंग्रेजी दैनिकों- द हिंदू बिजनेस लाइन और द हिंदू में प्रकाशित उनके इंटरव्यू में कही गई थीं।
जिन लोगों के लिए संदेश दिया जाना था उनके लिए तर्क बहुत ही सशक्त थे, संदेश खासकर उन लोगों के लिए था जो या तो इस मसले के बारे में नहीं जानते या इसे जानना नहीं चाहते। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इनमें से बाद वाली श्रेणी में आते हैं।
यह सभी लोगों को भलीभांति मालूम है कि राजा ने इस साल के शुरू में बहुत ही सस्ते में 2जी स्पेक्ट्रम का वितरण किया, जिसका कुछ विरोध भी हुआ, लेकिन सिंह ने उसे स्वीकृति दे दी। इसकी वजह यह थी कि उनकी सरकार को बचाए रखने की कीमत ही सबसे बढ़कर थी।
दूसरी बात यह थी कि स्पेक्ट्रम आबंटन मामले में कीमत तो सरकारी खजाने से चुकानी पड़ रही है। हम जानते हैं कि यह कीमत करीब 55,000 करोड रुपये है। यह कीमत उससे भी ज्यादा है, जो रक्षा क्षेत्र के लिए उपकरणों के आयात के वास्ते इस साल आबंटित की गई है। यह भी सबको मालूम है कि ऐसा कैसे हुआ।
इस उदारता और सरकारी दानशीलता का लाभ कई लोगों ने उठाया, उनमें से दो ( स्वॉन और यूनिटेक) ने तो सार्वजनिक रूप से इसको कैश करा लिया। लाइसेंसों के माध्यम से राजा ने जो कुछ किया, उससे सरकारी खजाने में घाटे का आंकड़ा करीब 55,000 करोड़ रुपये आता है।
इसके बहुत ही साफ प्रमाण हैं। राजा अब इस कोशिश में लगे हैं कि इसे किसी तरह से धुंधला किया जाए। इसलिए उन्होंने द हिंदू बिजनेस लाइन और द हिंदू में तर्क दिया और सरकार की वेबसाइट में 55,000 करोड़ रुपये के तर्क के बारे में कहा कि आलोचक बड़े फायदे को नजरअंदाज करते हुए छोटे फायदे की बात कर रहे हैं।
राजा ने यह तर्क दिया कि उन्होंने नीलामी के बजाय कम कीमत पर स्पेक्ट्रम दिया लेकिन जिन कंपनियों ने इसका लाभ उठाया है, उनसे वह भारी भरकम सालाना शुल्क वसूलने में कामयाब रहेंगे। इन कंपनियों पर भारी भरकम प्रवेश शुल्क का भार नहीं डाला गया है, इसलिए टेलीकॉम कंपनियां इस बात के लिए सक्षम होंगी कि वे आम लोगों से कम शुल्क लें और ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को आकर्षित करें।
इसके चलते सरकार को हर साल राजस्व के रूप में मोटा मुनाफा मिलेगा। इससे कंपनियों को लंबे समय तक सेवाओं के संचालन के लिए और ज्यादा पैसा मिल जाएगा। अब यह बात समझ से परे है कि जिन कंपनियों ने स्वॉन और यूनिटेक से बाजार की पूरी कीमत पर स्पेक्ट्रम के लिए पैसा दिया है, वे क्यों टैरिफ कम करेंगी।
राजा के तर्क सही होने के लिए दो बातें होनी चाहिए। पहली, यह ऐसा मामला होना चाहिए कि स्पेक्ट्रम प्रयोग करने का शुल्क संचालन और प्रयोग शुल्क को स्पेक्ट्रम पर नहीं लगाया जा सकता, जिस स्पेक्ट्रम पर पूरा शुल्क ले लिया गया है। दूसरी यह कि स्पेक्ट्रम पर हर साल मिलने वाला राजस्व 55,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होना चाहिए।
