अपने अगले राष्ट्रपति के तौर पर बराक ओबामा को चुनकर अमेरिका ने दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की है।
उसने साबित कर दिया है कि अमेरिकियों के लिए काबिलियत, रंग या नस्ल से ज्यादा अहमियत रखती है। ओबामा ने एक जबरदस्त अभियान चलाकर, उप-राष्ट्रपति पद के लिए एक जाने-माने शख्स को चुनकर और नए-नए तरीकों से लोगों को अपने साथ जोड़कर खुद को एक बेहतर उम्मीदवार साबित किया। ऐसा शख्स सच में राष्ट्रपति बनने के लायक था और वह बना भी।
बराक ने लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाने और मध्यम वर्ग के लिए टैक्स में कटौती करने का वादा किया था। वहीं, उनके प्रतिद्वंद्वी जॉन मैकेन को अपने वादों से ज्यादा अपने बॉयोडाटा पर भरोसा था। इससे साफ पता चलता है, वोटर ने आखिर क्यों ओबामा को चुना।
इस चुनाव को सिर्फ इसीलिए ऐतिहासिक नहीं कहा जाएगा, क्योंकि ओबामा एक अफ्रीकी-अमेरिकी हैं (उनकी मां श्वेत अमेरिकी हैं, जबकि पिता एक केन्याई अश्वेत। इसलिए उन्हें शाब्दिक तौर पर अश्वेत नहीं कहा जा सकता)। दरअसल, उन्होंने एक नए तरह के वोटरों की फौज खड़ी की।
इसी वजह से तो उन्हें इतनी जबरदस्त जीत मिली। हकीकत तो यह है कि इस चुनाव में कभी रिपब्लिकन पार्टी के गढ कहे जाने प्रांत में भी ओबामा ही छाए रहे। यह इसलिए भी एक ऐतिहासिक जीत है क्योंकि 1960 में जॉन एफ. केनेडी को मिली जीत के बाद यह सही अर्थों में एक बड़े दिल वाले और उसूलों वाले नेता की जीत है।
सच कहें तो केनेडी की छवि भी कहीं-कहीं ओबामा के सामने फीके पड़ जाती है। हो सकता है कि ओबामा एक ऐसे बदलाव पसंद नेता हों, जिनकी वजह से राजनीति को एक नई ऊंची मिली है। वह आज अमेरिका के सामने खड़ी मुसीबतों के बारे में बड़ी शिद्दत और अक्लमंदी के साथ बोलते हैं।
लेकिन यह भी याद रखिए कि अक्सर अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार उस कुर्सी पर बैठने के बाद अपने पुराने स्टैंड को भूल जाते हैं। मिसाल के तौर पर जॉर्ज डब्ल्यू बुश और अब्राहम लिंकन को ही ले लीजिए। अपने चुनाव अभियान में बुश ने अमेरिका को दुनिया के सामने एक शांति पसंद मुल्क के तौर रखने का वादा किया था।
वहीं लिंकन ने अपने चुनाव अभियान में कभी दासप्रथा को खत्म करने का वादा नहीं किया था। खुद ओबामा के अभियान में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं। उन्होंने अपने अभियान की शुरुआत इराक युध्द के विरोध के तौर पर किया था। लेकिन जैसे-जैसे उन्हें बढ़त मिलती गई, यह मुद्दा कहीं पीछे छूट गया।
कभी खुद को बीच-बीच की राय रखने वाला कहने वाले ओबामा ने जल्द ही एक लिबरल नेता करार दे दिया। वह इतने पाक साफ भी नहीं हैं। जब मैकेन ने उन पर व्यक्तिगत आरोप लगाने शुरू किए, तो ओबामा भी पीछे नहीं रहे। इसलिए याद रखिएगा कि आपका पल्ला एक राजनेता से पड़ा। वह भी एक शातिर राजनेता से।
ओबामा अपनी जिंदगी में किसी सरकारी कुर्सी पर नहीं बैठे, फिर भी उन्होंने अच्छी संगठनात्मक काबिलियत दिखाई। उन्होंने मुश्किल वक्त में भी अपना दिमाग ठंडा रखा और एक अच्छी टीम चुनी। उन्होंने हमेशा कद को अपने प्रतिद्वंद्वी से ऊंचा रखा। वह सचमुच राष्ट्रपति बनने के लायक हैं। उनमें सपने देखने की ताकत है। उम्मीद करिए, वह उन लाखों लोगों के सपनों को पूरा कर सकें।