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  लेख  कार्बन उत्सर्जन से लड़ने में कारगर हथियार है शैवाल
लेख

कार्बन उत्सर्जन से लड़ने में कारगर हथियार है शैवाल

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —April 21, 2009 5:59 PM IST
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कार्बन के तेजी से पुनर्चक्रण के लिए शैवाल और मेंथानॉल का इस्तेमाल बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों के बीच मशहूर हो रहा है।
ग्लेशियर और नदियों के गायब होने का खतरा जैसे-जैसे बढ़ रहा है, कोयले पर आधारित भारत के बिजली संयंत्रों को कार्बन के पुनर्चक्रण के लिए शैवाल और मेंथानॉल की तरफ नजरें इनायत करनी पड़ सकती है।
कोयले पर आधारित बिजली उत्पादन करने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी एनटीपीसी सिम्हाद्रि स्थित कोयला आधारित बिजली संयंत्र के पास समुद्री शैवाल उगाने में जुटी है। यहां पैदा होने वाला शैवाल उसके संयंत्र से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को हजम कर जाएगा और इसे वैसी साफ सुथरी ऊर्जा में तब्दील कर देगा जिससे कार और बस चलाई जा सकेगी।
ग्लेशियर को पिघलाने वाले कार्बन उत्सर्जन से लड़ने केलिए समुद्री शैवाल नया योध्दा बनकर उभरा है। शैवाल को खास तौर पर कोयले पर आधारित बिजली संयंत्र के पास तैनात किया जाएगा ताकि यह कार्बन का पुनर्चक्रण कर इसे तेल में तब्दील कर सके।
एनटीपीसी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक आर. एस. शर्मा ने हाल में आयोजित साफ-सुथरे कोयला तकनीक सम्मेलन में बताया कि उनकी कंपनी हरित कार्बन बनाने में जुटी हुई है। एनटीपीसी ने इसके लिए शैवाल का चयन किया क्योंकि इसमें कार्बन को पकड़ने और उसे जमा करने की अच्छी क्षमता है।
शर्मा ने सीसीएस को ज्यादा खर्चीला और खतरनाक बताया, साथ ही यह भी कहा कि दुनिया भर में यह समाधान का जरिया नहीं बन सकता। उन्होंने कहा कि सीसीएस से लैस संयंत्र में बिजली का खर्च 60-90 फीसदी तक ऊपर जा सकता है। दूसरी ओर शैवाल न सिर्फ बायो-फ्यूल पैदा करता है बल्कि वैश्विक मौसम के लिए खतरा बन चुके कार्बन को भी निष्प्रभावी बना देता है।
कार्बन को घटाने के तौर पर शैवाल को जेट्रोफा और दूसरे तिलहन केमुकाबले अच्छी रैकिंग मिली हुई है क्योंकि यह बायो-फ्यूल का सबसे तेज और सबसे बड़ा स्रोत है और कार्बन से पहुंचने वाले नुकसान को यह बेअसर कर सकता है। लेकिन 10 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड के सफाये के लिए 20 लाख टन शैवाल की जरूरत होगी। ऐसे में इसके उत्पादन पर ध्यान देने की जरूरत है।
खुशखबरी यह है कि शैवाल की प्रति एकड़ पैदावार किसी और तिलहन के मुकाबले ज्यादा है। उदाहरण के तौर पर एक एकड़ में लगाए गए सोये से 48 गैलन तेल मिल सकता है, मूंगफली से 113 गैलन, रैपसीड से 124, नारियल से 287, पाम ऑयल से 635, लेकिन शैवाल से यह 15 हजार गैलन मिल सकता है। शैवाल को खारे (नमकीन) पानी, रेगिस्तान में, खराब पानी में उगाया जा सकता है, जो कि इसे और आकर्षक बनाता है।
पिछले हफ्ते मौसम परिवर्तन पर प्रधानमंत्री के विशेष दूत श्याम सरन ने एनटीपीसी से कहा था कि वह दूसरी हरित ऊर्जा मेंथानॉल पर भी गौर करे क्योंकि यह कोयला आधारित पावर प्लांट को हरित बना सकता है जो कि वातावरण को दीर्घकालिक बनाए रखने के लिए जरूरी है। उन्होंने इस बाबत एनटीपीसी से प्रोजेक्ट तैयार करने को भी कहा।
भारत में स्थित कोयला आधारित प्लांट जिस तरह से वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड का उत्सर्जन कर रहे हैं उसमें वैश्विक हमले के खिलाफ भारत के लिए लड़ाई का हथियार साबित हो सकता है। युनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज के तहत जैसे ही क्लाइमेट एग्रीमेंट पर वैश्विक वार्ता की खातिर इस साल दिसंबर महीने में निष्कर्ष निकाला जाना है, इसे देखते हुए स्थितियां बदलने की उत्कंठा बढ़ गई है।
भारत इस बाबत दबाव में है क्योंकि उसे बताना है कि संख्या बढ़ाने के अलावा वह कोयला आधारित बिजली संयंत्र के लिए क्या कर रही है। साल 2012 तक बिजली उत्पादन की कुल क्षमता 207000 मेगावाट की होगी जिसमें से 47 हजार मेगावाट कोयला आधारित संयंत्र से होगी।
सरन ने अमेरिका में कहा – पिछले दो सालों में कोयले पर आधारित 100 से 150 बिजली संयंत्र या तो रद्द कर दिए गए या फिर उन्हें लाइसेंस देने से इनकार कर दिया गया। पर्यावरण कार्यकर्ता और शोधकर्ता पहले ही भविष्यवाणी कर रहे हैं कि हिमालय के ग्लेशियर और गंगा के लिए 2035 में कयामत का दिन आएगा।
जलवायु परियोजना की पहली वर्षगांठ पर गैर-लाभकारी ग्रुप स्कूल के शिक्षकों व बच्चों के बीच मौसम परिवर्तन पर जागरूकता अभियान चला रहा है। उद्योगपति और ट्रस्टी कमल मीतल पहले ही मर रही गंगा पर मातम मना रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कार्बन के उत्सर्जन की वजह से यह नदी साल 2035 तक पूरी तरह समाप्त हो सकती है, लिहाजा कार्रवाई आज से ही शुरू करनी होगी। हिमालय पर फतह हासिल करने के लिए शैवाल के इस्तेमाल का यही वक्त हो सकता है।

shell is better weapon in fight with carbon waste
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