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टाटा स्टील: घटती कीमतें

Last Updated- December 08, 2022 | 7:06 AM IST

कंपनी केलिए फिलहाल अच्छा समय पीछे छूट गया लगता है।


जारी वित्तीय वर्ष के बीच में कंपनी को कोरस के प्रोडक्शन के साथ कम कीमतों के कारण भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

कोरस का अधिग्रहण टाटा स्टील ने जनवरी 2007 में किया था। इसने सितंबर 2008 तक पिछले छह माहों में 5,000 करोड़ रुपये का लाभांश अर्जित किया था।

इसके बाद से स्टील की कीमतें लगातार गिरी हैं। इससे चलते अगर कोरस का मुनाफा साल की दूसरी छमाही में गिरता है तो इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

इसके बाद भी टाटा स्टील के कंसॉलिडेट मुनाफे पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। 2007-08 में 6,910 करोड़ रुपये था। जारी वर्ष में भी इसके अच्छी गति से बढ़ने की उम्मीद है।

स्टील की औसत कीमतें जो जुलाई में अपने सर्वोच्च स्तर को छू गईं, वित्तीय वर्ष 2008-09 की पहली दो तिमाहियों में 1,100-1,170 डॉलर प्रति टन थीं, अब गिरकर 600-650 डॉलर प्रति टन हो गई हैं। इस तरह से इसकी कीमतों में 45 फीसदी की गिरावट देखी गई।

कोरस के सीईओ फिलिप वारेन इस बात से इंकार कनहीं करते कि नए ऑर्डरों में खासी कमी आई है। उन्होंने स्वीकार किया कि अमेरिका और यूरोप के बाजारों में छाई मंदी के कारण कंपनी ने हाल ही में अपना उत्पादन 36 फीसदी घटा दिया है।

यह भी सच है कि लागत घटाने के लिए प्रचलित कदम कंपनी ने उठाए हैं, लेकिन इनसे अधिक मदद मिलती नहीं दिखती। इसके साथ ही कंपनी के कच्चे माल के खरीद ऑर्डर अगले साल तक के लिए हैं। लिहाजा लोहे और कोयले की गिरी कीमतों का फायदा उसे तत्काल नहीं मिलेगा।

टाटा के कंसोलिडेट मुनाफे में कोरस का योगदान आधे से अधिक स्तर पर बना हुआ है। सितंबर 2008 तक पहली छमाही में उसने कंसोलिडेट प्रॉफिट में 8,618 करोड़ रुपये का योगदान दिया। अच्छी खबर यह है कि टाटा स्टील भारतीय बाजारों के लिए अपना उत्पादन घटाने नहीं जा रही है।

इसके साथ उसने कीमतों में कटौती के भी कोई संकेत नहीं दिए हैं। प्रबंधन का दावा है कि उनके प्रॉडक्टों में प्राइसिंग पावर है। दूसरी ओर प्रतिद्वंद्वी कंपनियों जेएसडब्ल्यू और सेल दोनों कीमतों में कटौती करने जा रही है।

जेएसडब्ल्यू ने तो उत्पादन भी घटाया है। टाटा स्टील ने इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि अगर सरकारी व्यय में इजाफा होता है कि मांग को बढ़ावा मिलेगा।

इन्फोसिस: कठिन राह

अब यह पूरी तरह से साफ है कि देश की कई बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों को 2008-09 में मुनाफे में ग्रोथ बहुत मुश्किल है। ऑटोमोबाइल जैसे कुछ क्षेत्रों में इसमें गिरावट भी हो सकती है।

2009-10 के लिए तो हालात और बिगड़ने वाले हैं क्योंकि इस साल के लिए आर्थिक विकास की दर का आकलन सिर्फ 6-6.5 फीसदी ही रहने का अनुमान लगाया गया है।

इस स्थिति में भले ही इन्फोसिस इस साल बच जाए लेकिन ब्रोकर फर्म सीएलएसए का मानना है कि बंगलूरु स्थित यह कंपनी 2009-10 में इतनी भाग्यशाली नहीं रहने वाली। इस साल उसके राजस्व में डॉलर के लिहाज से महज तीन फीसदी की ही बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।

इसका सीधा अर्थ यह लगाया जा सकता है कि इसकी कमाई में गिरावट होगी। रिपोर्ट कहती हैं कि इसका असर सीधे ऑपरेटिंग प्रॉफिट पर पड़ने वाला है।

अमेरिका में जारी वित्तीय संकट को देखते हुए इसमें कोई आश्चर्य नहीं। जहां स्थितियां लगातार खराब होती जा रहीं है और कीमतों पर खासा दबाव बढ़ सकता है।

इसके लिए बैंकिंग और वित्तीय सेवा तंत्र में भारतीय टेक फर्मों का तुलनात्मक दृष्टि से अधिक एक्सपोजर होने को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

प्रबंधन ने अक्टूबर में यह भी कहा था कि कई फर्मों के नेतृत्व में हुए परिवर्तन का से निर्णय लेने में विलंब हो सकता है।

 हालांकि दूसरे रिटेल व यहां तक कि मैन्यूफैक्चरिंग जैसे वर्टिकल भी टेक्नोलॉजी व्यय घटा सकते हैं। कंपनी के लिए बुरी खबर यह है कि कम कीमतों की स्थिति से 2009-10 की दूसरी छमाही से पहले वॉल्यूम बढ़ाकर नहीं निपटा जा सकेगा।

2008-09 में कंपनी की प्रति शेयर आय (ईपीएस) डॉलर में 2.32-2.36 डॉलर से 2.24 डॉलर के बीच रहने की उम्मीद है।

इस आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जारी वर्ष में कमाई 10 फीसदी की दर से बढ़ेगी। इंफोसिस ने पहले ही अपनी उम्मीदों को घटा लिया है। उसके अनुसार कंपनी का राजस्व 4.72-4.81 अरब डॉलर के बीच रहने की उम्मीद है।

First Published - December 4, 2008 | 9:20 PM IST

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