राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के जो पहले अग्रिम अनुमान पेश किए उनसे पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 9.2 फीसदी की वृद्धि हासिल करेगी। यह आंकड़ा आकर्षक लगता है लेकिन यह ध्यान देना होगा कि गत वर्ष अर्थव्यवस्था में 7.3 फीसदी की गिरावट आई और वास्तविक अर्थों में यह 2019-20 के विशिष्ट स्तर को शायद ही पार कर सके। यदि हम उल्लिखित आंकड़ों को प्राप्त कर सकें तो वित्त वर्ष 2020 में वास्तविक वृद्धि मात्र 1.3 फीसदी रहेगी। एनएसओ ने सही कहा है कि ये शुरुआती अनुमान हैं और कई कारणों से इनमें संशोधन करना पड़ सकता है। सबसे बड़ी वजह हो सकती है कोविड-19 संक्रमण के मामलों में आ रही तेजी। चूंकि यह अनुमान शुरुआती 6-8 माह के आंकड़ों पर आधारित है इसलिए यह अतिरंजित साबित हो सकता है।
कोविड-19 मामलों में नए सिरे से उछाल का असर चालू तिमाही के आंकड़ों में नजर आएगा। कई राज्य सरकारों ने सार्वजनिक आवागमन पर प्रतिबंध लगा दिए हैं जिसका असर उत्पादन पर पड़ेगा। गत वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान इस माह के अंत में जारी किए जाएंगे और वे चालू वर्ष के वृद्धि संबंधी आंकड़ों को बदल सकते हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार महामारी के आगमन के बाद कृषि इकलौता ऐसा क्षेत्र रहा है जहां प्रदर्शन अच्छा रहा है। अनुमान है कि वित्त वर्ष 2021 में 3.6 फीसदी की वृद्धि हासिल करने के बाद चालू वर्ष में यह 3.9 फीसदी की दर से बढ़ेगा। व्यापार, होटल, परिवहन और संचार क्षेत्र में सकल मूल्यवद्र्धन वित्त वर्ष 2020 के स्तर से कम रहेगा। विनिर्माण क्षेत्र भी वित्त वर्ष 2020 के स्तर से थोड़ा ही बेहतर रहेगा। इससे भी आंशिक तौर पर यह पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में खपत की मांग कमजोर क्यों है। अंतिम तौर पर निजी खपत व्यय वास्तविक संदर्भ में वित्त वर्ष 2020 के स्तर से 3 फीसदी कम रह सकता है। चूंकि निजी खपत सबसे बड़ा घटक है इसलिए यह अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अहम भी है। महंगाई समायोजन के बगैर (नॉमिनल) वृद्धि के काफी ज्यादा रहने की आशा है। चालू वर्ष में अर्थव्यवस्था के 17.6 फीसदी विस्तार का अनुमान है। इससे अर्थव्यवस्था पर पड़ा रहा मुद्रास्फीतिक दबाव तो नजर आता ही है, साथ ही इससे सरकार को वित्तीय स्थिति दुरुस्त करने में मदद मिलेगी। उच्च नॉमिनल वृद्धि आंशिक तौर पर यह भी स्पष्ट करती है कि कर संग्रह में अनुमान से बेहतर वृद्धि हासिल हुई। चूंकि अर्थव्यवस्था का आकार बजट अनुमान की तुलना में अधिक हो सकता है इसलिए इससे राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 6.8 फीसदी तक सीमित रखने में मदद मिलेगी। हालांकि सरकार बजट अनुमान से अधिक व्यय कर रही है और संसद दो बार 3.28 लाख करोड़ रुपये का पूरक अनुदान स्वीकृत कर चुकी है। उच्च नॉमिनल वृद्धि और कर संग्रह की ओर से मिल रही मदद की वजह से सरकार के लिए यह अहम हो जाएगा कि वह बिना पूंजीगत व्यय में कटौती किए राजकोषीय घाटे को तय दायरे में रखे।
जीडीपी का पहला अग्रिम अनुमान 2016-17 में प्रस्तुत किया गया था ताकि बजट निर्माण प्रक्रिया में मदद की जा सके। ऐसा तब किया गया था जब बजट प्रस्तुति की तिथि को एक माह पहले यानी 1 फरवरी किया गया था। हालांकि ध्यान राजकोषीय आकलन के लिए नॉमिनल आंकड़ों पर केंद्रित होगा लेकिन सरकार अगर वास्तविक आंकड़ों की अनदेखी न करे तो बेहतर होगा। इससे पता चलता है कि बीते दो वर्षों में अर्थव्यवस्था किस कदर संकट में रही। ऐसे में बजट में ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि मध्यम अवधि में उच्च स्थायी वृद्धि कैसे हासिल की जाए। इस दौरान इस हकीकत का ध्यान रखना चाहिए कि महामारी के कारण उथलपुथल जारी रहेगी और सरकार को राजकोषीय घाटे को भी धीरे-धीरे कम करना होगा।
