मुंबई के अतिरिक्त निगम आयुक्त आर ए राजीव और उनकी टीम एक लक्ष्य को साधने में जुटी है। इस साल के आखिर तक अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले राजीव देश की आर्थिक राजधानी को नई शक्ल देना चाहते हैं।
उन्होंने आउटडोर मीडिया के लिए नियमों में तब्दीलियां की हैं। शहर में केवल एक निश्चित आकार के होर्डिंग ही अब नजर आएंगे। केवल यही नहीं होर्डिंग कुछ खास जगहों पर ही दिखेंगे। साथ ही होर्डिंग के लिए गुणवत्ता का एक पैमाना भी तय कर दिया गया है।
हाल ही में उन्होंने सड़कों के किनारे लगे होर्डिंग और बोर्ड के लिए कुछ कंपनियों से बात भी की और उनमें से 6 कंपनियों की छंटनी भी की है। वह कहते हैं, ‘अगर मुंबई को विश्व स्तर का शहर बनाना है, इसके लिए शहर का स्ट्रीट फर्नीचर भी बढ़िया क्वालिटी का होना चाहिए।’ स्ट्रीट फर्नीचर से उनका मतलब बोर्ड, होर्डिंग, बेंच, बस स्टॉप जैसी चीजों से है।
राजीव कहते हैं, ‘शहर की शक्ल सूरत बदलने के लिए तीन साल का वक्त काफी नहीं होता लेकिन आखिरकार प्रक्रिया तो शुरू हो चुकी है और इसको पलटा नहीं जा सकता।’ मुंबई, केवल अकेला ऐसा शहर नहीं है जहां बुनियादी ढांचे और नागरिक सुविधाओं के विकास की प्रक्रिया शुरू हुई है। अगर आप देश के 20 सबसे बडे शहरों पर नजर डालेंगे तब बदलाव की बयार को महसूस कर सकते हैं।
वर्ष 2005 में नई दिल्ली नगर पालिका परिषद ने भी बस स्टॉपों का कायाकल्प करने के लिए आउटडोर मीडिया कंपनियों से निविदाएं बुलाईं। यूरोप की बड़ी कंपनी जे सी डीकॉक्स को 197 बस स्टॉपों के पुनर्निर्माण का काम मिला। कंपनी ने इसमें 36 करोड़ रुपये निवेश किए।
बदले में जे सी डीकॉक्स एडवरटाइजिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड इन बस स्टॉप पर 15 साल तक विज्ञापनों के जरिये कमाई कर सकती है। पिछले साल ही इन बस स्टॉपों का काम पूरा हो पाया है। ऐसे दौर में जब देश में बुनियादी ढांचे के विकास में बहुत तेजी से काम हो रहा है।
आउटडोर मीडिया और शहर
देश में शहरों के विकास में आउटडोर मीडिया कंपनियों की भूमिका अहम हो चली है। स्थानीय निकाय, मीडिया अधिकार के बदले कंपनियों को बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश करने के लिए आकर्षित कर रहे हैं। यूरोप, अमेरिका और सिंगापुर में इस तरह का प्रचलन पहले से चला आ रहा है।
अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की आउटडोर मीडिया कंपनी बिग स्ट्रीट के बिजनेस हेड रेब टी अय्यर कहते हैं, ‘विकसित देशों में आउटडोर मीडिया अपने शिखर पर है। सड़कों पर यह खूबसूरत नजर आएं, इसके लिए वहां पर व्यवस्था तय है।’ मुंबई में, बिग स्ट्रीट ने 1.2 किलोमीटर लंबे बांद्रा फ्लाईओवर के विज्ञापन अधिकार 80 करोड़ रुपये में खरीदे हैं।
पुणे, चंडीगढ़, बेंगलुरु जैसे शहरों में स्ट्रीट फर्नीचर के अनुबंध के लिए आउटडोर मीडिया कंपनियों से बात हो रही है। बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है। कोच्चि और गोवा में हवाई अड्डे के मीडिया अधिकार के लिए निविदाएं आमंत्रित की जा चुकी हैं। इसी कड़ी में एंटरटेनमेंट नेटवर्क इंडिया की आउटडोर मीडिया कंपनी ओओएच टाइम्स ने मुंबई और दिल्ली के हवाई अड्डों के मीडिया अधिकार 300 करोड़ रुपये में हासिल किए हैं।
साफ दिख रहा है कि ओओएच का अभियान जोर पकड़ रहा है। शहरों में भी में स्थानीय निकाय सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत आउटडोर मीडिया कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इस क्षेत्र में देसी कंपनियां तो पैसा लगा रही ही हैं, विदेशी कंपनियां भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहतीं।
करीब 1,200 से 1,400 करोड़ रुपये की परियोजनाओं में बिग स्ट्रीट, लक्ष्य, परिवर्तन सिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड जैसी देसी कंपनियां तो स्ट्रोइर, ईटीए स्टार होल्डिंग्स और जे सी डीकॉक्स जैसी विदेशी कंपनियां पैसा लगा रही हैं।
बढ़ता दायरा
