निकट भविष्य में फिलिप्स जिन उत्पादों को भारत में पेश कर सकती है, वे निश्चित तौर पर देखने में काफी प्रभावशाली होंगे।
अब आपको वहीं पुरानी घड़ी के बेसुरे अलार्म को सुनकर नहीं जागना होगा। फिलिप्स के उत्पादों में ‘लाइट अलार्म’ शामिल होगा, जो सुबह कमरे में रोशनी को नियंत्रित करते हुए आपको जगाएगा।
इसके अलावा ‘लाइट शावर’ भी है जो बिना समय गंवाए आपकी नींद को दूर भगाएगा और कुछ चिकित्सा से जुड़े उपकरण भी होंगे जो आपके खर्राटे की बीमारी को छूमंतर कर देंगे। इन उत्पादों में प्रौद्योगिकी का बढ़िया रूप देखने को मिलेगा, जो महंगा होगा।
ये कुछ उत्पाद हैं जिन्हें भारतीय बाजार में भविष्य में पेश किया जा सकता है। फिलहाल फिलिप्स अपने कुछ दूसरे उत्पादों के साथ तैयार है। इनमें फिलिप्स लैटर्न का व्यावसायिक लॉन्च भी शामिल है। मई में कंपनी ग्रामीण बाजारों में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लकड़ी का चूल्हा पेश करेगी।
अपने भाग्य को आजमाने के चलते फिलिप्स ऐसे बाजारों में पहुंच रही है, जिसके बारे में पहले कभी किसी बहु-राष्ट्रीय लाइफस्टाइल कंपनी ने गंभीरता से नहीं सोचा होगा। अगर कंपनी का स्टोव पायलट प्रोजेक्ट, जिसे आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में तीन महीने के लिए चलाया जा रहा है और लालटेन सफल रहते हैं तो इससे फिलिप्स के लिए एक नए बाजार (ग्रामीण और झोपड़-पट्टी) का रास्ता खुल जाएगा।
कंपनी के प्रतिद्वंद्वियों का कहना है कि खुद को बाजार में बनाए रखने के लिए यह साहसी कदम है। छोटे अप्लायंस फिलिप्स की विशेष योग्यता हैं, जिनका सालाना 3,000 करोड़ रुपये का कारोबार है। यह बाजार सालाना 15 प्रतिशत की रंफ्तार से विकास कर रहा है।
सूझ-बूझ और सरल
स्टोव और लालटेन कंपनी के लिए बढ़िया चीजें हो सकती हैं। यह जानते हुए कि कंपनी की विकास दर में बिक्र देशों (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) का अहम योगदान होगा, कंपनी ने इस बात का फैसला किया कि वे इन बाजारों की जरूरतों को पूरा करने वाले उत्पाद पेश करेगी।
फिलिप्स इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी मुरली शिवरामन का कहना है, ‘इन देशों में अलग-अलग मांगों को देखते हुए आपूर्ति की काफी संभावनाएं हैं और यहां कीमतों के नए स्तर भी रखे जा सकते हैं।’
फिलिप्स के लिए उत्पाद में कुछ नया करना कोई नई बात नहीं है। कंपनी ने 1992 में बाजार में उतरने के साथ ही अपने छोटे अप्लांयस में काफी नवपरिवर्तन किए हैं। कंपनी ने अपने जूसर में छलनी का इस्तेमाल शुरू किया, जिससे जूस पीने वालों को असली मजा आ सके। बेहतर पीसने के लिए कंपनी ने ग्राइंडर के जार को ब्लेड की उल्टी दिशा में घूमा दिया।
2007 के मध्य में कंपनी ने शहरी बाजारों के लिए वॉटर प्योरीफायर पेश किया। कंपनी ने इसमें पानी साफ करने के लिए पैराबैंगनी किरणों का इस्तेमाल किया। अब ये नए उत्पाद कुछ अलग हैं। स्टोव को तैयार होने में दो साल से अधिक समय लगा और इस पर कंपनी और उसकी डच की मूल कंपनी ने मिलकर काम किया है। यह इस्पात का बना है और इसमें बैटरी से चलने वाला एक पंखा भी है।
