रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस ने करीब तीन साल पहले एएमपी सन्मार का अधिग्रहण कर औपचारिक रूप से कारोबार की शुरुआत की थी।
मंदी में भी बेहतर कारोबार करने के बाद कंपनी के अध्यक्ष और मुख्य कार्य अधिकारी पी नंदगोपाल का कहना है कि कंपनी विकास में कमी करके आने वाले समय में मुनाफे पर ज्यादा ध्यान दे सकती है।
कंपनी अगले दो साल में न नफा न नुकसान वाली स्थिति में आने का प्रयास कर रही है। नंदगोपाल से इन मुद्दों पर शिल्पी सिन्हा और सिध्दार्थ ने बातचीत की:
कठिन कारोबारी माहौल में भी आपका कारोबार सराहनीय रहा है। क्या ऐसा नहीं लगता कि मंदी का असर आने वाले समय में आपके कारोबार पर भी पड़ेगा?
इस कठिन समय में जबकि उद्योग के विकास की गति बुरी तरह से प्रभावित हुई है लेकिन हमने इसके बावजूद भी 60 फीसदी विकास करने में सफलता पाई है। हमने नए उत्पादों के विक ास और उसके वितरण पर खासा ध्यान दिया है।
पहले तीन सालों में हमने सामान्य विकास पर ध्यान दिया है। मंदी का असर जबकि चारों तरफ देखने को मिल रहा है लेकिन इसके बावजूद भी जीवन बीमा कारोबार पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ सकता है।
जीवन बीमा परिषद 15-20 फीसदी के विकास की अपेक्षा कर रहा है वहीं हम बाजार से दो या तीन गुना ज्यादा विकास का लक्ष्य हासिल करने पर ध्यान दे रहे हैं। हमारा मतलब सिर्फ कारोबार से ही नहीं है। साल की समाप्ति तक हम 3,500-4,500 करोड रुपये के प्रीमियम अर्जित करने की अपेक्षा कर रहे हैं।
क्या आप भी रिलायंस जनरल की तरह मुनाफा कमाने पर जोर देंगे?
बिल्कुल, क्योंकि जब आप किसी निश्चित सीमा तक अपना विकास कर लेते हैं तो ऐसी स्थिति में आप अपने तेजी से बदलने वाले खर्चों में बदलाव कर सकते हैं। मौजूदा कारोबार से काफी प्रीमियम की प्राप्ति हो रही है।
इस वजह से आप अपेक्षाकृत कम विकास दर की और ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। वर्ष 2010 से मुनाफे पर हमारी नजर ज्यादा होगी जिससे कारोबार विकास में कुछ कमी आ सकती है। बाजार के विक ास का भी हमारे कारोबार पर कुछ न कुछ असर जरूर पड़ेगा।
आप कब तब घाटे से उबरने की आशा कर रहे हैं?
हमें लगता है कि आने वाले दो सालों में हम घाटे से पूरी तरह से उबर जाएंगे। हमारे मुनाफा अनुपात में तेजी से बढ़ोतरी हुई है जबकि परिचालन से जुड़े खर्च भी 40 फीसदी से घटकर 37 फीसदी के स्तर पर आ गया है।
अगर सब कुछ सही दिशा में इसी तरह से होता रहा तो तो वर्ष 2011 में हम संतुलित स्थिति में पहुच जाएंगे। अगर मंदी का कहर वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही तक जारी रहता है तो फिर वैसी स्थिति में हमें अपने योजनाओं की फिर से समीक्षा करनी पड़ेगी।
अन्य दो तिमाहियों के दौरान मंदी के बने रहने से भी इसका बहुत बडा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि कुल कारोबार का मात्र 2 फीसदी हिस्सा ही पहली तिमाही में होता है जबकि 20 फीसदी कारोबार दूसरी तिमाही में होता है।
मंदी से निपटने के लिए क्या आप नए क्षेत्रों की ओर भी अपना रुख करेंगे?
हम पेंशन और स्वास्थ्य कारोबार पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे। ये दोनों कारोबार तेजी से आगे बढ़ेंगे क्योंकि मांग काफी है जबकि इस कारोबार के विस्तार की अभी अपार संभावनाएं हैं।
अगर आप जीवन बीमा कारोबार के इतिहास पर नजर डालें तो आप पाएंगे कि शुरूआत में बीमा कंपनियों ने परंपरागत उत्पादों पर अपना ध्यान केंद्रित किया और उसके बाद यूनिट लिंक्ड प्रोडक्ट (यूलिप्स) कारोबार को बाजार में उतारा।
शुरुआत में यूलिप की मांग काफी कमजोर रही लेकिन शेयर बाजार में कारोबार में तेजी आने के कारण ग्राहकों के बीच यह काफी लोकप्रिय हो चुका है।
तो क्या यह माना जाए कि शेयर बाजार में बदलाव के साथ ही निवेश के तरीकों में भी बदलाव आए हैं?
निवेश के पैटर्न में बुनियादी रूप से कोई बदलाव नहीं आएं हैं। अगर शुरू में इक्विटी और डेट पोर्टफोलियो का अनुपात 70:30 फीसदी था तो यह अब 60:40 फीसदी के स्तर पर आ गया है।
लोग अभी भी अपने पोर्टफोलियों के साथ जुड़े हुए हैं। इक्विटी से डेट में बदलव सिर्फ 0.2 फीसदी का हो सकता है। दूसरा रुझान यह देखने को मिला है कि टिकट साइज में काफी बदलाव आएं हैं। पॉलिसीधारक अगर पहले 35,000 रु पये की पॉलिसी ले रहे थे तो इस इस समय वे 15,000 रुपये का निवेश कर रहे हैं।
इसका परिणाम यह हुआ है कि पॉलिसियों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
