अक्टूबर में लगातार पांचवें महीने म्युचुअल फंडों की बिकवाली जारी रही और माह के दौरान उन्होंने इक्विटी बाजारों से 14,344 करोड़ रुपये निकाले। यह जानकारी बाजार नियामक सेबी के आंकड़ों से मिली। मार्च 2016 के बाद किसी एक महीने में यह सबसे बड़ी मासिक निकासी है क्योंकि तब फंडों ने 10,198 करोड़ रुपये की निकासी की थी।
कैलेंडर वर्ष 2020 में अब तक म्युचुअल फंडोंं का शुद्ध प्रवाह 2,671 करोड़ रुपये रहा है। अगर साल की बाकी अवधि में निकासी की रफ्तार बनी रही तो कैलेंडर वर्ष 2013 के बाद वह पहली बार शुद्ध बिकवाल बन सकता है। साल 2013 में म्युचुअल फंडों ने 21,082 करोड़ रुपये की इक्विटी बेची थी।
पिछले पांच महीने में म्युचुअल फंडों ने 37,388 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। अप्रैल में उनकी शुद्ध निकासी 7,996 करोड़ रुपये रही थी, वहीं मई में उन्होंने इक्विटी में शुद्ध रूप से 6,522 करोड़ रुपये निवेश किए थे। निकासी से पहले म्युचुअल फंडों ने जनवरी व मार्च के बीच शेयर बाजार में 41,533 करोड़ रुपये का निवेश किया था। सेबी के आंकड़ों से यह जानकारी मिली।
विश्लेषकों ने इस निकासी की वजह अमेरिकी चुनाव से पहले घबराहट और इस वास्तविकता को बताया कि बाजार काफी आगे दौड़ रहा है जबकि आर्थिक सुधार अभी क्षणभंगुर बना हुआ है।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी जी चोकालिंगम ने कहा, पिछले कुछ महीनों से म्युचुअल फंडों ने सुरक्षित दांव खेला है। इसके अतिरिकक्त ज्यादातर खुदरा निवेशकों ने लॉकडाउन के दौरान खुद ही निवेश करना शुरू कर दिया। अनिश्चित आर्थिक माहौल को देखते हुए और यह भी कि बाजार आर्थिक वास्तविकता के साथ नहीं चल रहा है, इससे भी निवेशकों के दिमाग में भ्रम पैदा हुआ है। इसके परिणामस्वरूप म्युचुअल फंडों ने भी किनारे बैठना पसंद किया।
म्युचुअल फंड भले ही बिकवाली कर रहा हो, लेकिन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारी भरकम निवेश कर रहे हैं। अक्टूबर (29 तारीख तक) में एफपीआई ने 19,541 करोड़ रुपये लगाए, जो 11 महीने का सर्वोच्च आंकड़ा है। एनएसडीएल से यह जानकारी मिली। कैलेंडर वर्ष 2020 में उनका निवेश 47,887 करोड़ रुपये रहा है। बीएसई सेंसेक्स के कैलेंडर वर्ष 2020 में 1.5 फीसदी टूटा है जबकि 24 मार्च के 52 हफ्ते के निचले स्तर 25,639 से यह 58 फीसदी चढ़ा था।
इक्विटी बाजारों में काफी तेजी ने अब विश्लेषकों को अल्पावधि के लिहाज से सतर्क कर दिया है क्योंकि उनका मानना है कि ज्यादातर स्थितियों का समाहित कर लिया गया है। हालांकि मध्यम से लंबी अवधि के लिहाज से इक्विटी को लेकर उनका नजरिया तेजी का बना हुआ है लेकिन रुक रुककर होने वाली गिरावट को लेकर वे सतर्क हैं।
