पिछले हफ्ते अखबारों में एक अनोखे किस्म की चोरी की खबर आई जिसमें भुक्तभोगी ने इसकी सूचना देना मुनासिब तक नहीं समझा। भारतीय जनता पार्टी के नई दिल्ली मुख्यालय से 2.5 करोड़ रुपये चोरी हो गए थे।
जिस तिजोरी से पैसे गायब हुए थे, उस कमरे में ऐसे कोई निशान नहीं मिले जिससे पता चलता कि किसी ने वहां जबरन घुसने की कोशिश की हो।
बस तिजोरी खुली थी और उसमें से पैसे गायब थे। पर भाजपा ने इतनी बड़ी रकम चोरी होने के बाद भी पुलिस को इसकी सूचना नहीं दी।
उल्टा यह मामला निजी जांच कंपनी के हवाले कर दिया गया। उस दिन के बाद से ही इस चोरी के बारे में अब तक कोई खबर नहीं आई है। मजेदार बात तो यह है कि उसके बाद मीडिया ने भी आगे इस बारे में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और न ही भाजपा नेताओं से इस संबंध में कोई पूछताछ की गई।
मीडिया का कुछ ऐसा ही रवैया पिछले महीने देखने को मिला था जब विलियम जे क्लिंटन फाउंडेशन ने उसे अनुदान देने वालों की सूची जारी की थी।
कुछ ही ऐसे समाचारपत्र थे जिन्होंने अपने पहले पन्ने पर यह खबर छापी कि कैसे भारतीय कंपनियों, संगठनों, कारोबारियों और राजनीतिक नेताओं ने फाउंडेशन को 25,000 डॉलर से लेकर 50 लाख डॉलर तक का अनुदान दिया।
समाजवादी पार्टी के महासचिव और सांसद अमर सिंह (जिन्होंने 10 से 50 लाख डॉलर तक का अनुदान दिया था) ने इस सूची में से अपने नाम को यह कह कर खारिज कर दिया कि उनका नाम गलती से जोड़ दिया गया था।
जबकि विपक्षी पार्टियों की मांग थी कि सरकार इस बात का खुलासा करे कि अमर सिंह और दूसरे लोगों ने जो दान दिया उसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक से मंजूरी ली गई थी या नहीं। इस घटना के 15 दिनों बाद ही क्लिंटन फाउंडेशन का मामला मीडिया से अचानक गायब हो गया।
इस बारे में न तो अनुदान देने वालों की तरफ से कोई स्पष्टीकरण आया और न ही मीडिया में इस खबर का कोई फॉलो-अप देखा गया। मीडिया की ओर से कुछ ऐसा ही बर्ताव अक्टूबर, 2005 में वोल्कर रिपोर्ट मामले में भी देखा गया था।
उस समय इराक के खाद्य के बदले में तेल कार्यक्रम में 119 भारतीय कंपनियों को कटघरे में खड़ा किया गया था। इस मामले में मीडिया ने केवल के नटवर सिंह पर ही अपना सारा ध्यान केंद्रित रखा, पर बाकियों के बारे में मीडिया ने कोई सवाल खड़ा नहीं किया।
न ही इस बारे में सरकार ने ज्यादा दिलचस्पी दिखलाई। यह वही मीडिया है जो किसी बच्चे के गङ्ढे में गिर जाने पर लगातार 24 घंटे तक कवरेज करता है, पर इन घोटालों का पर्दाफाश करने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है।
यहां सवाल यह नहीं है कि इन मामलों में सवालों के जवाब मिलते या नहीं, खुलासा होता या नहीं, सवाल तो यह है कि इस बारे में मीडिया ने सवाल खड़े ही नहीं किए। एक सवाल यह भी है कि आखिर क्यों मीडिया छोटी या फिर कम महत्त्व वाली खबरों को ज्यादा तरजीह देता है और घोटालों की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता है।
क्या इसकी एक वजह यह है कि पिछली बार जब मीडिया ने कुछ घोटालों का पर्दाफाश किया था तो दोषी लोगों के खिलाफ कोई जांच नहीं की गई।
या फिर अमीरों ने अपनी ऐसी दुनिया बना ली है जहां उनके खिलाफ सवाल भी खड़ा नहीं किया जा सकता है। या फिर अखबार प्रकाशकों को विज्ञापन के अलावा और किसी चीज से सरोकार नहीं रह गया है।