तिरुमंगलम विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव 9 जनवरी को हुआ, जिसका परिणाम 12 जनवरी को आएगा। अगर भविष्य में होने वाले गठबंधन में तमिलनाडु की भूमिका महत्त्वपूर्ण होने जा रही है,
जो यह तय करगी कि अगले आम चुनाव के बाद भारत पर शासन कौन करेगा, तो तिरुमंगलम से महत्त्वपूर्ण संकेत मिलेंगे। सभी पार्टियां इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रही हैं।
तिरुमंगलम आखिर इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है? वाइको के दल मरुमलारची द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (एमडीएमके) के विधायक वीरा इवाररासन के निधन के बाद वहां पर उपचुनाव की नौबत आई है।
वाइको, जयललिता की पार्टी एआईडीएमके के गठजोड़ में हैं, इसलिए उन्होंने सम्मानपूर्वक उस सीट को जयललिता के दल के लिए खाली कर दिया।
इस विधानसभा क्षेत्र में मुक्कालाथोर (थेवर) जाति के लोग बहुसंख्यक हैं। इसी जाति के नेता पसुम्पन मुथुरामलिंग थेवर ने सुभाष चंद्र बोस का कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए समर्थन किया था और बाद में उन्होंने तमिलनाडु में फारवर्ड ब्लॉक का गठन किया।
बोस मदुरै में एक सार्वजनिक बैठक में 1939 में आए थे। थेवरों को ब्रिटिश शासकों ने लड़ाकू जाति माना था। वे न केवल भारत और श्रीलंका के तमिल आंदोलन में पहले लड़ाके के रूप में सामने आए, बल्कि ब्रिटिश विरोधी आंदोलन के अगुआ होने पर गर्व करते हैं।
इस क्षेत्र में तीन बड़ी ताकतों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन प्रत्याशी जोर आजमाइश कर रहे हैं। एआईडीएमके ने उसी व्यक्ति को अपना प्रत्याशी बनाया है जिसे वाइको के प्रत्याशी ने हराया था। डीएमके की प्रत्याशी एक महिला है और मदुरै का इलाका ऐसा है, जहां करुणानिधि के बड़े लड़के अझागिरि का प्रभाव है।
उनके छोटे भाई और डीएमके के उत्तराधिकारी स्टालिन भी इस कोशिश में लगे हैं कि डीएमके यह सीट जीत जाए। दोनों भाइयों ने इस विधानसभा इलाके में डेरा डाले रखा।
लेकिन काला पक्ष क्या है? यही तो इस कहानी का नया मोड़ है कि देसिया मोरपोक्कू द्रविड़ कषगम (डीएमडीके) का प्रत्याशी स्थानीय ताकतवर व्यक्ति है, जिसने पिछले चुनावों में 19,000 से ज्यादा मत प्राप्त किए थे।
विधानसभा क्षेत्र को देखते हुए इसे बहुत सम्मानजनक मत कहा जा सकता है। फिल्म कलाकार विजयकांत डीएमडीके के प्रमुख हैं और मदुरै इलाके में वह बहुत प्रभावशाली हैं।
वैसे तमिलनाडु में विजयकांत की पकड़ 10 प्रतिशत मतों पर है। उनके साथ क्या होता है, तिरुमंगलम चुनाव के परिणाम और उसके बाद यह तय होगा कि 2009 में तमिलनाडु की राजनीति की दिशा क्या होगी।
विजयकांत की राजनीति कैसी है? फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है। कैप्टन के नाम से पुकारे जाने वाले विजयकांत खुद को कारुप्पू एमजीआर (काले एमजीआर) कहलाना पसंद करते हैं, जिससे तमिलनाडु की राजनीति में उन्हें एक जगह मिलती है।
अगर वह एमजीआर हैं, तो जयललिता का क्या होगा? अगर जयललिता सुपर स्टार हैं तो विजयकांत भी। इस तरह से वे अपने मतों का बंटवारा कैसे करेंगे? यह कहना उचित होगा कि ऐसी स्थिति में दोनों के अहं टकराएंगे।
तमिलनाडु में जहां विचारों की जंग और चुनावी आक्रामकता है, विजयकांत का प्रचार अभियान साधारण है, जिसमें निष्कपट होने की बात को ही प्रमुखता दी जा रही है।
