कई वर्षों तक चली चर्चाओं के पश्चात आखिरकार सरकार ने गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक विस्तारित अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में पांच किलोमीटर चौड़ी हरियाली की पट्टी बनाने की भव्य परियोजना शुरू कर दी है। ऐसा भूमि के मरुस्थलीकरण और अपघटन से निपटने के लिए किया जा रहा है। अरावली को दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में गिना जाता है और उसे कई मायनों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर की जीवन रेखा तथा थार मरुस्थल एवं पश्चिमोत्तर के उर्वर मैदानों के बीच का प्राकृतिक बफर क्षेत्र भी माना जाता है।
इसे उचित ही अरावली ग्रीन वॉल का नाम दिया गया है तथा यह वनाच्छादित क्षेत्र न केवल भूमि अपघटन की समस्या से निपटने, जैव विविधता का संरक्षण करने तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने संबंधी देश की कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं से निपटने के काम आएगा बल्कि इसके पारिस्थितिकी से जुड़े कई लाभ भी होंगे। बहरहाल इस परियोजना से वांछित लाभ प्राप्त होने की संभावना काफी हद तक इस बात पर निर्भर है कि सरकार अवैध खनन, अचल संपत्ति माफिया के अतिक्रमण तथा पहाड़ी इलाकों में होने वाले अन्य अवैध खनन को कितने प्रभावी ढंग से रोक पाती है। दिलचस्प बात यह है कि इस परियोजना की शुरुआत वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुग्राम के निकट टिकली नामक गांव में एक पौधा लगाकर की। यह हरियाणा का वह इलाका है जो भू-कानूनों के उल्लंघन के लिए जाना जाता है।
अरावली ग्रीन बेल्ट बनाने का विचार संभवत: अफ्रीका की ग्रेट ग्रीन वॉल से आया है जिसे अफ्रीका के 11 देश मिलकर तैयार कर रहे हैं ताकि सहेल इलाके का मरुस्थलीकरण कम किया जा सके और सहारा रेगिस्तान का विस्तार रोका जा सके। इसके अलावा उनका लक्ष्य जल संरक्षण को बढ़ावा देने और समूचे उत्तरी अफ्रीका में जमीन के उपयोग में सुधार करने का भी है। इसी प्रकार अरावली परियोजना भी वर्षा जल संरक्षण और भूजल स्तर में सुधार के लिए काम करेगी। खासतौर पर एनसीआर में ऐसा किया जाएगा जहां जल स्तर अत्यधिक नीचे जा चुका है। इसकी वजह से कुछ इलाकों में जमीन धसकने की घटनाएं भी घट रही हैं। इसके अलावा यह इलाका थार मरुस्थल से धूल उठने की घटनाओं पर भी लगाम लगाएगा जिसके चलते दिल्ली में वायु प्रदूषण फैलता है। यह हरित पट्टी शायद पूरी तरह निरंतरता में न बने लेकिन यह कुछ ऐसे इलाकों को शामिल करेगी जहां हरियाली की बहुत अधिक आवश्यकता है तथा जिन्हें खनन आदि से भी बचाने की आवश्यकता है।
गुजरात, राजस्थान और दिल्ली में इस परियोजना के दायरे में आने वाली 63 लाख हेक्टेयर जमीन में से 23 लाख हेक्टेयर जमीन अभी खराब जमीन की श्रेणी में आती हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने सैटेलाइट के जरिये मरुस्थलीकरण और जमीन के खराब स्तर को लेकर जो मानचित्र तैयार किया है उसके मुताबिक इन राज्यों का 50 फीसदी से अधिक हिस्सा अलग-अलग स्तरों पर जमीन की गुणवत्ता में गिरावट का शिकार है। इन इलाकों में हरियाली बढ़ाने से 2.5 अरब टन का अतिरिक्त कार्बन सिंक तैयार करने में मदद मिलेगी। साथ ही 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर इलाके का वनीकरण करने और जमीन की गुणवत्ता सुधारने में भी मदद मिलेगी।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अरावली ग्रीन वॉल योजना के कृषि-वानिकी और चारागाह विकास जैसे भाग में स्थानीय वृक्ष, झाड़ियां और घास लगाने की बात शामिल है ताकि वे बचे रह सकें और स्थानीय समुदायों को आजीविका में बेहतर सहारा मिल सके। परियोजना में सतह पर मौजूद जल संरचनाओं और नदियों के जल भराव क्षेत्र को नए सिरे से बेहतर बनाने की बात शामिल है। इन नदियों में बनास, साहिबी और लूनी शामिल हैं जो अरावली के पहाड़ों से ही निकलती हैं और कच्छ के रन के पारिस्थितिकी और सामरिक दृष्टि से अहम इलाके में बहती हैं जो पाकिस्तान की सीमा से लगा हुआ है। बहरहाल, सरकार को राज्य सरकारों, शोध संस्थाओं, सामाजिक नागरिक संस्थानों का सहयोग और सक्रियता प्राप्त करने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। सबसे अहम बात यह है कि उसे स्थानीय समुदायों की मदद लेनी होगी ताकि पौधरोपण की देखभाल की जा सके और इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना से सतत लाभ हासिल हो सके।