रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनी यूनिटेक के भविष्य पर निगाहें जमाए लोगों के साथ ही कुछ और लोगों ने इस खबर पर ध्यान दिया होगा।
कि नार्वे स्थित कंपनी टेलीनोर ने यूनिटेक वायरलेस में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए 1.8 अरब डॉलर का राइट इश्यू लाने के फैसले को टाल दिया है।
टेलीनोर ने अब इस खरीदारी के वित्त पोषण के लिए और अधिक ऋण (1.2 अरब डॉलर) लेने और इस साल अपने शेयरधारकों को लाभांश (फाइनैंशियल टाइम्स के मुताबिक 0.9 अरब डॉलर) नहीं देने की योजना बनाई है।
तो सवाल यह है कि टेलीनोर ने राइट इश्यू नहीं लाने का फैसला क्यों किया और इसके मायने क्या हैं? इस बारे में कई तरह की राय सामने आई हैं और इनमें से एक राय, जो सबसे विश्वसनीय लगती है, वह यह है कि कंपनी इस क्षेत्र में भविष्य में किए जाने वाले निवेश को लेकर चिंतित है।
यदि ऐसा नहीं है तो भी यह लगातार तेजी दर्ज कर रहे इस क्षेत्र में भविष्य में होने वाले निवेश के लिहाज से अच्छा संकेत नहीं है।
यह घटना एक चेतावनी देती है कि आज इक्विटी में या शायद कल ऋण में निवेश करने वाले निवेशकों को कुछ मुश्किल सवालों का सामना करना पड़ सकता है।
आखिर टेलीनोर या उसके जैसी कोई दूसरी दूरसंचार कंपनियां भारत में निवेश करने से क्यों कतरा रही हैं? वजह साफ है।
1- भारत में पहले ही 35 करोड़ मोबाइल फोन उपभोक्ता हैं और जब तक टेलीनोर अपने पूरे नेटवर्क के साथ खड़ी होगी, जिसमें करीब एक साल लग जाएगा, ग्राहकों की संख्या बढ़कर 45 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी होगी।
इनमें से करीब 30 करोड़ उपभोक्ता शहरी क्षेत्रों से होंगे। इसलिए अभी तक शहरी क्षेत्रों में विस्तार अपने चरम पर होगा और जब तक टेलीनोर अपना परिचालन शुरू करेगी ।
तब तक शहरी बाजार में ठहराव की स्थिति आ चुकी होगी। इस विस्तार की संभावनाएं केवल ग्रामीण भारत में ही बची रह जाएंगी, लेकिन यहां विस्तार का अर्थ है शुरुआत में आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया।
2- टेलीनोर से मुकाबले के लिए भारती, रिलायंस, वोडाफोन और बीएसएनएल जैसी विश्वस्तरीय नेटवर्क वाली कंपनियां होंगी। ऐसे हालात में उनके साथ मुकाबला करना काफी कठिन होगा।
3- हालांकि अपने नए निवेश प्रस्ताव के बारे में निवेशकों को दिए गए प्रस्तुतिकरण में टेलीनोर ने कहा है कि भारत में एक पारदर्शी नियामक प्रणाली है और उपभोक्ताओं की संख्या के आधार पर स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया है, लेकिन कोई भोला व्यक्ति ही इस बात पर भरोसा कर सकता है।
टेलीनोर जिस लाइसेंस के लिए 1.1 अरब डॉलर चुकाने के लिए तैयार है, वह लाइसेंस यूनिटेक को इसलिए मिला क्योंकि संचार मंत्री ए राजा उसका जोरदार तरीके से समर्थन कर रहे थे। राजा ने इस कानून को मामने इनकार कर दिया कि नए लाइसेंस लेने के लिए नीलामी ही एकमात्र रास्ता है।
और अगर राजा ने भारती और वोडाफोन जैसी मौजूदा दूरसंचार कंपनियों को उपभोक्ता आधार पर स्पेक्ट्रम का आवंटन किया होता, जैसा कि टेलीनोर कह रही है तो, उनके पास यूनिटेक जैसी कंपनियों को तरजीही आधार पर आवंटन के लिए कोई भी अतिरिक्त स्पेक्ट्रम न बचता।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारती और वोडाफोन लंबे समय तक स्पेक्ट्रम हासिल करने की दौड़ में शामिल ही न हो पाएं, राजा ने ग्राहक -आवंटन के मानक को औसतन तीन से पांच गुना बढ़ा दिया।
