पिछले एक साल के दौरान जिन म्युचुअल फंड योजनाओं में निवेश करना सबसे ज्यादा फायदेमंद रहा है उनमें गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) एक है।
एक ओर जहां ज्यादातर इक्विटी श्रेणी के फंडों को भारी नुकसान उठाना पडा है,वहीं ईटीएफ ने 20 फीसदी से ज्यादा का प्रतिफल दिया है। वास्तव में ईटीएफ पर प्राप्त होने वाला प्रतिफल डेट से भी बढिया रहा है।
लेकिन ठीक इसी समय निवेशको कीं दिलचस्पी यह जानने की भी होती है कि गोल्ड ईटीएफ पर आखिर कर कैसे लगता है। अंतत: इन फंडों में निवेश के बाद कितना मुनाफा कमाया गया है, इसका सही पता तो कर की गणना के बाद ही चल पाएगा।
आइए, देखते हैं कि गोल्ड ईटीएफ पर कैसे लगता है कर
गोल्ड ईटीएफ
गोल्ड ईटीएफ म्युचुअल फंडों के उस श्रेणी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो फंड और शेयर दोनों तरह से व्यवहार करते हैं। शेयरों की तरह ही गोल्ड ईटीएफ की योजना को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबध्द कराया जाता है जबकि फंड की तरह व्यवहार करने से उनका शुध्द परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) अंडरलाइंग ऐसेट पर निर्भर करता है।
जिस अंडरलाइंग एसेट के साथ इनकी कीमत को जोड़ा जाता है वह है सोना। इस वजह से सोने की कीमतों और योजना के एनएवी के बीच घट-बढ़ का संबंध होगा। निवेशक इस योजना का इस्तेमाल सोने की तरह कर सकते हैं यानी जैसे सोना बढ़ेगा, वैसे ही एनएवी भी बढ़ेगी। कहा जा सकता है कि गोल्ड ईटीएफ में किए गए निवेश से भी सोने के भावों में उतार-चढ़ाव की तरह फायदा कमाया जा सकता है।
कर से जुड़ी बातें
इन योजना पर लगने वाले कर को लेकर कई सवाल पैदा होते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इस योजना को इक्विटी जैसी माना जाए या फिर डेट योजनाओं की तरह मना जाए। इन योजनाओं में निवेशकों की दिलचस्पी के लिहाज से भी यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है।
विश्लेषण
म्युचुअल फंडों को दो भागों इक्विटी और डेट में वर्गीकृत किया जाता है। जब किसी योजना की हिस्सेदारी किसी घरेलू कंपनियों की इक्विटी में 65 फीसदी या उससे अधिक होती है तो इसे इक्विटी उन्मुखी योजना के तहत वर्गीकृत किया जाता है लेकिन अगर कोई योजना इस मानदंड को पूरा नहीं कर पाती है तो इसे डेट उन्मुखी माना जाता है।
एक गोल्ड ईटीएफ व्यवहार में इक्विटी की तरह ही होते हैं लेकिन बात जब वास्तविक निवेश की होती है तो यह सिर्फ सोने में किया जाता है। चूंकि गोल्ड इक्विटी नहीं होते हैं, इसलिए इसे डेट उन्मुखी योजना के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है। डेट योजना पर लागू होने वाली शर्तें ईटीएफ में निवेश करने वाले निवेशकों पर भी लागू होती हैं।
पूंजी लाभ की प्राप्ति
अगर निवेशकों को गोल्ड ईटीएफ में निवेश करने पर मुनाफा होता है तो निश्चित तौर पर इसमें होने वाले निवेश पर कुछ खास कर लगेंगे। इस कर प्रक्रिया को समझने की दिशा में पहल कदम यह हो सकता है कि सबसे पहले निवेशक जो लाभ अर्जित करते हैं उसकी प्रकृति के बारे में जाना जाए। यह निवेशकों के होल्डिंग पीरियड पर निर्भर करता है।
अगर होल्डिंग पीरियड 12 महीने से कम होता है तो प्राप्त मुनाफेको लघु अवधि का माना जाएगा लेकिन अगर यह अवधि 12 महीने से अधिक की होती है तो इससे प्राप्त पूंजी लाभ को दीर्घ अवधि का माना जाएगा।
मिसाल के तौर पर अगर किसी निवेशक ने जून 2008 में प्रति यूनिट 12.35 रुपये की दर से 3,000 गोल्ड यूनिट खरीदे हैं और फिर वह इन्हें मार्च 2009 में प्रति यूनिट 15.35 रुपये की दर से बेच देता है। इस परिस्थिति में निवेशक की होल्डिंग अवधि एक साल से कम की होती है, इसलिए इसे लघु अवधि का पूंजी लाभ माना जाएगा।
वास्तविक तौर पर प्रति यूनिट 3 रुपये का लाभ होता है यानी कुल 9,000 रुपये का पूंजी लाभ होता है। अगर किसी व्यक्ति की कुल कर योग्य आय 6,45,000 रुपये है तो इस अतिरिक्त आय पर सामान्य दर पर ही कर लगेगा जो इस मामले में 30 फीसदी होती है। ऐसी परिस्थिति में निवेशकों के लिए अपनी होल्डिंग पर मिलने वाला मुनाफा काफी फायदे का होगा।
अब एक दूसरी स्थिति के बारे में विचार करें। माना कि किसी निवेशक ने जनवरी 2008 में प्रति यूनिट 11 रुपये की दर से 3,000 गोल्ड यूनिट खरीदे हैं और इन्हें मार्च 2009 में 15 रुपये प्रति यूनिट की दर से बेच देता है। ऐसे में होल्डिंग पीरियड एक साल से ज्यादा का होता है और 12,000 रुपये का दीर्घ अवधि पूंजी लाभ होता है।
यहां पर निवेशक को अपने मुनाफे पर बिना इंडेक्सेशन के 10 फीसदी कर का भुगतान करने की छूट होती है या वह इंडेक्सेशन के साथ 20 फीसदी कर का भुगतान कर सकता है, जो भी कम हो। एक ओर जहां पूंजी लाभ पर कर लगता है, गोल्ड ईटीएफ में हुए नुकसान की भरपाई भी की जा सकती है।
हालांकि इसमें एक शर्त यह है कि लंबी अवधि के नुकसान की भरपाई लंबी अवधि के पूंजी लाभ से ही की जा सकती है। इसी तरह लघु अवधि के नुकसान की भरपाई लघु अवधि में होने वाले पूंजी लाभ से ही की जा सकती है।
लेखक सर्टिफाइड वित्तीय सलाहकार हैं।
