ग्लासगो में हाल ही में संपन्न यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसी) के 26वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज अथवा सीओपी26 में जो समझौता हुआ उसमें पहली बार इस बात को विशेष तौर पर स्वीकार किया गया कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर निर्भरता कम करनी जरूरी है। हालांकि इसके लिए इस्तेमाल की गई भाषा मूल रूप से जितनी ठोस थी, आखिर में वह उतनी ही कमजोर हो गई थी। खासतौर पर कोयले के इस्तेमाल को ‘चरणबद्ध तरीके से समाप्त’ करने के बजाय इसमें विभिन्न देशों द्वारा इसे ‘चरणबद्ध ढंग से कम करने’ की बात शामिल की गई। इसे उचित ही अपर्याप्त माना जा रहा है। इससे भी बुरी बात यह है कि पाठ में आई इस कमजोरी की वजह भारत को माना जा रहा है। यह उचित नहीं है और इसके लिए वार्ता करने वाली टीम को जवाबदेह माना जाना चाहिए।
यह बात स्पष्ट नहीं है कि आखिर कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से समाप्त करने की बात भारत के मौजूदा लक्ष्यों के अनुरूप क्यों नहीं है। यह बात सही है कि भारत के ऊर्जा उत्पादन में कोयले का इस्तेमाल जारी रहेगा और 2030 तथा उसके बाद भी नए संसाधन शामिल किए जाएंगे। इसके बावजूद ऐसा करने वाला भारत अकेला देश नहीं है और उसका अगला लक्ष्य 2070 का है जबकि तब तक तकनीक में ऐसे बदलाव आ चुके होंगे जिनके बारे में हमने सोचा भी नहीं है। भारतीय वार्ताकार उचित ही यह दलील दे सकते हैं कि कोयले पर ध्यान केंद्रित होने से अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे तेल एवं गैस के रूप में जीवाश्म ईंधन का भारी भरकम इस्तेमाल करने वाले देश निगरानी से बच निकलेंगे। वे यह भी कह सकते हैं कि कोयले को चरणबद्ध रूप से समाप्त करना काफी हद तक जलवायु फाइनैंसिंग पर निर्भर करेगा जो गैर कोयला परियोजनाओं को शुरू करने के लिए जरूरी है क्योंकि कोयला संयंत्रों को बंद करने और गैर कोयला परियोजनाओं को शुरू करने के बीच के वित्तीय अंतर को पाटना होगा। इन बातों के बावजूद इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है कि आखिर क्यों भारत ने कोयले के इस्तेमाल को ‘चरणबद्ध ढंग से समाप्त करने’ की भाषा के विरोध का नेतृत्व किया। यदि पहले निर्धारित भाषा इस्तेमाल होती तो इस क्षेत्र में भारत की योजनाओं को लेकर कोई बाधा न उत्पन्न होती।
अतीत में सीओपी में भारत के प्रयासों की एक दिक्कत यह भी रही है कि वह चीन को बचाव मुहैया कराता रहा है। प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में चीन प्रति व्यक्ति कोयला खपत के मामले में शीर्ष पर है। उसने अकेले 2021 में ही दर्जनों नए कोयला संचालित बिजली संयंत्र स्थापित किए। ‘चरणबद्ध कमी’ का जुमला अतीत में की गई घोषणाओं के अनुरूप ही है और सीओपी26 के दौरान अमेरिका-चीन के जलवायु परिवर्तन संबंधी संयुक्त घोषणापत्र में भी ऐसा ही किया गया था। दूसरे शब्दों में, भारत ने खुद को बुरा बनने दिया और जाने-अनजाने चीन की नीतियों को बचाव मुहैया कराया। इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए, खासतौर पर यह देखते हुए कि इसमें भारत और उन छोटे द्वीपीय देशों तथा अल्पविकसित देशों के बीच गंभीर संबंध खराब हो सकते हैं जिनके बारे में अतीत में भारत दावा करता रहा है कि वह उनके हितों का समर्थन करता है।
अगले वर्ष काहिरा में सीओपी27 के पहले भारतीय वार्ताकारों तथा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को सीओपी26 की गलतियां सुधारनी होंगी। खासतौर पर उसे कोयले का इस्तेमाल समाप्त करने तथा नए स्थायी वित्तीय प्रवाह सुनिश्चित करने के बीच स्पष्ट संबंध को समझना होगा। उसे यह भी स्पष्ट करना होगा कि उचित तकनीक और वित्तीय मदद हासिल होने पर 2030 तक तथा उसके पश्चात नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए ताकि कोयले का इस्तेमाल समाप्त हो सके। भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सीओपी27 घोषणा की भाषा में शिथिलता का जवाबदेह उसे न ठहराया जाए।
