हाल में ही स्टरलाइट द्वारा कॉपर उत्पादक एसारको को खरीदने पर विश्लेषकों ने जितनी निराशा व्यक्त की है उस हिसाब से बाजार निराश नहीं दिख रहा है।
ब्रोकरेज कंपनियों का कहना है कि अगर स्टरलाइट ने यह सौदा नहीं कि या होता तो वे बहुत खुश होतीं लेकिन इन चिंताओं के बाद भी कंपनी के शेयरों में सोमवार को मात्र 2 फीसदी की गिरावट आई और यह कारोबार बंद होने के समय 245 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।
इसके अलावा शेयरों की कीमतों में पिछले एक साल से गिरावट का दौर रहा है और इसमें 68 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है जिसके लिए कुछ हद तक कंपनी प्रबंधन द्वारा अपने एल्युमीनियम कारोबार को बेचने के प्रयास को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
हालांकि बाद में कंपनी ने अपने इस फैसले को बदल दिया। निश्चित तौर पर हिंडाल्को और नोवेलिस के साथ जो हुआ उसे देखते हुए विश्लेषक स्टरलाइट के एसारको के अधिग्रहण के बाद की संभावित स्थिति को लेकर चिंतित हैं।
स्टरलाइट के राजस्व में वर्ष 2008-09 में वर्ष 2007-08 के 24,705 करोड़ रुपये की तुलना में गिरावट आने की संभावना जताई जा रही है। विश्लेषकों द्वारा जो चिंता जताई जा रही है उसमें सबसे प्रमुख बात यह है कि इस समय एसारको का अधिग्रहण 1.7 अरब डॉलर में किया जा रहा है जो भुगतान किए जाने वाले वास्तविक मूल्य से 50 फीसदी कम है लेकिन इसके बाद भी विश्लेषक खुश नहीं हैं।
इसकी वजह यह है कि मौजूदा समय में इसकी कीमत 1.3-1.4 अरब डॉलर के आसपास बैठती है। यह 1 अरब डॉलर से 850 मिलियन डॉलर के बीच के कीमत से कहीं ज्यादा है क्योंकि विश्लेषक इस कीमत को बेहतर मान रहे हैं।
चिंता की प्रमुख वजह यह है भी है कि एलएमई में तांबे की कीमतों में सितंबर 2008 के बाद से 48 फीसदी तक का सुधार हुआ है लेकिनआने वाले समय में इसमें गिरावट की संभावना व्यक्त की जा रही है। इसके परिणामस्वरूप कंपनी के कंसोलिडेटेड लाभ पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है और ऐसा ही हिंडाल्को के साथ भी हुआ है।
इस साल की शुरुआत से अब तक तांबे की कीमतों में 10 फीसदी तक की तेजी आ चुकी है लेकिन इसके बाद भी आगे की संभावनाओं में बहुत सुधार की उम्मीद नहीं बनती नजर आ रही है। अपने प्रतिद्वंद्वियों की अपेक्षा एसारको का उत्पादन पर होने वाला खर्च काफी ज्यादा है और इसे तुरंत कम करना आसान नहीं होगा।
नेस्ले: चॉकलेटी ब्रांड
नेस्ले के शेयरों का कारोबार 1,431 रुपये पर इस समय वर्ष 2009 की उनमानित आय के 22 गुणा के स्तर पर हो रहा है।
कंपनी का शेयर एफएमसीजी क्षेत्र के महंगे शेयरों में शामिल है और साथ ही बाजार में भी कंपनी केशेयरों का कारोबार मजबूती के साथ हो रहा है।
यही नहीं कुछ समय तक के लिए कंपनी के शेयरों का कारोबार 20 से ज्यादा के मल्टिपल पर हो रहा था पर मौजूदा कारोबारी माहौल को देखते हुए इसमें कुछ गिरावट आने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए अर्थव्यवस्था में छाई मंदी के कारण 4,324 करोड़ रुपये की खाद्य वस्तुओं की निर्माता कंपनी के कारोबार पर कुछ असर पड़ सकता है क्योंकि इसके कुछ उत्पाद प्रीमियम सेगमेंट में हैं। पहले भी बाजर की खस्ता हालत के समय कॉफी की बिक्री कम हुई थी और इस समय भी लोगों ने इसकी अपेक्षा सस्ते उत्पाद को खरीदने पर जोर दे दिया है।
इसके अलावा कंपनी के उत्पादों का जमावडा संगठित खुदरा क्षेत्र से आने वाला था लेकिन इस क्षेत्र ने जैसी अपेक्षा की जा रही थी, उस हिसाब से प्रदर्शन नहीं किया। वर्ष 2009 में कंपनी की बिक्री में 15 फसदी तक की बढोतरी की संभावना जताई जा रही है। हालांकि कंपनी के मुनाफे में कमी आ सकती है जबकि पिछले दो सालों से कंपनी के मुनाफे में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है।
दीगर बात है कि कारोबार में कमी आने के पूरे संकेत हैं। दिसंबर 2008 की तिमाही के दौरान कंपनी के राजस्व बढ़िया रहा और इसमें 21.7 फीसदी की तेजी आई। कंपनी के लिए स्थिति और भी ज्यादा बेहतर होती और अगर निर्यात में कमी नहीं आई होती तो यह आंकडा और ज्यादा आकर्षक होता।
घरेलू बाजार में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और साथ ही उत्पादन लागत में कमी के कारण कंपनी के परिचाल मार्जिन में 200 आधार अंकों की तेजी आई। हाल में ही कंपनी ने अपनी विभिन्न श्रेणियों के तहत बाजार में नए उत्पाद उतारे हैं। इस वजह से उम्मीद की जा रही है कि नए उत्पाद के उतारने से ग्राहकों को इसकी तरफ आकर्षित करना चाहिए।
मिसाल के तौर पर दूध, चॉकलेट और कॉफी में नए तरह के उत्पाद बाजार में उतारे हैं। इसके अलावा कंपनी ने कीमतों को भी अपेक्षाकृत कम स्तर पर रखने की रणनीति अपनाई है जिससे कंपनी को आने वाले समय में इसका लाभ मिल सकता है।
