इन दिनों टाइटन का जादू ग्राहकों को अपनी ओर खींच पाने में नाकाम रहा है।
ग्राहक इस समय अपनी जेबों को हल्की करने के मूड में बिल्कुल नहीं लग रहे हैं क्योंकि वे घडी या आभूषण खरीदने की किसी जल्दबाजी में नहीं हैं।
यह बात कंपनी की मार्च 2009 की तिमाही के परिणाम से साफ हो जाती है। इस अवधि के दौरान कंपनी की बिक्री मात्र 7 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 881 करोड रुपये रही। घड़ी के कारोबार से आने वाला राजस्व भी कंपनी के लिए सिरदर्द बना जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में कमजोर रहा।
कंपनी के ही ब्रांड सोनाटा के प्रति लोगों की दिलचस्पी में कमी आई लेकिन अच्छी बात यह रही कि कंपनी के प्रीमियम ब्रांड टाइटन ने बाजार में अच्छा कारोबार किया। आभूषण कारोबार की हालत भी ठीक नहीं रही क्योंकि इसमें 10 फीसदी की गिरावट देखी गई और सोने की कीमतों की वजह से राजस्व में कुछ हद तक बढ़ोतरी देखी गई।
इस लिहाज से इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कंपनी की आभूषण कारोबार से अर्जित राजस्व में पूर्व की तिमाहियों के मुकाबले कमजोर रही। इस वजह से प्री-एक्सेप्शन प्रॉफिट बिफोर टैक्स में 11 फीसदी नीचे चला गया।
हालांकि तनिष्क ने फिर भी कंपनी को राहत दी और इसने बाजार में बेहतर प्रदर्शन किया जबकि गोल्ड प्लस ब्रांड अधिक राजस्व अर्जित कर पाने में सफल नहीं हो पाई। पिछले साल टाइटन ने 135 नए स्टोर खोले जिसमें टाइटन आई+ के 59 स्टोर थे, लेकिन इस साल कंपनी नए स्टोर खोलने में संकोच कर सकती है।
उल्लेखनीय है कि कंपनी की अगले कुछ वर्षों में आई+ के 200 नए स्टोर खोलने की योजना थी लेकिन बाद में स्थिति को भांपते हुए इसने अपने इस लक्ष्य को ठंडे बस्ते में डालने में ही भलाई समझी।
घरेलू कारोबार से आगे निकलकर कंपनी के विदेश में होने वाले कारोबार की बात करें तो इस मोर्चे पर भी इसे झटका लगा है। टाइटन अमेरिका में अपने दो स्टोर पहले ही बंद कर चुकी है जिससे कंपनी को 29 करोड़ रुपये का घाटा लगा है। चालू वित्त वर्ष में कंपनी के राजस्व में 13 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
डीएलएफ: जमीनी सच्चाई
ऐसे समय में जबकि ग्राहकों की तरफ से मांग में खासी कमी आई है, रियल्टी क्षेत्र की बड़ी कंपनी डीएलएफ को कीमतों में छूट देने पर मजबूर होना काफी महंगा पडा है।
इस वजह से कंपनी को मार्च 2009 की तिमाही में नुकसान उठाना पडा है। इस अवधि के दौरान कंपनी के राजस्व में क्रमागत आधार पर 18 फीसदी की कमी आई और यह 11.22 करोड रुपये रहा।
कंपनी के कारोबार में क्रमागत आधार पर 34 फीसदी और साल-दर-साल के हिसाब से 93 फीसदी की गिरावट इस बात का संकेत देता है कि घरों के संभावित खरीदार अभी भी कीमतों में और ज्यादा नीचे गिरने का इंतजार कर रहे हैं। कंपनी के लिए इससे भी ज्यादा बुरी बात यह रही कि इसके कुछ सौदे भी बाद में रद्द हो गए।
विश्लेषकों का मानना है कि डीएलएफ ऐसेट्स लिमिटेड (डी ए एल) से मांग और मुनाफे में कमी की वजह से कंपनी के परिचालन मुनाफा मार्जिन में काफी गिरावट देखी गई। यह दिसंबर 2008 की तिमाही के 56.5 फीसदी के स्तर से गिरकर मात्र 13.8 फीसदी रह गया। इस वजह से कंपनी की अर्जित आय पर भी प्रतिकूल असर पडा और यह 75 फीसदी की गिरावट के साथ 170 करोड रुपये रहा।
डीएलएफ के ऊपर शुध्द कर्ज का बोझा 300 करोड रुपये और बढा है, हालांकि कंपनी प्रबंधन ने इस साल के अंत तक कर्ज के बोझ को घटाकर आधा करने का संकेत दिया है, जिसे सकारात्मक संदेश के रूप में देखा जा सकता है। कंपनी नकदी की मात्रा बढाने के लिए अपनी कुछ परिसंपत्तियों को बेचना चाह रही है।
हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि कं पनी के लिए नकदी के प्रवाह की समस्या बनी रहेगी। उल्लेखनीय है कि डीएलएफ के ऊपर सालाना ब्याज का भार काफी ज्यादा है और डीएएल से प्राप्त होने वाली प्राप्तियां, यद्यपि, पिछले साल की तुलना में 4,900 करोड़ रुपये के साथ कमजोर रही है।
चूंकि डीएएल से पूर्व में आने वाले नकदी से डीएलएफ को अपने मुनाफे को बढाने में काफी मदद मिली थी लेकिन अब हालत ऐसे हो गए हैं कि कंपनी डीएएल से किसी भी तरह की राहत की उम्मीद नहीं कर रही है।
हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि कंपनी द्वारा अपनी कुछ नई परियोजनाओं को सफलतापूर्वक शुरू करने और कुछ पुरानी परियोजनाओं को ठंडे बस्ते में डालने से इसकी नकदी की हालत सुधर सकती है, जिससे कंपनी की स्थिति बेहतर होनी चाहिए।
