यूरोपीय संसद की एक समिति ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) कानून के मसौदे पर मुहर लगा दी है। अब इस मसौदे पर चर्चा होगी और संसद के आगामी सत्र में इस पर मतदान होगा। इस मसौदे में निहित प्रावधान इसके पारित होने से पहले बदल सकते हैं। यह अधिनियम न केवल यूरोपीय संघ में एआई यानी कृत्रिम मेधा के उपयोग से संबंधित मानक तय करेगा बल्कि यह उन सभी इकाइयों के मामले में भी उसी तरह काम करेगा जिस तरह यूरोपीय संघ का जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन (जीडीपीआर) करता है।
जीडीपीआर की तरह ही एआई अधिनियम अन्य जगहों के लिए विधान तैयार करने में मानक साबित होगा। एआई की कई श्रेणियां गोपनीयता का हनन कर रही थीं और भेदभाव को बढ़ावा दे रही थीं। इन पर पाबंदी लगा दी गई है। सरल शब्दों में कहें तो जोखिम के आधार पर एआई का वर्गीकरण किया जाएगा। यह जोखिम न्यूनतम से सीमित, उच्च और अस्वीकार्य हो सकते हैं।
हालांकि, कुछ अधिक जोखिम वाली कुछ तकनीकों पर प्रतिबंध नहीं लगाए जाएंगे मगर इनका इस्तेमाल करने वाली इकाइयों को पारदर्शिता बरतनी होगी और ये सख्त निगरानी एवं अंकेक्षण के दायरे में होंगी।
समिति ने कहा कि कि वह यह सुनिश्चित करना चाहती है कि लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एआई प्रणाली सुरक्षित, पारदर्शी, बिना भेदभाव वाली हो और इन तक लोगों की पहुंच आसान हो। समिति एआई के लिए एक सार्वभौम परिभाषा तय करना चाहती है जो तकनीक के लिहाज से तटस्थ रहे ताकि इनका इस्तेमाल भविष्य की एआई प्रणाली में किया जा सके। जिन प्रणालियों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं उनमें सार्वजनिक स्थानों पर इस्तेमाल होने वाले रियल टाइम बायोमेट्रिक आइडेंटिफिकेशन शामिल हैं।
फेशियल रिकग्निशन इसका एक उदाहरण है जिसका इस्तेमाल हाल में लंदन पुलिस ने राजतंत्र का विरोध करने वाले लोगों की पहचान के लिए किया था। इस अधिनियम में रिमोट बायोमेट्रिक आईडी सिस्टम (उदाहरण के लिए भीड़ में सीसीटीवी से किसी सदस्य की तलाश) को भी प्रतिबंधित किया गया है। हालांकि, अपवाद स्वरूप न्यायालय की अनुमति के बाद पुलिस प्रशासन गंभीर मामलों में इस प्रणाली का इस्तेमाल कर सकता है।
जिन अन्य प्रणालियों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं उनमें लिंग, प्रजाति, जातीयता, नागरिकता की स्थिति, धर्म, राजनीतिक झुकाव जैसी संवेदनशील बातों का इस्तेमाल करने वाला बायोमेट्रिक कैटिगराइजेशन सिस्टम भी शामिल है। इसी तरह, व्यक्ति से जुड़ी जानकारियों, स्थान या पिछले आपराधिक व्यवहार के आधार पर तैयार प्रिडिक्टिव पुलिसिंग सिस्टम पर भी पाबंदी लगा दी गई है।
अधिनियम में सोशल मीडिया या सीसीटीवी से प्राप्त व्यक्तिगत जानकारियां एकत्र कर सूचना भंडार तैयार करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसा इसलिए कि इससे लोगों की निजता का हनन होता है। अधिनियम में तथाकथित इमोशनल रिकग्निशन प्रणाली पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है जिसका इस्तेमाल कानून लागू करने, सीमा प्रबंधन, कार्य स्थल और शैक्षणिक संस्थानों में लोगों की पहचान के लिए इस्तेमाल होता है।
समिति ने ऊंचे जोखिम वाली एआई तकनीक को ऐसी तकनीक के रूप में परिभाषित किया है जो लोगों के स्वास्थ्य, उनकी सुरक्षा, मौलिक अधिकार या पर्यावरण को नुकसान पुहंचा सकती हैं। समिति ने राजनीतिक अभियानों में मतदाताओं को प्रभावित करने वाली और 4.5 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ताओं वाली सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा इस्तेमाल होने वाली सिफारिशी प्रणाली को ऊंचे जोखिम वाली एआई के रूप में परिभाषित किया है।
इनका इस्तेमाल जारी रह सकता है मगर इन पर निगरानी सख्त रहेगी। जीपीटी जैसे मॉडलों को भी पारदर्शिता के मामले में सख्त नियमों का अनुपालन करना होगा। जीपीटी जैसे मॉडलों को यह भी बताना होगा कि एआई से कौन सी सामग्री तैयार की गई है। इसके अलावा अवैध सामग्री का प्रकाशन रोकने के लिए तैयार ढांचे की भी जानकारी देनी होगी।
ओपन-सोर्स लाइसेंस के तहत शोध गतिविधियों के लिए कुछ रियायतें होंगी। इसके अलावा सरकार द्वारा स्वीकृत नियंत्रित जांच आदि में इस्तेमाल में लाए जाने से पहले किसी एआई तकनीक की जांच की अनुमति होगी। अधिनियम में एक ऐसे प्रावधान का भी प्रस्ताव है जिससे नागरिकों के लिए शिकायत दर्ज कराना और उन एआई प्रणालियों के आधार पर लिए गए निर्णयों पर स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार होगा जो उन्हें प्रभावित करते हैं।
इन नियमों के क्रियान्वयन के लिए यूरोपीय संघ के एआई कार्यालय एवं संबंधित राष्ट्रीय प्राधिकरणों को अपनी क्षमता बढ़ानी होगी। मगर ऐसी सीमाएं तय करना महज एक शुरुआत मानी जा सकती है क्योंकि एआई तकनीक कानून की जद से कहीं आगे निकल गई है।