सरकार ने पूंजी बाजार और जिंस बाजार नियामक के विलय प्रस्ताव पर फिर से विचार शुरू कर दिया है।
अगर यह कवायद रंग लाती है, तो प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) पूंजी बाजार और कमोडिटी वायदा, दोनों का नियामक बन सकता है। हालांकि इस बात को लेकर जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) अपनी आपत्तियां जता रहा है।
जहां तक जिंसों की हाजिर खरीद की बात है, तो यह राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है। मौजूद व्यवस्था के तहत प्रतिभूति अनुबंध (नियमन अधिनियम और सेबी अधिनियम के तहत पूंजी बाजार का नियमन सेबी के जिम्मे है।
वहीं वायदा अनुबंध (नियमन) अधिनियम के तहत एफएमसी जिंस बाजार का नियमन करता है। गाहे बगाहे एफएमसी का सेबी में विलय की बात उठती रहती है। जहां तक अभी की बात है तो सूत्रों के मुताबिक योजना आयोग ने इस कवायद को अंजाम देने की शुरुआत की है।
दूसरी ओर, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने इस मामले में एफएमसी से टिप्पणी करने को कहा है, लेकिन वित्त मंत्रालय और सेबी के सूत्रों के मुताबिक इस समीक्षा के पीछे इन दोनों एजेंसियां की कोई भूमिका नहीं है।
करीब चार साल पहले संप्रग सरकार एफसीआरए में जरूरी सुधार करने में नाकाम रही थी, जिससे एफएमसी को आवश्यक स्वायत्तता नहीं मिल पाई। इस मामले में वित्त मंत्रालय का प्रस्ताव है कि सेबी को जिंस बाजार के नियमन की जिम्मेदारी भी दी जाए, जबकि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की इस मामले में राय जुदा है।
एक साल पहले जब समीक्षा पूरी भी नहीं हुई थी, तभी वित्त मंत्रालय को लग गया था कि इस ढांचे को बदलने के लिए राजनीतिक समीकरण उसके पक्ष में नहीं हैं। योजना आयोग द्वारा की गई समीक्षा ऐसे वक्त में आई है जब केंद्र में गठबंधन सरकार सत्ता पर काबिज है। सूत्रों का कहना है कि अभी यह मामला बहस के दायरे में है।
दूसरी ओर एफएमसी ने इस कदम के विरोध करते हुए 50 पन्नों का एक नोट भेजा है। इस मामले में एक और विकल्प को अपनाए जाने की बात चल रही है जिसके तहत एफएमसी का सेबी के साथ विलय कर उसमें जिंस वायदा के लिए अलग से एक विभाग बनाया जाए।
एफएमसी इस कदम का मुखर रूप से विरोध कर रहा है। आयोग का तर्क है कि पूंजी बाजार और जिंस बाजार दोनों की प्रकृति एक दूसरे से बेहद अलग है। आमतौर पर शेयर बाजार ग्लैमर से जुड़ा होता है जो दूसरी कई चीजों पर भारी पड़ता नजर आता है। इसके अलावा आयोग का यह भी कहना है कि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि में लगा है और जिंस वायदा में कृषि उत्पादों की बहुत अहमियत है।
विलय की कोशिश
सेबी बन सकता है पूंजी और कमोडिटी बाजार का नियामक
इस प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय और उपभोक्ता मंत्रालय की राय जुदा
एफएमसी भी इस कदम का कर रहा है विरोध
