कई आईपीओ से दूर रहने के बाद निवेशक फिर से सूचीबद्घता लाभ के लिए प्राथमिक बाजारों पर ध्यान दे रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि प्राथमिक बाजार की लोकप्रियता से सेकंडरी बाजार से तरलता प्रभावित हो सकती है और इस वजह से उसकी तेजी भी सीमित (कम से कम अल्पावधि में) हो जाएगी।
जेफरीज के प्रबंध निदेशक महेश नंदुरकर ने अभिनव सिन्हा के साथ तैयार की गई अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है, ‘चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में इक्विटी आपूर्ति वित्त वर्ष 2022 की पहली छमाही की करीब 1.5 गुना हो सकती है, जिससे अल्पावधि तेजी प्रभावित हो सकती है, खासकर तब, जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) प्रवाह बहुत ज्यादा न बढ़े।’
उदाहरण के लिए, पारस डिफेंस ऐंड स्पेस टेक्नोलॉजी के मौजूदा आईपीओ पर विचार किया जा सकता है। 171 करोड़ रुपये के इस निर्गम को उन छोटे निवेशकों की मदद से अब तक 318 गुना से ज्यादा का अभिदान मिला है और कुल मिलाकर 38,021 करोड़ रुपये से ज्यादा की बोली लगी है।
रिपोर्टों के अनुसार, आदित्य बिड़ला सनलाइफ ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) ने अगले कुछ सप्ताहों के दौरान अपना 3,000 करोड़ रुपये का आईपीओ पेश करने की योजना बनाई है। भारतीय हॉस्पिटैलिटी स्टार्ट-अप ओयो होटल्स ऐंड रूम्स द्वारा भी करीब 1 अरब डॉलर जुटाने के लिए अगले सप्ताह आईपीओ दस्तावेज जमा कराए जाने की संभावना है।
इसके अलावा, इस वित्त वर्ष में सरकार के 1.75 लाख करोड़ रुपये विनिवेश एजेंडे के जरिये भी निर्गमों की रफ्तार तेज होने का अनुमान है, जिनमें भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल), एयर इंडिया, और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) जैसी कंपनियों में हिस्सेदारी बिक्री शामिल है।
गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों को अगले दो-तीन साल के दौरान नए आईपीओ से करीब 400 अरब डॉलर की बाजार पूंजीकरण वृद्घि का अनुमान है। गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों ने टिमोथी मोए के नेतृत्व में एक ताजा रिपोर्ट में लिखा है, ‘भारत का बाजार पूंजीकरण वर्ष 2024 तक मौजूदा 3.5 लाख करोड़ डॉलर से बढ़कर 5 लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच सकता है, जिसके साथ यह पूंजीकरण के लिहाज से पांचवां सबसे बड़ा बाजार बन जाएगा। वैश्विक बाजार पूंजीकरण और सूचकांक भारांक में भारत का योगदान भी बढ़ सकता है।’
हालांकि अल्पावधि में इन निर्गमों से सेकंडरी बाजार में तरलता को खतरा पहुंच सकता है, जिससे उसकी तेजी सीमित हो सकती है। विश्लेषकों का कहना है कि इसके अलावा, भारतीय बाजारों का महंगा मूल्यांकन भी एक बड़ी चिंता है।
अपने बॉन्ड खरीदारी कार्यक्रम में नरमी लाने की अमेरिकी फेडरल रिजर्व की योजनाओं, अस्पष्ट आर्थिक सुधार, और कोविड-19 की तीसरी लहर से आरबीआई को अपनी अल्ट्रा-लूज पॉलिसी व्यवस्था समाप्त करने को बाध्य होना पड़ सकता है।
अलफैनिटी फिनटेक के सह-संस्थापक एवं निदेशक यू आर भट का मानना है, हालात काफी हद तक इस पर निर्भर करेंगे कि विदेशी निवेश प्रवाह अगले कुछ महीनों के दौरान कैसा रहता है। इसके अलावा, आईपीओ मूल्य निर्धारण भी जरूरी होगा। कई निवेशकों को कुछ ताजा सूचीबद्घताओं में नुकसान होने की आशंका है।
