कई डेट फंड श्रेणियों ने पिछले साल के दौरान 5 प्रतिशत से भी कम प्रतिफल दिया है, क्योंकि ब्याज दरें नीचे बनी हुई हैं। 17 डेट फंड श्रेणियों में से 13 ने 5 प्रतिशत से कम प्रतिफल दिया, जबकि क्रेडिट रिस्क फंडों ने 8.29 प्रतिशत का अच्छा प्रतिफल दिया है। वैल्यू रिसर्च के आंकड़े से पता चलता है कि ओवरनाइट फंडों, लिक्विड फंडों, मनी मार्केट फंडों, और 10 वर्षीय अवधि के गिल्ट फंडों ने इस अवधि में 4 प्रतिशत से कम का प्रतिफल दिया। फिलिप कैपिटल में फिक्स्ड-इनकम डेस्क के कंसल्टेंट जयदीप सेन ने कहा, ‘आरबीआई ने फरवरी 2019 और मई 2020 के बीच रीपो दर 2.5 प्रतिशत तक घटाई। इसकी वजह से बॉन्ड कीमतों में तेजी आई और बॉन्ड प्रतिफल में कमी दर्ज की गई। पिछले कुछ महीनों के दौरान यह तेजी थमी है जिसकी वजह से एमटीएम घटक का लाभ मिला, जो पहले मौजूद था, लेकिन अभी नहीं है। इसके अलावा, डेट फंडों के पोर्टफोलियो में प्रतिफल स्तर तेजी के बाद नीचे आया है।’ डेट फंड दो स्रोतों से प्रतिफल हासिल करते हैं – एक्रूअल (पोर्टफोलियो में योजनाओं से कूपन प्रवाह) और मार्क-टु-मार्केट (बाजार में ऊपर या नीचे चल रहीं प्रतिभूतियों की कीमतों)।
केनरा रोबेको एएमसी में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख अवनीश जैन का कहना है, ‘आरबीआई यह सुनिश्चित करने के लिए अपने अनुकूल रुख पर कायम है कि अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 का प्रभाव दूर हो। अभी भी, कुल मिलाकर अल्पावधि दरें नीचे हैं और अगले एक साल में भी दरें नीचे बने रहने की संभावना है।’ निर्धारित आय वाली प्रतिभूतियों की कीमतें बाजार में मौजूद ब्याज दरों पर आधारित होती हैं, और इनका विपरीत संबंध है। जब ब्याज दरें घटती हैं, निर्धारित आय वाली प्रतिभूतियों की कीमतें बढ़ती हैं।
प्राइमइन्वेस्टर में संस्थापक भागीदार और शोध एवं उत्पाद प्रमुख विद्या बाला का कहना है कि 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों और लंबी अवधि के पत्रों का प्रतिफल आरबीआई की सख्ती के बावजूद पिछले कुछ महीनों से बढ़ रहा है और इससे जिल्ट फंड जैसे दीर्घावधि फंडों का प्रतिफल प्रभावित हुआ है। पिछले साल में गिल्ट और लॉन्ग ड्यूरेशन फंडों ने 3.66 प्रतिशत और 4.36 प्रतिशत का प्रतिफल दिया है। लॉन्ग ड्यूरेशन फंड उन पत्रों में निवेश करते हैं जिनकी परिपक्वता सात साल से ज्यादा होती है। बाला ने कहा, ‘यह एक ऐसा खास परिदृश्य है जिसमें शॉर्ट और लॉन्ग ड्यूरेशन दोनों तरह के फंड कम प्रतिफल दे रहे हैं। अक्सर, जब वृद्घि दर कम रहती है, तो आरबीआई दरें घटाता है, जिसकी वजह से लॉन्ग ड्यूरेशन फंडों में तेजी आती है और जब दरें बढ़ती हैं तो संक्षिप्त अवधि वाले फंडों को फायदा होता है।’ हालांकि ब्याज दर वृद्घि के डर ने निवेशकों को अपनी पूंजी लिक्विड और मनी मार्केट फंडों में लगाने के लिए प्रोत्साहित किया है। पिछले चार महीनों के दौरान, लिक्विड फंडों में 29,800 करोड़ रुपये का पूंजी प्रवाह हासिल किया गया।
