यह वाकई अनोखी बात है कि एक तरफ तो प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार का एक हिस्सा बुनियादी ढांचे में निवेश लाने के लिए पूरी मशक्कत कर रहा है, तो वहीं सरकार का ही दूसरा हिस्सा इस पर लगाम कसने की कोशिश में जुटा हुआ है।
मुल्क में 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में बस कुछ दिन बाकी हैं, लेकिन भारत में काम नहीं करने वाली विदेशी कंपनियों को इससे बाहर रखने की पूरी कोशिश की गई है। पहली बात तो यह है कि अगर वे इस नीलामी में हिस्सा लेकर स्पेक्ट्रम खरीदना चाहती हैं, तो उन्हें पहले एक 2जी लाइसेंस लेना होगा।
अगर कोई विदेशी कंपनी सरकार से इसे खरीदती है, तो उसके इसके लिए 1,651 करोड़ रुपये चुकाने होंगे। लेकिन इस लाइसेंस के साथ उन्हें कोई स्पेक्ट्रम नहीं मिलेगा क्योंकि सरकार के पास अब कोई 2जी स्पेक्ट्रम बचा ही नहीं है। अगर वह इस स्पेक्ट्रम को बाजार में पहले से मौजूद खिलाड़ी से खरीदना चाहती है, तो उसे 6,000 करोड़ रुपये से ज्यादा ही खर्च करने पड़ेंगे।
इसका मतलब यह हुआ कि इसमें शुरुआत से ही नए खिलाड़ियों के साथ भेदभाव किया गया है। लेकिन अगर हिंदुस्तानी टेलीकॉम बाजार की ताकत को देखते हुए कोई विदेशी कंपनी यह कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाए, तो भी उसे कई दूसरी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ेगा।
कानून के तहत किसी विदेशी कंपनी को भारतीय बाजार में आने की इजाजत तभी दी जा सकती है, जब साझा उपक्रम में उसका हिस्सा 49 फीसदी या उससे कम हो।
इसका मतलब यह हुआ कि इतने कम वक्त में उस कंपनी को ऐसे साझेदार की तलाश करनी पड़ेगी, जिसमें अरब डॉलर को लगाने की कुव्वत हो।
इस सेक्टर में 74 फीसदी तक तो विदेशी निवेश की इजाजत है, लेकिन इसके लिए पहले विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) की इजाजत लेनी पड़ती है। इस काम में काफी वक्त लग जाता है। इस नीलामी को बाहरी कंपनियों हेतु खोलने के लिए जरूरी है कि इसमें एक शर्त शामिल कर दी जाए।
शर्त ऐसी कि नीलामी में कामयाब विदेशी कंपनी को एक देसी साथी की तलाश करनी पड़ेगी। फिर वह एफआईपीबी की सहमति हासिल करे और एक निश्चित समय सीमा के भीतर अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाकर 74 फीसदी तक कर ले।
इस तरह के शर्तों के बिना दूरसंचार मंत्री और सचिव के ये बयान बेमानी हो जाएगें कि सरकार 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में विदेशी कंपनियों को भी मौका देना चाहती है।
साथ ही, उनके लिए भारत तक आने का रास्ता भी बंद हो जाएगा। विदेशी कंपनियों को बाहर रहने के साथ-साथ यह नीति का एक नुकसान यह भी है कि अमीर कंपनियों की तादाद काफी कम होने की वजह से सरकार को इस नीलामी से कमाई भी काफी कम होगी।
दरअसल, अपनी मनपसंद कंपनियों को तरजीह देना दूरसंचार मंत्रालय की पुरानी आदत है। इससे कंपनियों को तो काफी कम कीमत पर लाइसेंस को मिलेगा ही। ऊपर से इसकी वजह से कुछ कंपनियों को दो-दो लाइसेंस खरीदने का मौका मिल जाएगा।
हालांकि, कानून में साफ-साफ लिखा है कि किसी एक टेलीकॉम कंपनी का निवेशक, उसी सर्किल में मौजूद दूसरी कंपनी में 10 फीसदी से ज्यादा मालिक नहीं हो सकता।
हालांकि, कम कीमत पर 3जी स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली दो कंपनियां एक ही सर्किल में काम कर रही हैं और उनका मालिकाना हक भी एक ही कारोबारी घराने के पास है। फिर भी मंत्रालय ने इस बारे में कोई कदम नहीं उठाया।