एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के प्रधान अधिकारी और कार्यकारी निदेशक परेश परासनिस कंपनी के लिए नए नहीं हैं। वे पिछले आठ वर्षों से कंपनी को अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जब उसने परिचालन शुरु ही किया था।
इस बीमा कंपनी के सीईओ रहे दीपक सतवालेकर के त्यागपत्र दिए जाने के बाद वे नई भूमिका में सामने आए हैं। कठिन कारोबारी माहौल और मौजूदा वित्तीय संकट के बीच उनके लिए अब नई चुनौतियां सामने हैं।
इन चुनौतियों और इस मसले पर कंपनी की रणनीति के बारे उन्होंने शिल्पी सिन्हा और सिध्दार्थ के साथ बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश:
आपने हाल ही में कंपनी में अपने आठ साल पूरे कर लिए हैं। इस दौरान जीवन में क्या बदलाव आए हैं ?
जीवन खासकर के ग्राहकों के लिए अच्छा हो गया है। अब उनके पास बहुत विकल्प हैं।
प्रॉडक्ट की बात की जाए तो इस दौरान उनमें काफी सुधार हुआ है। सेवा का स्तर बढ़ा है। नियामक में भी बदलाव हुए हैं। आईआरडीए एक कंसल्टेटिव एप्रोच के साथ काफी सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
भारत में बीमा क्षेत्र की पैठ अभी कम है। इसलिए यहां पर काफी अधिक संभावना है। आज यहां पर 21 कंपनियां बीमा क्षेत्र में हैं जिनकेलिए व्यापक संभावनाएं मौजूद हैं।
हालांकि उनके सामने यह चुनौती भी है कि वे बाजार को विकसित करें। अब ग्राहक कर बचाने के लिए बीमा पॉलिसियां नहीं ले रहे हैं जो कुछ समय पहले तक वे कर रहे थे।
क्या यह सच है कि पॉलिसीधारक को पर्याप्त महत्व नहीं मिलता?
पॉलिसीधारकों के लिए हितों की रक्षा के लिए कानून है। इसके साथ ही उनके पास उनके पास फ्री लॉक इन पीरियड या पॉलिसी बदलने के विकल्प भी हैं। इसके साथ ही आईआरडीए के सलाहकार बोर्ड में ग्राहकों हितों की पैरवी करने वाले प्रतिनिधि को शामिल किया गया है।
इसके साथ ही उपभोक्ता फोरम भी उनके मामलों को देख रहे हैं। यह एक तरफा नहीं है। इसमें रेगुलेशन के साथ ग्राहकों का भी योगदान है जो आगे आकर कहते हैं कि अगर दूसरे ऐसा कर रहे हैं तो आप भी यह क्यों नहीं करते।
आपने इस पद की जिम्मेदारी ऐसे समय में संभाली है जब अर्थव्यवस्था खराब स्थिति से गुजर रही है। क्या इससे आपका काम और मुश्किल नहीं हो गया है ?
हां यह काम कठिन हो गया है, लेकिन साथ में यह रोचक भी हो गया है।
ऐसे समय में यह पद संभालना संभवत: पर मैं कंपनी की स्थापना के बाद पहले ही दिन से इसके वरिष्ठ मैनेजरों के साथ काम कर रहा हूं इसलिए यह बेहद जरूरी है कि हम लक्ष्य से न भटकें।
यूलिप, परांपरागत प्रॉडक्ट और पेंशन प्लान की हिस्सेदारी कैसी है?
हमारे नए कारोबार में यूलिप 95 फीसदी हैं जबकि मुनाफ के साथ वाले परंपरागत प्रॉडक्ट और एंडाउमेंट का पांच फीसदी हिस्सा है।
यह कहा जाता है कि यूलिप के क्षेत्र में हम देर से बाजार में आए हैं। इसलिए आज भी हमारी एयूएम में 25 फीसदी योगदान परंपरागत पॉलिसियों से आता है।
विभिन्न प्रॉडक्ट श्रेणियों में पेंशन का हमारे कारोबार में 40 फीसदी योगदान है। लगभग 30 फीसदी यंग स्टार से, 27-28 फीसदी इंडोमेंट प्लानों से और 2-3 फीसदी सिंगल प्रीमियम इंवेस्टमेंट प्रॉडक्ट और टर्म इंश्योरेंस से आता है। टर्म इंश्योरेंस के क्षेत्र में हम बड़ी संख्या में इस तरह की पॉलिसी बेच रहे हैं, लेकिन इनका प्रीमियम अधिक नहीं है।
क्या विकास में फर्क पड़ा है ?
शार्ट टर्म की बात करें तो हमने देखा है कि औद्योगिक विकास दर कम हुई है। अनिश्चितता के चलते अब फंड बैंक डिपाजिट की ओर मुड़ रहे हैं। इससे बीमा की जरूरत खत्म नहीं हो गई है। संभावना इस बात की है अनिश्चितता के चलते इसकी मांग और बढ़े।
अर्ध्द शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक संभावनाएं सामने आ रहीं हैं। इन क्षेत्रों में सेवाए देने की राह में वितरण और ग्राहक सेवा की लागत प्रमुख चुनौती है।
इसके बाद यह हमारा अगला कदम होगा। इस समय में अपनी दक्षता और उत्पादकता बढाना बेहद जरूरी है। पहले से ही चल रहीं पॉलिसियां अप्रभावित हैं। लोगों ने उनका प्रीमियम भरना बंद नहीं किया है। अगर बात नई प्रतिबध्दता की करें तो इसमें बदलाव आया है।
क्या आप भी एश्योर्ड रिटर्न प्रॉडक्ट लाएंगे?
हाल में कंपनियों ने यूनिट लिंक्ड प्लॉनों में गारंटी देना शुरु कर दी है। हम लगातार इस तरह की गारंटी नहीं देने की बात पर कायम हैं।
अगर आप गारंटी देते हैं तो आपके पास निवेश के विकल्प बेहद सीमित हो जाते हैं और आपको अधिकांश निवेश डेट में ही करना होता है।
आप यह भी देखेंगे की बाजार में जिन प्रॉडक्टों पर गारंटी दी गई है वे इक्विटी आधारित प्रॉडक्ट हैं।