वैश्विक आर्थिक मंच पर लगातार कई महीनों तक बुरी खबरों के बाद, अब धीरे-धीरे इस बात के कुछ संकेत दिखाई देने लगे हैं कि शायद जितना बुरा हो सकता था, वह हो चुका।
मंदी के गुजर जाने के बाद भी इसका प्रभाव भले ही अभी कुछ महीनों तक बना रह सकता है या यह भी हो सकता है कि यह अगले साल तक कायम रहे।
हालांकि, माना यह जा रहा है कि प्रमुख सरकारों की ओर से कर्ज में फंसी परिसंपत्ति यानी टॉक्सिक ऐसेट की सफाई के लिए अर्थव्यवस्थाओं में झोंके गए अरबों डॉलर वैश्विक अर्थव्यवस्था की हालत को आगे सुधारने में मददगार साबित होंगे। वास्तव में, कुछ ने पहले से ही अर्थव्यवस्था में सुधार को दिखलाने वाले छोटे-छोटे सुधारों की देखभाल शुरू कर दी है।
हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन और जापान सरीखी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में तुरंत सुधार को लेकर उचित संदेह जताया जा रहा है, लेकिन इस बात के भी पर्याप्त संकेत मिलने शुरू हो गए हैं कि हो सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने मंदी का बुरा दौर देख लिया है और विकास दर में सुधार की शुरुआत इस साल के अंत से पहले देखी जा सकती है।
कंपनियों की तिमाही में हुई कमाई की रिपोर्टों को देखें तो वे इतनी बुरी नहीं हैं, जितना कि उम्मीद की जा रही थी। जिंसों तथा उपभोक्ता उत्पाद उद्योगों जैसे सीमेंट, इस्पात, कपास और मानव निर्मित सूत, ऑटोमोबाइल और टेलीफोनों में उपभोग के आंकड़े विकास के संकेत दिखा रहे हैं।
हालांकि शेयर बाजार खुद में सुधार का सटीक सूचक नहीं है, लेकिन सेंसेक्स को दोबारा 11,000 के स्तर पर देखना निश्चित रूप से सुखद अहसास है। महंगाई नियंत्रण में है और बैंक की कर्ज दरें आखिरकार फिर एक बार कम हो गई हैं।
इसके आगे भारत के लिए अच्छी खबर तो यह है कि अप्रैल में रिलायंस इंडस्ट्रीज (जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था में दूरगामी सकारात्मक असर होगा और निकट भविष्य में इससे मौजूदा ऊर्जा कीमतों पर भारत से विदेशी मुद्रा में होने वाला भुगतान सालाना लगभग 9 अरब डॉलर कम हो जाएगा) में गैस के उत्पादन की शुरुआत हो चुकी है तथा टेक महिंद्रा के हाथ में सत्यम की कमान आ गई है।
भारतीय कारोबार के प्रमुखों को प्रोत्साहित करने वाले इन संकेतों की ओर व्यावहारिक सकारात्मक रवैये के साथ अब अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए। शुरुआत के लिए विकास की योजना बनाने के लिए खर्चों में कटौती पर से अपना ध्यान हटा देना चाहिए।
कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि कारोबारों में उन कर्मियों की संख्या को बेतरतीब तरीके से बढ़ा दिया जाए, जिन्हें उन्होंने काफी दर्द लेकर निकाला था। बावजूद इसके, कर्मचारियों की मौजूदा संख्या के साथ बने रहने के प्रयासों पर कायम रहना चाहिए, लेकिन यह समय धीरे-धीरे और लगातार सकारात्मक संकेत देने का समय है।
इनमें कुछ ऐसे संकेत भी शामिल हो सकते हैं, जैसे कारोबार के सिलसिले में पर्यटन पर खुद लगाए गए प्रतिबंधों को धीरे-धीरे हटाना, विभिन्न स्तरों, जिनमें एंट्री लेवल भी शामिल है, पर नियुक्तियों पर लगाई गई रोक को हटाना।
