किसी कंपनी के ब्रांड की छवि बनाने और उसमें बार बार होने वाले परिवर्तन तथा कंपनी के लोगो में बदलाव के बढ़ते प्रचलन को देखते हुए ब्रांड डिजाइनिंग और कंसल्टेंसी फर्म के लिए कारोबार का बड़ा मौका तैयार होने लगा है।
इससे विज्ञापन एजेंसियों के लिए मुनाफे की एक नई राह तैयार हो गई है। प्रमुख विज्ञापन एजेंसियां किसी कंपनी के ब्रांड मेकिंग और मेकओवर के लिए विशेष तौर पर अपनी विशेष शाखा तैयार कर रही हैं। इसके अलावा वे किसी ब्रांड डिजाइन यूनिट के साथ गठजोड़ या उनका अधिग्रहण कर रही हैं।
विज्ञापन एजेंसी डब्ल्यूपीपी ने दो साल पहले ‘रे प्लस केशवन’ का अधिग्रहण किया था जबकि ‘लियो बर्नेट’ और ‘ओ ऐंड एम’ ने अपनी इकाई तैयार की है। हाल ही में मुद्रा विज्ञापन एजेंसी ने इस साल सितंबर में स्ट्रैटजी और डिजाइन के लिए सलाह देने वाली शाखा को लॉन्च किया जिसे वाटर नाम दिया गया।
वाटर के बिजनेस हेड और मुख्य रणनीतिकार आशीष मिश्रा का कहना है, ‘एजेंसियों के लिए यह बेहद जरूरी हो गया है कि वे विज्ञापनों से अलग, ब्रांड से जुड़े दूसरे मसलों के लिए भी खुद को तैयार करें। इसलिए यह जरूरी है कि वे विशेष तौर पर अपनी कंपनी में ही एक शाखा तैयार करें।’
किसी ब्रांड को स्थापित करने के लिए जो पहला चरण हैं, वह है प्रोडक्ट डिजाइन और कंसल्टेंसी तैयार करने का। मुद्रा के सीईओ मधुकर कामत यह अनुमान लगाते हुए कहते हैं कि ब्रांड के लिए स्ट्रेटेजी और डिजाइन तैयार करने का जो बाजार है वह फिलहाल 100 करोड़ रुपये का है।
फिलहाल यह भारतीय विज्ञापन और मीडिया उद्योग के एक फीसदी से भी कम है। लेकिन अनुमान है कि साल दर साल यह 20 से 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। रेड लॉयन के मैनेजिंग पार्टनर एल्सी नानजी कहते हैं, ‘दरअसल हम ऐसे काम को करने के लिए किसी ब्रांड की किस तरह शुरुआत हुई यह सब भी देखते हैं।
ऐसे कामों में विशेषज्ञता का अपना ही फायदा होता है और यह फायदा किसी ब्रांड और उसकी मार्केटिंग में भी होता है।’ विज्ञापन एजेंसियों को फायदा इस तरह से होता है कि उन्हें किसी कंपनी के मेकओवर के बाद उसके विज्ञापन की जिम्मेदारी भी मिल जाती है।
ऐसे में एक ही एजेंसी को दोनों काम मिल जाने पर कंपनी की भी बचत होगी। ब्रांड बनाने, मेकओवर करने और लोगो में बदलाव लाने जैसे कामों से जुड़ी कंपनी, इस तरह के कामों के लिए बहुत पैसे लेती है। नानजी का कहना है, ‘किसी ब्रांड को बनाने या उसे दुबारा लॉन्च करने जैसे कामों के लिए यह बेहतर होता है कि आप उसी एजेंसी की दूसरी इकाई को यह काम सौंप दें। इसका फायदा यह होता है कि किसी ब्रांड में बार-बार तब्दीलियां करके भी डिजाइनर इसकी अलग पहचान को खत्म नहीं करते है।’
आजकल बाजार में इतनी प्रतियोगिता बढ़ रही है कि कंपनियों को अपने ब्रांड की लुक में बदलाव और रणनीति को फिर से बनाने के सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं सूझता। इसी वजह से कई बैंकों ने अपने लोगो और संदेशों में तब्दीली की है, मसलन बैंक ऑफ बड़ौदा, और यूटीआई।
मिश्रा कहते हैं, ‘अपने काम की शुरुआत के पहले तीन महीनों में ही हमने यूनियन बैंक का मेकओवर किया और गोदरेज हेयर डाई की फिर से पैकेजिंग और रिब्रांडिंग का काम किया। हमने हाल ही में प्रोसेस्ड फूड की बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनी के लिए काम करना शुरू किया है।’ बाजार में प्रोडक्ट की बढ़ती संख्या के मद्देनजर, किसी कंपनी के प्रोडक्ट के लिए यह बेहद जरूरी है कि डिजाइनिंग और पैकेजिंग के जरिए वह अपनी अलग पहचान बना सकती हैं।