अचानक से ही आउटडोर कंपनियों को विज्ञापनों के जरिये बढ़िया कमाई होने लगी है। स्ट्रोइर ओओएच मीडिया के सीईओ इंद्रजीत सेन कहते हैं, ‘संगठित कंपनियों ने परंपरागत आउटडोर मीडिया की शक्ल ही बदल दी है। अब इसमें बड़े सौदे होने लगे हैं। यह क्षेत्र विज्ञापनों के दायरे से बढ़कर बुनियादी ढांचे के विकास में सहयोगी उद्योग के रूप में अपनी पहचान बनाता जा रहा है।’
जे सी डीकॉक्स के प्रबंध निदेशक प्रमोद भांडुला भी सेन से सहमति जताते हुए कहते हैं, ‘पहले आउटडोर मीडिया को बहुत हल्के में लिया जाता था लेकिन अब यह रुझान बदल रहा है।’ यही वजह है कि कुछ बड़ी मीडिया कंपनी भी अब इस कवायद में शामिल हो चुकी हैं या फिर शामिल होने की तैयारी कर रही हैं।
हाल ही में शुरू हुई प्रदीप गुहा की स्ट्रीट कल्चर ने ओगिल्वी एक्शन, पोर्टलैंड इंडिया, प्राइमसाइट, प्लेटिनम आउटडोर्स और एमओएमएस जैसी स्थापित कंपनियों के साथ हाथ मिलाया है। भारत में तीन साल से नेविया का परिचालन कर रही स्टारकॉम मीडियावेस्ट, जल्द ही दो और आउटडोर एजेंसी शुरू करने जा रही है।
नेविया के सीईओ संजय शाह कहते हैं, ‘आउटडोर मीडिया में काफी पैसा आ रहा है जिससे इस कारोबार में बढ़िया संभावनाएं दिख रही हैं।’ बाजार के जानकारों का भी यही मानना है। इस कारोबार की सालाना वृद्धि 25 से 30 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद है।
विज्ञापन का जादू
विज्ञापन का जादू आज हर जगह दिखाई देता है। विज्ञापनों की दुनिया छोटे पर्दे, बड़े पर्दे, अखबार, पत्रिकाओं और इंटरनेट तक ही सीमित नहीं हैं। जी हां अब जमाना है आउटडोर मीडिया का। सड़कों पर चलते हुए हम न जाने कितने विज्ञापनों के होर्डिंग देखते हैं। बाहर की दुनिया में विज्ञापनों की इस बढ़ती होड़ को आप आसानी से देख और समझ सकते हैं।
अब जमाना है टेलीकॉम, मीडिया, एंटरटेनमेंट, रियल एस्टेट, रिटेल, फाइनैंशियल सर्विसेज, बैंकिंग और इंश्योरेंस का। इन सभी उभरते सेक्टर ने अपने प्रचार-प्रसार के लिए बड़े पैमाने पर आउटडोर मीडिया का सहारा लिया है। आज उपभोक्ता का एक बड़ा वर्ग हर जगह मौजूद है जो एक दिन में औसतन 4 घंटे बाहर आने-जाने और शॉपिंग के लिए गुजारते हैं। ऐसे में आउटडोर मीडिया का लक्ष्य ऐसे ही उपभोक्ता होते है।
लक्ष्य आउटडोर के सीईओ सौमित्र एस. भट्टाचार्र्य कहते हैं, ‘आउटडोर का मतलब आप यह समझ सकते हैं कि जहां भी उपभोक्ता है वहां यह मीडिया अपनी अलग-अलग शक्लों में मौजूद है। आपको मॉल, मल्टीप्लेक्स, और एयरपोर्ट पर भी विज्ञापनों के होर्डिंग का विकल्प खुला मिलेगा। सड़कों पर भी अपनी रफ्तार में चलती गाड़ियों, बसों के जरिए भी आप विज्ञापनों का जलवा आसानी से देख सकते हैं। इसके अलावा आप सड़कों या पार्क में बैठने वाली जगहों पर भी विज्ञापनों को देख सकते हैं।’
जिंदल स्टेनलेस की आउटडोर मीडिया एजेंसी परिवर्तन के कार्यकारी उपाध्यक्ष अरूप दत्त का भी मानना है कि डिजीटल तकनीक के विकास और लोगों के रहन-सहन के बढ़ते स्तर से ही वृद्धि दर बढ़ रही है। आजकल नागरिक संस्थाएं आउटडोर मीडिया के लिए नए मानक तय कर रही हैं। मुंबई, दिल्ली और चेन्नई में भी होर्डिंग के लिए कायदे-कानून बनाए जा रहे हैं।
कई शहरों में विज्ञापनों के होर्डिंग और पोल पर लगे हुए विज्ञापनों के अलावा कई लोकेशन के लिए भी इजाजत मिल चुकी है। मीडिया रिसर्च यूजर कॉउंसिल रीडरशिप सर्वे के लिए काम करती है। नगरपालिका की संस्थाएं कंपनियों के साथ 5 से 15 साल तक के लिए अनुबंध कर रही है ताकि उनकी लागत की भरपाई हो सके।
अरूप दत्त का कहना है, ‘सरकार के साथ कोई कारोबार में सुरक्षा का अहसास तो होता ही है न।’ मिसाल के तौर पर बिग स्ट्रीट कंपनी बांद्रा स्काई वॉक ब्रिज पर विज्ञापनों के लिए काम कर रही है। मुंबई के एरोली ब्रिज के पोल बूथ पर भी ऐसा ही काम चल रहा है इसके अलावा चंडीगढ़ में चलने वाली बस और शहर के बाहर चलने वाली बसों में भी इस तरह का काम चल रहा है।
दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के स्टेशनों और हैदराबाद के मोबाइल वैन के पास भी मीडिया विज्ञापनों का अधिकार मिला हुआ है। ईटीए स्टार होल्डिंग्स एलएलसी का 40 देशों में काम चल रहा है और यह भारत में भी वह कुछ बड़े ब्रांड के साथ काम कर रही है।