जेफरीज के वैश्विक प्रमुख (इक्विटी रणनीति) क्रिस्टोफर वुड विभिन्न केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक सख्ती के चक्र के बावजूद भारतीय बाजारों की सुदृढ़ता से आश्चर्यचकित हैं। वुड उम्मीद कर रहे थे कि साल 2021 में मजबूत बढ़ोतरी के बाद कैलेंडर वर्ष 2022 भारतीय शेयर बाजारों के लिए एकीकरण की अवधि होगी।
ग्रीड ऐंड फियर में निवेशकों को लिखे नोट में वुड ने कहा है, शेयर बाजार के लिहाज से ग्रीड ऐंड फियर कैलेंडर वर्ष 2022 को भारतीय शेयर बाजारों के लिए एकीकरण का साल मान रहा था, जिसमें पिछले साल रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज हुई थी और उसके बाद मौद्रिक सख्ती के चक्र से नकारात्मक आई थी। अभी भी वास्तविकता यह है कि विदेशी बिकवाली के दौर के कारण मंदी की अवधारणा, मौजूदा उच्च मूल्यांकन और मौद्रिक सख्ती के बावजूद भारतीय बाजार ने ग्रीड ऐंड फियर समेत हर किसी को चौंकाया है। इस सुदृढ़ता को ढांचागत मजबूती के प्रतिबिंब के तौर पर देखा जाना चाहिए।
जून से अब तक निफ्टी 16.5 फीसदी सुधरा है, वहीं एमएससीआई इंडिया इंडेक्स ने एमएससीआई एसी एशिया प्रशांत (जापान को छोड़कर) इंडेक्स के मुकाबले 16.5 फीसदी के अंतर से उम्दा प्रदर्शन किया है। यहां तक कि बाजार में गिरावट के चरण में भी भारतीय बाजार मजबूती से खड़े रहे। एमएससीआई इंडिया में इस साल अब तक अमेरिकी डॉलर के लिहाज से 5.8 फीसदी की गिरावट आई है जबकि एमएससीआई चीन में 24 फीसदी की गिरावट आई है और एमएससीआई एसी एशिया प्रशांत (जापान को छोड़कर) इंडेक्स में 18.5 फीसदी की नरमी देखने को मिली है।
जुलाई के बाद से भारतीय इक्विटी में तीव्र उछाल की अगुआई मोटे तौर पर विदेशी निवेशकों ने की है, जो पिछले छह हफ्ते में भारतीय शेयरों के शुद्ध खरीदार रहे हैं और जुलाई के मध्य से उन्होंने 7.64 अरब डॉलर की शुद्ध खरीदारी की है। साल 2022 के पहले साढ़े छह महीने में वे भारतीय शेयरों के 29.7 अरब डॉलर के शुद्ध बिकवाल रहे थे।
वुड के मुताबिक, जीएसटी राजस्व में बरकरार मजबूती और खुदरा बिक्री बेहतर रहने से आर्थिक सुदृढ़ता के सबूत सामने हैं। जीएसटी संग्रह जुलाई में सालाना आधार पर 28 फीसदी की उछाल के साथ 1.49 लाख करोड़ रुपये रहा, जो दूसरा सर्वोच्च स्तर है।
जुलाई से भारतीय इक्विटी बाजारों में हुई तीव्र बढ़ोतरी ने विश्लेषकों को सतर्क कर दिया है और जेफरीज के प्रबंध निदेशक महेश नंदूरकर उच्च मूल्यांकन के बीच 15 फीसदी की गिरावट की आशंका जता रहे हैं।
नंदूरकर ने अभिनव सिन्हा संग लिखी रिपोर्ट में कहा है, भारत के 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों की दर जून के हालिया सर्वोच्च स्तर 7.62 फीसदी से नीचे आया है और 7.35 फीसदी रह गया है। हालांकि 12 महीने आगे का पीई 19.3 गुने पर पहुंच गया है, जो बॉन्ड प्रतिफल-आय का अंतर 2.2 फीसदी तक ले जा रहा है, जो औसत के मुकाबले 113 आधार अंक ज्यादा है। ऐसे में 15 फीसदी की गिरावट की संभावना बन सकती है।
इसके बावजूद अपने एशिया (जापान को छोड़कर) के लॉन्ग पोर्टफोलियो में भारत पर 40 फीसदी भारांक बरकरार रखे हुए हैं क्योंकि उनका मानना है कि एशिया में अब तक भारत बेहतर है।