पहले तर्क को लें तो यह सभी लोग जानते हैं कि चौथे दौर में सेल्युलर लाइसेंस की नीलामी 2001 में की गई और कई चरणों की बोली के बाद 1,651 करोड़ रुपये मिले थे। लेकिन बोली के माध्यम से स्पेक्ट्रम की इतनी कीमत लिए जाने के बाद भी सरकार अब भी इन कंपनियों से स्पेक्ट्रम प्रयोग शुल्क के रूप में 2-6 प्रतिशत लेती है (इसके साथ ही लाइसेंस शुल्क के रूप में विभिन्न टेलीकॉम सर्किल के मुताबिक 6 से 10 प्रतिशत लिया जाता है)।
बहरहाल स्पष्टीकरण के रूप में राजा की योजना है कि 3जी स्पेक्ट्रम पर 1 प्रतिशत स्पेक्ट्रम शुल्क लिया जाए, जिसकी जल्द ही नीलामी होने वाली है (इसके साथ ही 6-10 प्रतिशत लाइसेंस शुल्क के रूप में लिया जाएगा)। लेकिन यह नीलामी के लिए जारी पेपर में कहीं नहीं कहा गया है कि सरकार 1 प्रतिशत शुल्क कभी नहीं लेगी।
दूसरे के बारे में क्या होगा? राजस्व की वसूली इस बात पर निर्भर करती है कि 4.4 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम प्रति फर्म के हिसाब दिया गया है, उनके उपभोक्ताओं की संख्या कितनी है। उपभोक्ता के आधार पर आवंटन के दिशानिर्देशों से हमें पता चलता है कि अखिल भारतीय स्तर पर 4.4 मेगाहर्ट्ज से 1.6 करोड़ उपभोक्ताओं को सेवाएं प्रदान की जा सकती हैं।
जितना लाइसेंस राजा ने जारी किया है, इसके आधार पर 9.6 करोड उपभोक्ताओं को हर साल सेवाएं दी जा सकती हैं। हर उपभोक्ता 250 रुपये प्रतिमाह भुगतान करता है, जिससे हमें 28,800 करोड़ रुपये का सालाना राजस्व मिलता है।
अब कल्पना करें ( जैसा कि पूरी तरह से गलत ढंग से पहले तर्क में कहा गया है) कि उन कंपनियों से राजा कोई शुल्क नहीं लेंगे , जिन्होंने स्पेक्ट्रम फीस का सही भुगतान किया है, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और अब वह उन्हें भुगतान करने को कहने में सहज महसूस करेंगे।
शुल्कों पर जारी किए गए चार्ट के मुताबिक यह शुल्क विभिन्न स्पेक्ट्रमों के लिए 2 प्रतिशत है (6.2 मेगाहर्ट्ज के स्तर पर यह 3 प्रतिशत होता है)। इस तरह से सैध्दांतिक रूप से देखें तो राजा हर साल इन फर्मों से अधिकतम 576 करोड़ रुपये प्राप्त कर सकते हैं। इस समय 576 करोड़ रुपये का मतलब ही क्या बनता है?
अगर आप कल्पना करें कि ब्याज दरें 10 प्रतिशत हैं तो अगर 5,760 करोड़ रुपये जमा कर दिए जाएं तो इसका ब्याज 576 करोड़ रुपये प्रति साल आएगा। और राजा ने 55,000 करोड़ रुपये छोड़ दिए हैं, वह इसका करीब 10 गुना है।
राजा का एक और तर्क यह है कि मूल्यांकन में स्पेक्ट्रम के अलावा अन्य चीजें भी शामिल हो सकती हैं जैसे आधारभूत ढांचा, इंटरकनेक्शन अधिकार, उपभोक्ता आधार और अन्य तमाम चीजें। वह सही कह रहे हैं, लेकिन इनमें से किसी भी फर्म के पास न तो कोई आधारभूत ढांचा है और न ही कोई ग्राहक है।
उपभोक्ताओं के न होने के बावजूद यह सही है कि स्वॉन ने बीएसएनएल से रोमिंग के लिए समझौता किया है (यह एक और ही घोटाला है क्योंकि बीएसएनएल किसी और टेलीकॉम कंपनी के उपभोक्ताओं को अपने नेटवर्क में रोमिंग की सुविधा नहीं देती है) लेकिन यही एकमात्र मूल्यांकन हो सकता है, जिसके लिए हाल ही में एतिसालात ने भुगतान किया है। इन सबके बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तमाम विपक्षी दलों ने इस लूट पर चुप्पी साधकर राजा का विश्वास मान लिया है, कुछ कहने को बचा नहीं है।