शेयर बाजार में गिरावट का सिलसिला आज भी जारी रहा। फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 1994 के बाद सबसे बड़ी 75 आधार अंक की बढ़ोतरी की और अगले महीने एक बार फिर बड़ी बढ़ोतरी करने का संकेत दिया। इससे निवेशकों के बीच मंदी का डर पैदा हुआ है और वे जोखिम वाली परिसंपत्तियों से निकल रहे हैं।
निवेशक इस बात से चिंतित हैं कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक महंगाई में बढ़ोतरी को थामने के लिए अर्थव्यवस्था को मंदी में जाने देने और बेरोजगारी में बढ़ोतरी बर्दाश्त करने के लिए भी तैयार है। फेड की घोषणा के बाद बुधवार को वॉल स्ट्रीट और गुरुवार को एशियाई बाजार में दिखी शुरुआती तेजी गायब हो गई क्योंकि निवेशकों को लगा कि अर्थव्यवस्था में मंदी आएगी।
फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाए जाने के बाद अमेरिका में भी बाजार गिरावट के साथ खुले। डाऊ जोंस 2.5 फीसदी टूट गया जो एक साल से ज्यादा का निचला स्तर है। दुनिया भर के अन्य बाजारों में भी खासी गिरावट देखी गई।
सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में 600 अंक चढ़ा, लेकिन बाद में सत्र के सबसे ऊंचे स्तर से 1,700 से अधिक अंक गिर गया। सेंसेक्स सत्र के अंत में 1,045 अंक या 1.9 फीसदी फिसलकर 51,496 पर बंद हुआ। निफ्टी सत्र के आखिर में 331 अंक या 2.1 फीसदी गिरावट के साथ 15,360 पर बंद हुआ। दोनों सूचकांक पिछले पांच दिन में 7 फीसदी से अधिक लुढ़ककर मई 2021 के स्तरों पर आ गए हैं।
आज 5.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का बाजार पूंजीकरण (एमकैप) साफ हो गया। इस साल अभी तक भारत का एमकैप 27 लाख करोड़ रुपये घटकर 239.2 लाख करोड़ रुपये रह गया है।
बोफा में वैश्विक अर्थशास्त्री एथन हैरिस ने एक नोट में कहा, ‘हम मानते रहे हैं कि जब कोई फैसला लेना अत्यंत जरूरी हो जाता है तो फेड कई मोर्चों पर समझौता करता है। वह बेरोजगारी दर को अपने पूर्वानुमान से ज्यादा बढ़ने देता है और 3 फीसदी तक तक की महंगाई को स्वीकार करता है।’
मार्च 2020 में महामारी के बाद फेड के बैलेंस शीट बढ़ाने और दर कम करने से जोखिम वाली परिसंपत्तियों में भारी तेजी आई थी। हालांकि महंगाई को रोकने के फेड के कदम से इन परिसंपत्तियों में भारी गिरावट आ रही है।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यूआर भट्ट ने कहा, ‘पिछले 2-3 साल में जितनी नकदी झोंकी गई है, उतनी पहले कभी नहीं झोंकी गई। तरलता की निकासी ब्याज दरों से भी ज्यादा रुझान को प्रभावित कर रही है। सूचकांक दोगुने स्तर पर तरलता की वजह से ही पहुंचे थे।’
संवाददाताओं से बातचीत करते हुए फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने कहा कि फेड का मकसद रोजगार के मौके बरकरार रखते हुए महंगाई में कमी लाना है। उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ घटनाक्रम पर फेड का कोई नियंत्रण नहीं है। उदाहरण के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध और ऊर्जा तथा खाद्य कीमतों पर उसका असर।
भट्ट ने कहा, ‘फेड के बयानों को बारीकी से समझने से पता चलता है कि वह तेजी से दर बढ़ाने की योजना बना रहा है मगर बुधवार जितनी अधिक नहीं। हालांकि उसके बयान उतने आक्रामक नहीं थे, जितनी चिंता जताई जा रही थी। मगर ये निवेशकों को भयभीत करने के लिए पर्याप्त आक्रामक हैं। तेल की कीमतें नीचे नहीं आई हैं। रूस और यूक्रेन के बीच सुलह पर कुछ प्रगति होना बहुत अहम है। आज बेंचमार्क सूचकांकों के लिए सभी अहम समर्थन स्तर टूट गए। हमें देखना होगा कि कल सप्ताह के आखिरी दिन 15,700 या 15,500 का समर्थन स्तर बना रहता है या नहीं।’
