वैश्विक वित्तीय बाजारों की निगाहें अब अगले सप्ताह दरों के संबंध में अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) की होने वाली बैठक के नतीजों पर टिकी हुई हैं। बड़ौदा बीएनपी पारिबा म्युचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी (इक्विटी) संजय चावला ने पुनीत वाधवा को दिए साक्षात्कार में कहा कि भारतीय बाजार वित्त वर्ष 23 में 10 से 12 प्रतिशत की आय वृद्धि की तैयारी कर रहे हैं। आय की मौजूदा रफ्तार और मौजूदा आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह स्तर हासिल किया जा सकता है। संपादित अंश:
क्या जुलाई के बाद से बाजारों में हुए तेज सुधार से आपको हैरानी हुई है?
यह सुधार नतीजों के सीजन के साथ हुआ है, जहां कॉरपोरेट क्षेत्र की ज्यादातर रिपोर्ट सकारात्मक रहीं, विशेष रूप से घरेलू मांग पर निर्भर रहने वाली। इससे बाजार को फिर से इस बात का भरोसा मिला है कि कि हालांकि वैश्विक अनिश्चितताएं हैं, लेकिन मांग में तीव्र सुधार देखा गया है। कुछ वैश्विक
अनिश्चितताएं भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं। चीन+1 रणनीति के अलावा, यूरोजोन में चल रही उथल-पुथल की वजह से कई निर्माण कंपनियां पूर्वी यूरोप में वैकल्पिक विनिर्माण केंद्रों पर विचार कर रही हैं। इसने हमें निवेश का बड़ा मौका प्रदान किया और हमारे पोर्टफोलियो को दोबारा से व्यवस्थित किया है।
क्या आपको लगता है कि बाजारों के लिए अगली बड़ी चिंता तब होगी, जब फेड अपनी बैलेंस शीट को स्थिर करना शुरू कर देगा, जिससे तरलता में कमी शुरू हो सकती है?
अमेरिका का एम2/जीडीपी अनुपात ऊंचा बना हुआ है, जो यह दर्शाता है कि तरलता को सामान्य होने में लंबा समय लगेगा। बैलेंस शीट को तेजी से स्थिर करने के मुकाबले ब्याज दर संबंधी कार्रवाई अगला कदम हो सकता है, जो प्रतिफल पथ में बदलाव करते हुए अल्पकालिक दरों को बढ़ा सकता है। प्रमुख केंद्रीय बैंकों में दर संबंधी कदम वैश्विक बाजारों के लिए अधिक जोखिम पैदा हो सकता है तथा तरलता में कमी की अपेक्षा इसके परिणामस्वरूप वैश्विक वृद्धि पर असर पड़ सकता है। अगर वास्तव में ही फेड द्वारा तरलता में कमी की योजना बनाई जाती है, तो समस्या बढ़ सकती है।
इक्विटी से जुड़ी योजनाओं में प्रवाह कम हो रहा है। क्या यह बात आपको फंड प्रबंधक के रूप में दिक्कत देती है कि आपकी निवेश वाली राशि में कमी आ रही है?
पहले से उलट जब खुदरा निवेशक उस वक्त घबरा जाते थे, जब बाजार में गिरावट होती था, कोविड-19 के दौरान हमने खुदरा निवेशकों को निवेश में बने और परिसंपत्ति वर्ग के रूप में इक्विटी आवंटन में वृद्धि देखी थी। एसआईपी (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) बुक लगातार बढ़ रही है। एमएफ निवेश सहित वित्तीय परिसंपत्तियां अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारतीय परिवारों की वित्तीय बचत के लिहाज से अपेक्षाकृत कम अनुपात में बनी हुई हैं। सामाजिक सुरक्षा के बिना और एकल परिवारों की वजह से वित्तीय बचत ही मुद्रास्फीति को मात देने का एकमात्र तरीका होगा। इसलिए हम निकासी के बावजूद प्रवाह के संबंध में आशावादी बने हुए हैं।
कंपनियों को अपनी मूल्य निर्धारण शक्ति किस हद तक वापस मिली है?
हम प्रीमियम और मास सेगमेंट के बीच मूल्य निर्धारण परिदृश्य को अलग-अलग तरीके से काम करता देख रहे हैं। बेहतर मूल्य निर्धारण शक्ति की वजह से प्रीमियम सेगमेंट कीमत बढ़ोतरी को अग्रसरित करने में सक्षम रहा है और शहरी मांग में जोरदार सुधार हुआ है। हालांकि जहां तक मूल्य का सवाल है, तो मास सेगमेंट अब भी प्रयास में है।