हिंदू आतंकवाद’ शब्द और उसका इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी के विरोध को आसानी से समझा जा सकता है।
चूंकि, उसने आतंकवाद की चर्चा करते वक्त कभी ‘इस्लामिक आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, इसलिए इसका इस्तेमाल करने वालों पर वह दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगा रही है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी कह चुके हैं कि पार्टी ने कभी भी आतंकवाद को किसी खास मजहब के साथ नहीं जोड़ा।
इस अभियान के कथित मकसद को छोड़ भी दें, तो अहम यह है कि मालेगांव मामले में भाजपा असल में अपने कदमों से हिंदू आतंकवाद जैसे शब्दों के इस्तेमाल को बढ़ावा ही दे रही है। भाजपा लंबे समय से आतंकवाद के खिलाफ कड़े कानूनों की मांग करती आई है।
ऐसे कानून, जिसके जरिये पुलिस के हाथों में काफी सारे अधिकार आ जाएं। ऐसे कानून, जिसमें एक बार अगर पुलिस, आरोपियों से इकबालिया बयान ले ले (आपने थर्ड डिग्री और टॉर्चर जैसे शब्द तो सुने ही होंगे) तो कोर्ट भी उसे सच मान लेगा।
यह बात हर कोई मानता है कि आतंकवाद के मामलों में आरोपियों से इकबालिया बयान लेना कोई आसान काम नहीं है। शायद इसीलिए भाजपा पुलिस के हाथों में जबरदस्त अधिकार देने की मांग कर रही है।
लेकिन जब उसी पुलिस ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर आतंकवादी होने का इल्जाम लगाया, तो भाजपा को इसमें दिक्कत है। उसे शिकायत है कि साध्वी को निशाना बनाया जा रहा है और महाराष्ट्र पुलिस सूबे की कांग्रेस-एनसीपी सरकार के दबाव में काम कर रही है।
राजनाथ सिंह ने खुले तौर पर साध्वी के ब्रेन मैपिंग और नारको टेस्ट का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि साध्वी पर किसी तरह का टॉर्चर नहीं होना चाहिए। हो सकता है ये सच हो, लेकिन साध्वी का मामला सिमी के सैकड़ों सदस्यों के मामलों से अलग कैसे है? सिमी के वे सदस्य जिन्हें पुलिस अपनी मर्जी से उठा ले गई, मारा-पीटा, मीडिया ने बेइज्जत किया और बाद में बिना किसी माफी या हर्जाने के छोड़ दिया।
बस इसलिए क्योंकि साध्वी हिंदू हैं और वे मुसलमान थे? अगर भाजपा अध्यक्ष खुलेआम साध्वी के पक्ष में अभियान चला सकते हैं, तो फिर जामिया मिलिया के छात्रों का जामिया नगर मुठभेड़ में मारे गए लोगों के पक्ष में उतरना कैसे गलत हो सकता है? तो क्या भाजपा भी उसी राह पर चल पड़ी है, जिसके लिए अब तक वह कांग्रेस की आलोचना करती थी? क्या वह भी आतंकवादियों के खिलाफ मुलायम पड़ चुकी है?
हालांकि, अभी तक भाजपा के वरिष्ठ नेतृत्व से इस तरह के संकेत नहीं मिले हैं, लेकिन अब पार्टी के कुछ नेता इस मामले को एक नया ही मोड़ दे रहे हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस के मुलायम रवैये की वजह से ही साध्वी जैसे लोगों के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था।
इससे अब पार्टी में भ्रम की स्थिति बन चुकी है। साध्वी को एक वक्त पर निर्दोष करार और ऐसा कुछ करने के लिए बरी नहीं किया जा सकता, जिसके लिए उन्हें ‘भड़काया’ गया था। उम्मीद है कि एक सभ्य समाज की खातिर इस बेवकूफाना कवायद पर लालकृष्ण आडवाणी अंकुश लगाएंगे। सजा देना सिर्फ और सिर्फ सरकार का काम है। अगर आपने इस अधिकार को अपने हाथों में लेने की कोशिश की तो आपके हाथों में सिर्फ अराजकता ही आएगी।