फिलिप्स के अधिकारियों का कहना है कि इससे इसकी आंच किसी भी गैस स्टोव की आंच से बेहतर होगी। यह स्टोव लकड़ी के साथ-साथ गोबर से भी जलता है। पायलट प्रोजेक्ट के लिए इसकी कीमत ढाई हजार रुपये होगी।
ग्रामीण परिवारों के मद्देनजर फिलिप्स एक छोटा स्टोव को भी पेश करेगी। बिना पंखे वाले इस स्टोव की कीमत 1,000 रुपये होगी। इसे महाराष्ट्र में तारा नाम की एक गैर-सरकारी संस्था के साथ मिलकर बनाया गया है।
इसी दौरान, कंपनी बिना बिजली वाले ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी लालटेन को पेश करने के लिए तैयार है। लालटेन की कीमत 1,000 रुपये से 3,000 रुपये होगी। फिलिप्स ने दो तरह की लालटेन तैयार की हैं जो सौर पैनल और बिजली से चार्ज की जा सकती हैं।
ब्रांड का वादा
अब तक फिलिप्स की जो ब्रांड छवि बन चुकी है, उसके लिहाज से क्या स्टोव और लालटेन सही उत्पाद होंगे? फिलिप्स लाइटिंग क्षेत्र की बड़ी कंपनी है और साथ ही कंपनी अपने हेल्थकेयर कारोबार को भी बढाना चाहती है। ये दोनों क्षेत्र गंभीर रूप से आधुनिक प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं।
मौजूदा समय में, जहां प्रौद्योगिकी का उत्पादों में जमकर प्रयोग हो रहा है वहां ऐसे स्टोव और लालटेन? शिवरामन का कहना है कि ये फिलिप्स के ‘सूझ-बूझ और सरल’ ब्रांड के वादे के बिल्कुल अनुकूल हैं। उनका कहना है, ‘हमारा ब्रांड घर में जाना-पहचाना नाम है। हमारे ऑडियो और लाइटिंग उत्पादों के जरिये यह देश के कोने-कोने में पहुंच चुका है।’
फिलिप्स के अधिकारियों का कहना है कि फिलिप्स को लेकर लोग यह नहीं मानते कि यह बहुत हाई-टेक है। फिलिप्स इलेक्ट्रॉनिक इंडिया के उपाध्यक्ष महेश कृष्णन का कहना है, ‘अब भी ज्यादातर लोग फिलिप्स से रेडियो के जरिये जुड़े हुए हैं।’ दूसरे शब्दों में कहें तो स्टोव या लालटेन ब्रांड के लिहाज से कहीं भी कमतर नहीं हैं।
कुछ साल पहले, फिलिप्स ने स्वास्थ्य और सेहत के कारोबार में वैश्विक स्तर पर कदम रखने का फैसला लिया था। शिवरमन के मुताबिक यह स्टोव भी इसी कवायद का एक हिस्सा है। सबसे महंगे स्टोव से 95 प्रतिशत तक धुआं कम छूटता है, जबकि सबसे सस्ते स्टोव से 75 प्रतिशत कम। इन दोनों में ईंधन की खपत 45 प्रतिशत तक कम होती है। पारंपरिक स्टोव से निकलने वाले धुएं से सांस संबंधी समस्याएं होती थीं।
विशेषज्ञों का मानना है कि एक बर्नर वाले फिलिप्स स्टोव को अपने पुराने चुल्हे से बदलने के लिए गांव वालों को ऐसे दो स्टोव खरीदने होंगे, जिससे इसकी कीमत काफी बढ़ जाएगी। और तो और गांवों में आज एलपीजी की उपलब्धता में भी सुधार हो रहा है। शिवरामन भी इन चुनौतियों ये वाकिफ हैं और बाकी गुंटूर में चल रहे प्रोजेक्ट से और जानकारी हासिल होगी।
बाजार तक पहुंच