अगर अरुण शौरी रिलायंस के लिए नियमों को बदल सकते हैं और राजा अपनी पसंदीदा कंपनियों के लिए ऐसा कर सकते हैं तो निवेशकों को यह पूछने का अधिकार है कि आखिर नई सरकार सारे नियम कायदों को एक बार फिर क्यों नहीं बदल देगी।
इस बीच केंद्रीय सतर्कता आयोग यूनिटेक जैसी फर्मों को लाइसेंस के आवंटन की जांच कर रही है और दूरसंचार विवाद निपटारा एवं अपील न्यायाधिकरण में इस फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका भी दायर की गई है- इसलिए टेलीनोर ने एक और जोखिम लिया है।
4- यूनिटेक को लाइसेंस मिले हुए एक साल से अधिक का समय हो गया है लेकिन वह अभी तक देश के सभी दूरसंचार सर्किल में स्पेक्ट्रम हासिल नहीं कर सकी है।
आइडिया (9 सर्किल के लिए), वोडाफोन (6 सर्किल के लिए) और एयरसेल (14 सर्किल के लिए) को भी स्पेक्ट्रम के लिए भुगतान करने में एक साल का समय लग गया था, लेकिन वे इंतजार कर सकते थे क्योंकि उनका परिचालन पहले ही जारी था, लेकिन किसी नई कंपनी के लिए इंतजार को सही नहीं कहा जा सकता।
5- इस बात की गारंटी भी नहीं है कि यूनिटेक शुरुआती 4.4 मेगा हट्र्ज, जो उसके पास पहले से है, के अतिरिक्त और स्पेक्ट्रम हासिल कर लेगी। और इस बात की गारंटी भी नहीं है कि उसे स्पेक्ट्रम कब मिलेगा।
ऐसे में उसके कारोबार का क्या होगा? टेलीनोर के प्रस्तुतिकरण में कहा गया है कि उसका लक्ष्य अगले दो वर्षों के दौरान 8 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी हासिल करना है, जिसका अर्थ है करीब 4.8 करोड़ उपभोक्ता। जबकि उसके पास जो स्पेक्ट्रम है, वह इसके एक चौथाई ग्राहकों की जरुरतों को पूरा कर सकता है।
6- कानून के तहत अगर यूनिटेक अपने नेटवर्क के 10 प्रतिशत का विस्तार भी नहीं कर पाती है तो उसका लाइसेंस वापस लिया जा सकता है।
राजा इसे भी बदलना चाह रहे हैं लेकिन यह निश्चित नहीं है कि ऐसा होगा या नहीं, यदि वह ऐसा कर लेते हैं तो इसे बदला नहीं जा सकता है। इसलिए कारोबार करने के लिए राजनीतिक साख काफी जरूरी है।
7- अगर टेलीनोर ने 4.4 मेगा हट्रर्ज 2जी स्पेक्ट्रम वाले कारोबार की कीमत 8,500 करोड़ रुपये लगाई है और सरकार ने अधिक प्रभावी 5 मेगा हट्र्ज 3जी स्पेक्ट्रम, जो अधिक प्रभावी है, की कीमत 2,020 करोड़ रुपये (नीलामी की कीमत अधिक हो सकती है, लेकिन कितनी?) तय की है, तो निश्चित है कि इनमें से एक कीमत गलत है। कौन सी गलत है? निश्चित तौर से यह सवाल टेलीनोर के निवेशकों के मन में होगा।
इसलिए भारत को इस बारे में सोचना चाहिए। अगर ऐसे ही कुछ और सौदे टूटते हैं तो देश के दूरसंचार क्षेत्र को लेकर निवेशकों की धारणा प्रभावित होगी।
अगली सरकार के नए मंत्री और प्रधानमंत्री को इस बारे में सोचना होगा और राजा द्वारा छोड़ी गई विरासत के गड़बड़-झाले को दूर करने के लिए भारी मशक्कत करनी होगी।
इसके तहत पहले साल में विस्तार के प्रावधानों को पूरा नहीं कर पाने वाली कंपनियों के लाइसेंस वापस लेने चाहिए। लेकिन लंबे कानूनी झमेले के कारण यह भी संभव नहीं हो सकेगा।