हां, पर्यटन के खर्च को अब भी कम किया जा सकता है, इसके लिए कंपनियां पर्यटन और होटल की श्रेणी को कम कर सकती हैं, लेकिन यह कहने की जरूरत नहीं है कि कंपनियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे अपने प्रबंधकों को मौजूदा उपभोक्ता और कारोबारी परिस्थितियों का खुद का अनुभव ले सकें और उसके बाद ही स्थितियों के मुताबिक योजना बनाएं।
नई नियुक्तियों की शुरुआत से न सिर्फ उन लोगों को फायदा होगा, जिन्हें रखा जाएगा, बल्कि इससे संस्थान का खुद का भी हौसला बढ़ेगा। जहां सभी उपभोक्ता उत्पाद से जुड़ी कंपनियां और रिटेल कारोबारों का व्यवसाय लगातार बना रहना चाहिए और उपभोक्ताओं के खर्च को बढ़ाने के लिए उन्हें अपनी विपणन और प्रचार की कवायदों को भी तेज करना चाहिए।
यहां तक कि कुछ क्षेत्रों में इन कवायदों, इन प्रयासों से आगे भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। इनमें नकदी को तरस रहा रियल्टी सेक्टर शामिल है, जिसमें आखिरकार उद्योग के दिग्गजों ने बुनियादी सच्चाई को स्वीकार कर लिया है और वे और भी आकर्षित कीमतों वाली मार्केटिंग रणनीतियों के साथ ग्राहकों को लुभाने के लिए मैदान में उतरे हैं।
पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र ने मझोली कीमतों की श्रेणी में अपनी सेवाओं में सकारात्मक रवैया देखा है, लेकिन इन क्षेत्रों की महंगी और लक्जरी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियां अब भी इस बात को नजरअंदाज करती दिखाई दे रही हैं।
पहले ये कंपनियां भी स्वीकार रही थीं कि कॉर्पोरेट और वैयक्तिक स्तर पर उपभोक्ता पर्यटन करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें कम कीमत में अधिक सेवाएं चाहिए। बेहतरी इसी में है कि वे अपनी मौजूदा क्षमताओं जिनका इस्तेमाल पूरे तौर पर नहीं हो पा रहा, उसका पूरा उपयोग करें।
बड़े निवेशों के लिए नए मौकों की पहचान करने पर भी ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है। पारंपरिक उद्योगों और बुनियादी ढांचे से जुड़े क्षेत्रों के अलावा कई ऐसे बड़े उभरते हुए क्षेत्र भी हैं, जिनमें काफी संभावनाएं हैं। इनमें हेल्थकेयर और शिक्षा सरीखे क्षेत्र शामिल हैं।
ये क्षेत्र लगातार निजी इक्विटी और दूसरे निवेशकों से अधिक मुनाफा कमा रहे हैं और इसलिए इनसे बड़े कारोबारी मॉडलों के लिए पूंजी उगाहने की क्षमता की अपेक्षा यथार्थवादी है। आगे जो भी नई सरकार आएगी अर्थव्यवस्था को राहत पहुंचाने के लिए वह और क्या-क्या कर सकती है?
सरकार गंभीरता से शिक्षा सरीखे क्षेत्रों में नीतिगत सुधारों पर काम कर सकती है, रिटेल और बीमा जैसे रोजगार पैदा करने वाले क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर से पाबंदियां हटा या कम कर सकती है, स्वास्थ्य रक्षा से जुड़े कारोबार के लिए प्राथमिक कर्ज और करों में छूट दे सकती है।
यह सुविधा खासतौर पर ऐसे संस्थानों को मिलनी चाहिए जो छोटे शहरों और ग्रामीण भारत में अतिरिक्त बिस्तरों की सेवा के लिए तैयार हों। और अंत में बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं जैसे राज्य मार्ग और ग्रामीण सड़क योजना (पीजीएसवाई) मेगा और दूसरी बिजली परियाजनाएं, बंदरगाहों, हवाई अड्डों और रेल के आधुनिकीकरण, पर काम में तेजी लानी चाहिए।
यदि गंभीरता के साथ ये प्रयास किए जाते हैं तो कोई वजह ही नहीं है कि भारत उच्च विकास दर के रास्ते पर वापस नहीं लौट सकता।