लालटेन को बड़ी संख्या में बेचने की योजनाएं बनाई जा रही हैं। फिलिप्स की योजना अगले फेस्टिवल सीजन में स्टोव को बाजार में उतारने की है। दक्षिण भारत में यह सीजन अगस्त में और बाकी हिस्सों में अक्टूबर के आस-पास शुरू हो जाता है।
शिवरामन का कहना है कि इन्हें अफ्रीका और एशिया में भी निर्यात किया जा सकता है। छोटे अप्लायंसेज की प्रमुख कंपनी महाराजा अप्लायंसेज के चेयरमैन हरीश कुमार का कहना है कि भारत में कॉन्सेप्ट सेलिंग मुश्किल है। उनका कहना है, ‘इन उत्पादों को बेचने के लिए बड़े नेटवर्क की जरूरत पड़ेगी।’
फिलिप्स के 1 लाख से अधिक जनसंख्या वाले छोटे शहरों में डीलर हैं। लेकिन अगर कंपनी को अपने स्टोव और लालटेन को व्यावसायिक सफलता दिलाई है तो उसे देश के 6 लाख गांवों तक अपनी पहुंच बनानी होगी। अपने बल्बों और टयूबलाइट से फिलिप्स बड़ी संख्या में गांवों तक पहुंच चुकी है और अब कंपनी स्टोव की बिक्री में इसी नेटवर्क का इस्तेमाल करने की योजना बना रही है।
फिलिप्स के बिक्री अधिकारी थोक दुकानदारों को गांवों में जाकर, स्टोव को चलाने के लिए प्रशिक्षित करेंगे। कंपनी की योजना किसानों के सहकारी संस्थानों के साथ भी स्टोव और इसके लिए कर्ज के बारे में बातचीत करने की है। मिसाल के तौर पर पंजाब में फिलिप्स ने पहले ही लगभग 150 सहकारी संस्थानों के साथ बल्ब, मिक्सर-ग्राइंडर और प्रेस बेचने के लिए गठजोड़ किया है।
इसके अलावा कंपनी मंडियों के जरिये भी स्टोव बेच सकती है। फिलिप्स अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के साथ स्टोव को ग्रामीण ऊर्जा सुरक्षा कार्यक्रम के तहत लाने के लिए भी बात कर रही है। गुंटूर पायलट के पूरे होने के बाद ही पता चल पाएगा कि 2,500 और 1,000 रुपये के दामों में कितने ग्राहक स्टोव को खरीदना चाहते हैं।
शिवरामन का कहना है कि फिलिप्स स्टोव की कीमत कम रखने की कोशिश कर रही है। कंपनी शत-प्रतिशत धुआं रहित स्टोव पेश कर सकती है, लेकिन फिर कीमतें बढ़ जाएंगी। इसके अलावा दूसरा मुद्दा स्टोव के उत्पादन स्थल का है। संभवतया ये स्टोव देशभर में बेचे जाएंगे। चूंकि स्टोव भारी हैं इसलिए लंबी दूरी तक इनका परिवहन अनुकूल नहीं है।
ऐसे में क्या फिलिप्स के लिए उत्पादन इकाइयों को बाजारों के पास लगाना ठीक है? या दूसरे निर्माताओं से स्टोव का उत्पादन कराया जाए? शिवरामन का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि कारोबार का यह मॉडल गुणवत्ता के लिहाज से बढ़िया रहेगा।
उम्मीदों की दुनिया…
लालटेन के लिए लाइटिंग नेटवर्क के अलावा कंपनी, दी एनर्जी और रिसोर्सेज इंस्टीटयूट के एक प्रयास ‘लाइटिंग अ बिलियन लाइव्स’ के साथ भी गठजोड़ कर रही है। पहले ही 9 राज्यों के 42 गांवों में 2,000 से अधिक लालटेनें वितरित की जा चुकी हैं।
फिलिप्स अपने कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व के तहत गांवों को अपनाएगी और वहां के लोगों को ये लालटेन दिए जाएंगे। कुछ हो सकता है कि गांव में सौर पैनल लगाएं, जिससे 50 लालटेन तक चार्ज की जा सकती हैं। उसके बाद इन लालटेनों को 4 से 6 घंटे के लिए किराये पर दिया जा सकता है।
