कोविड-19 संक्रमण के नए आंकड़े भले ही यह संकेत देते हों कि भारत महामारी की खतरनाक तीसरी लहर की ओर नहीं बढ़ रहा है लेकिन वायरस के नए प्रकार ओमीक्रोन की अत्यधिक संक्रामक प्रकृति को देखते हुए यह अहम हो जाता है कि देश अग्रिम तैयारी करके रखे। निश्चित तौर पर 23 दिसंबर तक संक्रमण के रोजाना 7,495 मामले सामने आ रहे हैं जो मई के रोज के चार लाख से अधिक नए संक्रमणों से लगातार गिरावट की ओर संकेत करते हैं और महामारी के जानकारों का कहना है कि ओमीक्रोन चिंता का विषय जरूर है लेकिन उसे लेकर बहुत घबराने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस बार लक्षण बहुत घातक नहीं हैं और मौत के मामले बहुत कम हैं। परंतु ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को ढिलाई बरतने की आवश्यकता नहीं है। अब यह स्पष्ट हो चुका है ओमीक्रोन का सामुदायिक प्रसार हो चुका है और जीनोम सीक्वेंसिंग में पीछे रह जाने के बीच यह बहुत तेजी से फैल रहा है। मुश्किल बढ़ाने वाली एक बात यह भी है कि ओमीक्रोन संक्रमण को लक्षण रहित बताया जा रहा है।
ऐसे में हालात की मांग यही है कि संक्रमण को सीमित रखने के लिए नए सिरे से प्रयास किए जाएं। कुछ राज्यों मसलन दिल्ली और ओडिशा ने सामाजिक कार्यक्रमों को सीमित करने में सक्रियता दिखाई है और अवकाश के दिन सार्वजनिक त्योहारों को मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। भुवनेश्वर में तो यह प्रतिबंध नवंबर में ही लगा दिया गया था। चेन्नई में मरीना बीच तथा अन्य समुद्र तटों पर नए वर्ष का जश्न मनाने पर रोक लगा दी गई है। हरियाणा ने घोषणा की है कि 1 जनवरी से केवल टीके की दोनों खुराक ले चुके लोगों को ही सार्वजनिक जगहों पर जाने की अनुमति होगी। इन जगहों में पेटोल पंप और मंडियां भी शामिल हैं। दिल्ली और महाराष्ट्र ने भी अस्पतालों में बिस्तरों और ऑक्सीजन आपूर्ति की व्यवस्था मजबूत की है। ये सारे कदम सराहनीय हैं लेकिन अगर ऐसे कदम राष्ट्रीय स्तर पर नहीं उठाए गए तो वायरस का प्रसार रोक पाना संभव नहीं होगा।
यह सही है कि जवाबदेही का बोझ राज्यों पर है लेकिन बड़ा हल तो केंद्र के पास ही है। देश की आधी से अधिक आबादी अभी टीके की दूसरी खुराक की बाट जोह रही है जबकि दोनों खुराक ओमीक्रोन के खिलाफ उल्लेखनीय बचाव मुहैया करा सकती हैं।
अब टीकों की आपूर्ति में कोई समस्या नहीं है इसलिए सरकार अगर दोनों खुराकों के बीच का अंतराल कम करे तो देश के अधिक से अधिक लोगों का पूर्ण टीकाकरण हो सकता है। दूसरी बात, केंद्र सरकार को बुजुर्गों, जोखिम में आने वाले लोगों और अग्रिम मोर्चे पर काम करने वाले कर्मियों को बूस्टर खुराक देने पर विचार करना चाहिए। यूरोप और अमेरिका में पहले ही ऐसा किया जा रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि टीके की बूस्टर खुराक लगाने की इजाजत दी जाए। अगर राज्यों को यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाए तो अच्छा ही होगा। हालांकि इसमें नीतिगत जटिलता आड़े आ सकती है जिसके मुताबिक सरकारी स्तर पर केवल दो ही टीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
बूस्टर खुराक में आमतौर पर दो मूल खुराकों से अलग टीके की आवश्यकता होती है। चूंकि देश में ज्यादातर लोगों को सीरम इंस्टीट्यूट का कोविशील्ड टीका लगा है, ऐसे में बूस्टर खुराक के रूप में भारत बायोटेक-आईसीएमआर का स्वदेशी टीका कोवैक्सीन लगाना होगा। यह टीका इतनी तादाद में नहीं बन रहा है कि इसे बूस्टर खुराक के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। इस लिहाज से देखें तो विदेशी टीकों को मंजूरी की गति तेज करना एक विकल्प हो सकता है। यह साबित हो चुका है कि वे टीके सुरक्षित हैं क्योंकि प्रवासी भारतीयों समेत पूरी दुनिया में वे टीके लग रहे हैं।