कुछ महीने पहले हुई पार्टी की एक बैठक में उन्होंने भीड़ के सामने सवाल उठाया था, ‘यहां हर जगह और हर चीज में भ्रष्टाचार घुसा हुआ है। वे (दो द्रविड़ पार्टियां) लूट रही हैं।
दोनों ही रिश्वत लेने के मामले में एक दूसरे को पछाड़ने में लगी हैं। ऐसी स्थिति में भी क्या आप उन्हें मत देंगे?’ उनकी प्राथमिकताओं में विकास प्रमुख है- अच्छी सड़कें, शिक्षा और नौकरियों के समान अवसर।
वे कहते हैं, ‘अगर डीएमडीके सत्ता में आती है तो मैं बिजली की कटौती 5 महीने में समाप्त कर दूंगा। मैं इसका खुलासा नहीं करूंगा कि यह कैसे होगा, नहीं तो वे मेरा विचार चुरा लेंगे।’
तमिलनाडु में जहां हर रोज 8 घंटे बिजली की कटौती हो रही है, यह नारा लोगों का कुछ ध्यान तो खींचेगा ही। लेकिन अगर वे भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहते हैं, तो तिरुमंगलम में उन्होंने जो प्रत्याशी खड़ा किया है, मुफीद नहीं है।
यह सही है कि विजयकांत और उनके सहयोगियों पर जनवरी 2007 में आयकर विभाग के जो छापे पड़े थे, उसे उन्होंने राजनीतिक चाल बताई थी। विजयकांत की नजदीकी कैबिनेट में उनकी पत्नी प्रेमलता, उनके भाई और पूर्व एडीएमके नेता पनरुति रामचंद्रन शामिल हैं, जिन्हें डीएमडीके का असली अध्यक्ष कहा जाता है।
कितना दुखद है कि रामचंद्रन, गठजोड़ को दिशा दे रहे हैं। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि जयललिता की सहयोगी शशिकला से संबंधों का आरोप लगाते हुए उन्हें एडीएमके से निकाल दिया गया था, इसके चलते एडीएमके से कुछ विद्वेष स्वाभाविक है। लेकिन परिणाम आने के बाद परंपरागत राजनीति जगह बना सकती है।
लेकिन अगर विजयकांत का उद्देश्य तमिलनाडु में बदलाव लाना और द्रविड़ राजनीति से मुक्ति दिलाना है, तो कांग्रेस उनकी बेहतर सहयोगी हो सकती है। लेकिन कांग्रेस और उनके बीच कोई समझौते में न केवल उनकी महत्त्वाकांक्षा बाधक है, बल्कि कांग्रेस का रुख भी इसके लिए जिम्मेदार है।
कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष का पद भार अभी कुछ ही महीने पहले केवी थंगाबालू ने संभाला है। इसके पहले कुछ साल तक कांग्रेस का कोई प्रदेश अध्यक्ष ही नहीं था। जब वह पहली बार कांग्रेस मुख्यालय गए तो उन्होंने चारों ओर बदलाव का फैसला किया- मौखिक।
वास्तुशास्त्रियों की सेवाएं ली गईं। कांग्रेस आखिर बेहतर प्रदर्शन क्यों नहीं कर रही है? अगर पार्टी कार्यालय में कुछ बदलाव किया जाए तो क्या कुछ बदलाव आ सकता है? विशेषज्ञ ने कहा कि इस भवन में अशोक के पेड़ों की संख्या विषम है, जो ठीक नहीं है।
थंगाबालू बाहर गए और उन्होंने गणना की। उन्होंने देखा कि वास्तव में अशोक के पेड़ों की संख्या विषम है। इसे सम करने के लिए एक पेड़ काटने की बजाय मुख्यालय पर स्थित सारे अशोक के पेड़ काट डाले गए। कार्यालय का प्रवेश द्वार दूसरी ओर कर दिया गया।
लेकिन वास्तु के मुताबिक सबसे महत्त्वपूर्ण सलाह यह थी कि मरे हुए लोगों की फोटो के साथ जीवित लोगों की फोटो दीवारों पर लगाना ठीक नहीं है। इस तरह से यह फैसला किया गया कि कार्यालय की दीवार पर उन्ही लोगों की तस्वीरें लगेंगी, जो अब हमारे बीच नहीं रहे।
कांग्रेस के लोगों का कहना है कि पार्टी को विजयकांत जैसे नेता की जरूरत है, न कि वास्तु की। नई दिल्ली की ओर से 80 लोगों की एक समिति गठित की गई है, जिसे फैसला करना है कि इस बारे में क्या किया जाए। बहरहाल, तब तक कैप्टन की टीम आगे बढ़ रही है।