तेल के दामों में हालिया उछाल, जो सोमवार को सात दिनों के शीर्ष स्तर पर बंद हुआ था, से सॉवरिन वेल्थ फंड (एसडब्ल्यूएफ) के कोष में तेजी आने के आसार हैं, लेकिन संभवत: भारत किसी क्रमिक वृद्धि प्रवाह का महत्त्वपूर्ण लाभार्थी न बन पाए। ऐसा खास तौर पर तब होगा, जब देश का व्यापार असंतुलन तेल की कीमतों में होने वाली निरंतर वृद्धि से और बिगड़ जाएगा। इससे इस प्रक्रिया में निवेश गंतव्य के रूप में इसका आकर्षण कम हो जाता है।
सऊदी अरब, कुवैत, नॉर्वे और कनाडा जैसे देश भारत और दुनिया भर में एसडब्ल्यूएफ के जरिये महत्त्वपूर्ण निवेश करते हैं। एनएसडीएल के आंकड़ों से पता चलता है कि 30 सितंबर तक भारतीय इक्विटी में एसडब्ल्यूएफ के तहत संरक्षित परिसंपत्ति कुल मिलाकर तीन लाख करोड़ रुपये थी। उदाहरण के लिए बताया जाता है कि नॉर्वे अपने एक-तिहाई से भी अधिक निर्यात के लिए तेल और गैस पर निर्भर रहता है। वार्षिक खुलासे के अनुसार देश के गवर्नमेंट पेंशन फंड ग्लोबल, जो दुनिया का सबसे बड़ा एसडब्ल्यूएफ है, के पास वर्ष 2020 के अंत में भारत का 1.3 प्रतिशत या 12.4 अरब डॉलर का हिस्सा था।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के प्रमुख (खुदरा) दीपक जसानी ने कहा ‘हम कच्चे तेल के अधिक दामों की वजह से पश्चिम एशिया स्थित एसडब्ल्यूएफ की ओर से प्रवाह में कुछ क्रमिक वृद्धि तो देख सकते हैं, लेकिन इन प्रवाहों की मात्रा और समय कई कारकों पर निर्भर करेगा। भारतीय शेयर बाजार ऊंचे मूल्यांकन पर कारोबार कर रहा है और यहां से आगे और कितनी तेजी आएगी? यह विचार करने वाली चीजहै।’
जसानी के अनुसार काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि ये फंड इस समय परिसंपत्ति निर्धारण के संबंध में क्या रणनीति अपनाते हैं और इक्विटी निवेश में कितना उतार-चढ़ाव रहेगा। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि सारा नया निवेश इक्विटी में न आए।
आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस साल भारतीय इक्विटी में नौ अरब डॉलर का निवेश किया है और भारतीय ऋण बाजार से 19.5 करोड़ डॉलर निकाले हैं।
अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक और निदेशक यूआर भट ने कहा कि अगर व्यापार असंतुलन और बिगड़ता है और इसका अर्थव्यवस्था अनियंत्रित स्थिति में चला जाता है, तो शायद भारत आकर्षक निवेश गंतव्य न रहे। इसलिए एसडब्ल्यूएफ की ओर से आने वाला पैसा उन अन्य बाजारों में जा सकता है, जिन्हें अधिक आकर्षक माना जाता है।
एफपीआई प्रवाह और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का एक विश्लेषण इन दोनों के बीच सह-संबंध दिखाता है। उदाहरण के लिए जनवरी 2010 से घरेलू इक्विटी में उन तिमाहियों में विदेशी प्रवाह नकारात्मक या कमजोर था, जिस दौरान ब्रेंट क्रूड के दाम कम थे। इसी तरह वर्ष 2012 की उस अवधि के दौरान, जब ब्रेंट के दाम प्रति बैरल 100 डॉलर से अधिक थे, तब घरेलू बाजारों में एफपीआई प्रवाह मजबूत था।
वर्ष 2000 के दशक की शुरुआत में तेल की अधिक कीमतों से तेल निर्यातकों को आय का भारी पुनर्वितरण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप चालू खाता अधिशेष और विदेशी परिसंपत्ति का तेजी से निर्माण हुआ। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक ब्लॉग पोस्ट के अनुसार सरकारों ने वित्तीय परिसंपत्तियों के बड़े भंडारण का प्रबंध करने में मदद करने के लिए नए एसडब्ल्यूएफ की स्थापना की है या मौजूदा एसडब्ल्यूएफ के आकार में इजाफा किया है।